स्वास्थ्य

मोबाइल का अधिक इस्तेमाल कर रहा बच्चों को बेचैन, कहीं आपका बच्चा भी तो नहीं इस बीमारी का शिकार

हेल्थ डेस्क: अलीगंज निवासी अधिकारी ने ऑनलाइन क्लास के लिए बच्चे को नया मोबाइल दिया। दो माह बाद देखा तो वह कई सोशल साइट्स से जुड़ गया था। रात में बार-बार उठकर मोबाइल देखता है। कुछ दिन बाद उसे बेचैनी सहित कई तरह की समस्या हुईं। डॉक्टर ने काउंसलिंग की तो पता चला कि नोमोफोबिया का शिकार है।
केस-2 एक चिकित्सक का बेटा कॉलोनी के किसी दूसरे का मोबाइल बजने पर अपना मोबाइल चेक करने लगता था। यह स्थिति देख चिकित्सक पिता को शक हुआ। उन्होंने काउंसलिंग की और मनोचिकित्सा विभाग के चिकित्सक से संपर्क किया तो पता चला कि वह भी नोमोफोबिया से ग्रसित है।

लखनऊ के गोमती नगर निवासी पारुल इंटरमीडिएट की छात्रा है। वह रात एक बजे अचानक उठ जाती है। मोबाइल पर मैसेज देखने लगती है। उसे नींद में भी मैसेज आने का आभास होता है। यह समस्या पारुल की ही नहीं, तमाम किशोरों और किशोरियों की बनती जा रही है। यह एक तरह का मानसिक डिस्ऑर्डर है। इसे नोमोफोबिया कहते हैं। लगातार केस सामने आने के बाद केजीएमयू ने सर्वे शुरू किया है।

कोरोना काल में बच्चों को छह से आठ घंटे स्क्रीन पर पढ़ाई करनी पड़ रही है। इसके दुष्प्रभाव भी सामने आने लगे हैं। केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग में कई अभिभावकों ने इस तरह की शिकायत की है। कुछेक ने अपने बच्चों की काउंसलिंग भी कराई। प्रतिदिन दो से तीन बच्चों में नोमोफोबिया के लक्षण पाए गए। इसे देखते हुए अब मानसिक रोग विभाग की ओर से ऑनलाइन सर्वे शुरू कर दिया गया है। सर्वे रिपोर्ट के आधार पर ऑनलाइन क्लास चलाने के संबंध में शासन को एडवाइजरी भेजी जाएगी।

मोबाइल फोन का लंबे समय तक उपयोग गर्दन में दर्द, आंखों में सूखापन, कंप्यूटर विजन सिंड्रोम और अनिद्रा का कारण बन सकता है।

किशोरों में ज्यादा पाया जाता है नोमोफोबिया
मोबाइल या अन्य गैजेट प्रयोग करने के बाद बार-बार नोटिफिकेशन पर जाना, बार-बार मैसेज चेक करना, किसी दूसरे की मोबाइल की रिंग बजने पर अपना मोबाइल चेक करने लगना और नींद में भी मोबाइल पर ध्यान लगे रहना, रात में अचानक नींद खुल जाना और मोबाइल चेक करना आदि लक्षण नोमोफोबिया के है। यह किशोरों में ज्यादा पाया जाता है। पहले इस तरह के केस एक हजार में एक या दो पाए जाते थे, लेकिन इन दिनों अनुमान है कि यह 100 में तीन, चार किशोरों में हो रहा है। इसकी वास्तविक स्थिति जांचने के लिए सर्वे शुरू किया गया है। – डॉ. सुजित कर, मनोचिकित्सा विभाग केजीएमयू

मस्तिष्क को नहीं मिल पाता आराम 
नोटिफिकेशन को लेकर बार-बार अलर्ट होने से एक तरह से तंत्रिका तंत्र में खिंचाव आता है। यह एक तरह का ट्रिगर होता है। इसकी लत पड़ने पर नींद प्रभावित होती है। मस्तिष्क को आराम नहीं मिल पाता है, जिसका असर समूचे शरीर पर पड़ता है।  -डॉ. अलीम सिद्दीकी, मानसिक रोग विशेषज्ञ

द फ्रीडम स्टॉफ
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