ब्यूरो रिपोर्ट: जल प्रकृति प्रदत्त एक अनुपम उपहार है। जल के बिना जीवन संभव नहीं। जल संसाधन सीमित हैं। धरती की कोख इस अमूल्य धरोहर से दिन ब दिन खाली हो रही है। जरूरत है बारिश के पानी को सहेजने की। जल संचयन के लिए पुरखों वाली व्यवस्था सबसे कारगर साबित होगी और इसी को अपनाना होगा।
पृथ्वी संरक्षण समिति के अध्यक्ष राजेंद्र वैश्य कहते हैं कि ताल-तलैया, पोखर और कुआं आदि वर्षा जल संचयन की पुरातन से इकाइयां रही हैं। बरसात में सभी पानी से लबालब भर जाते थे और पूरे क्षेत्र को पानीदार बनाते थे। शहरीकरण एवं अवैध कब्जों के कारण तालाब व पोखर आदि विलुप्त होते जा रहे हैं। सनातन संस्कृति में जल को देवता माना गया है। नदियों के पूजा की परंपरा हमारी संस्कृति है। विभिन्न अवसरों पर तालाब, पोखर एवं कुआं पूजन की परंपरा आज भी कायम है, लेकिन स्थिति दुखद है। कारण कुओं को या तो पाट दिया गया या डस्टबिन बनकर रह गए हैं। कमोवेश यही स्थिति पुराने तालाबों की है। सुखद यह है कि जल समस्या के प्रति लोग जागरूक हो चुके है। सरकारें भी सचेत हैं। जन-जन में अमृत रूपी वर्षा जल की बूंद-बूंद को संचित कर देश को पानीदार बनाने की अभिलाषा जाग्रत हो गई है।
राजेंद्र कहते हैं कि मानव अपने आनन्द के लिए हर सुविधा जुटा सकता है, लेकिन जो प्रकृति अपनी ओर से देती है, वह अनुपम है, अद्वितीय है, अनमोल है। उसे कृत्रिम तौर पर जुटा भी लिया तो उसके वो लाभ मिलना कठिन है। इसमें जल भी प्रकृति की ओर से एक ऐसा उपहार है, जो हर जीव-जंतु के लिए जीवनदायी अमृत के समान है। जल के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। दूसरा पहलू ये भी है इंसान ने पानी का इतना दुरुपयोग किया है, इतना दोहन किया है कि आज पूरी दुनिया जल संकट से जूझ रही है।
विश्व के दूसरे देशों में जल संरक्षण को लेकर काफी काम हुआ है। अब भारत के लोगों को भी इसके लिए जागरुक होना होगा। अन्यथा यहां कब अकाल की परिस्थितियां पैदा हो जाए, कहा नहीं जा सकता। हमारे लिए आज का दिन बेहतर है, जब हम अपने डार्कजोन वाले क्षेत्र को जल से समृद्ध बनने में सहयोग करें। पानी की बचत व संरक्षण करना शुरू करें।