केरल में आई भयंकर बाढ़ के बाद अब इन दिनों ‘तितली’ का कहर है। बंगाल की खाड़ी से उठे इस तूफान के कारण ओडिशा और आंध्र प्रदेश समेत तटीय इलाकों में हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है। एक आंकड़े के मुताबिक, सिर्फ ओडिशा में 3 लाख से ज्यादा लोग इस साइक्लोन से प्रभावित हुए हैं। शायद ही किसी ने कल्पना की होगी कि जिस नाजुक सी दिखने वाली रंगबिरंगी तितली कभी हमारा मन मोह लेती थी, उसी नाम का एक तूफान इस कदर भयावह होगा।
तूफानों के नाम पांच कमेटियां करती हैं तय
दुनियाभर में आने वाले तूफानों के नाम पांच कमेटियां तय करती हैं- इस्केप टाइफून कमेटी, इस्केप पैनल ऑफ ट्रॉपिकल साइक्लोन, आरए-1 ट्रॉपिकल साइक्लोन कमेटी, आरए-4 और आरए-5 ट्रॉपिकल साइक्लोन कमेटी। बता दें कि भारत की ओर से 8 सदस्यीय कमेटी को जो नाम दिए गए हैं, उनमें ‘अग्नि’, ‘बिजली’, ‘मेघ’, ‘सागर’ और ‘आकाश’ शामिल हैं।
‘तितली’ नाम पाकिस्तान ने दिया
इस तूफान को ‘तितली’ नाम पाकिस्तान ने दिया है। यकीनन आपके मन में पहला सवाल यही आया होगा कि तूफान को तितली नाम क्यों दिया गया? संभव है इसके साथ ही जेहन में हुदहुद, कटरीना, नरगिस, कोरिंगा और भोला जैसे भयंकर तूफानों के नाम भी आ गए होंगे। पहली बात तो यह है कि तूफान और सुनामी को नाम देने की परंपरा इसलिए शुरू हुई कि इससे आम जनता और वैज्ञानिकों में कोई कंफ्यूजन ना हो। दूसरी बात यह कि नामकरण की यह परंपरा 1953 में शुरू की गई थी।
चंद घंटों के लिए ही आते हैं
तबाही मचाने वाले ये चक्रवात भले ही चंद घंटों के लिए ही आते हैं, लेकिन अपने पीछे विनाश की ऐसी लीला छोड़ जाते हैं कि संभलने में दशक बीत जाते हैं। खैर, बात 1953 की है। वर्ल्ड मेटीरियोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन (डब्लूएमओ) और मायामी नेशनल हरीकेन सेंटर ने विनाशकारी तूफान और चक्रवातों के नाम रखने की परंपरा शुरू की। डब्लूएमओ जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेंसी है, जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में आने वाले चक्रवातों के नाम रखती आई है।