सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हिंदू विवाह ‘गाना और डांस’, ‘शराब पीना और खाना’ या एक कमर्शियल ट्रांजैक्शन का आयोजन नहीं है. इसे हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ‘वैध समारोह का अभाव’ के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती है. जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि हिंदू विवाह एक ‘संस्कार’ है, जिसे भारतीय समाज में ग्रेट वैल्यू की संस्था के रूप में दर्जा दिया जाना चाहिए.
दो प्रशिक्षित कमर्शियल पायलट्स ने वैध हिंदू विवाह समारोह किए बिना तलाक की डिक्री की मांग की थी. इस मामले में पारित अपने हालिया आदेश में बेंच ने पीठ ने युवा पुरुष और महिला से आग्रह किया कि वे ‘इसमें प्रवेश करने से पहले भी विवाह की संस्था के बारे में गहराई से सोचें और यह भी जानें कि भारतीय समाज में उक्त संस्था कितनी पवित्र है.
19 अप्रैल के अपने आदेश में, बेंच ने कहा कि जहां हिंदू विवाह लागू संस्कारों या समारोहों जैसे ‘सप्तपदी’ (दूल्हे और दुल्हन द्वारा पवित्र अग्नि के सामने संयुक्त रूप से सात कदम उठाना) के मुताबिक नहीं किया जाता है, उसे हिंदू विवाह के रूप में नहीं समझा जाएगा.
शादी एक कमर्शियल ट्रांजैक्शन नहीं है. यह एक गंभीर बुनियादी प्रोग्राम है, जिसे एक पुरुष और एक महिला के बीच संबंध बनाने के लिए मनाया जाता है, जो भविष्य में एक अच्छे परिवार के लिए पति और पत्नी का दर्जा प्राप्त करते हैं. यह इंडियन सोसायटी की एक बुनियादी इकाई है.