भारत का युवा एक तरफ शिकायत करता है कि सरकार उसे रोजगार न दे रही है तो दूसरी तरफ अपनी सामूहिक शक्ति से बिगबॉस जैसे शोज को ट्विटर पर ट्रेंड भी कराता है। जिस मेधा का उपयोग वो किसी कौशल को अर्जित करने में लगा सकता था उस मेधा को उसने सोशल मीडिया के तिकड़म सीखने में लगा दिया। ये तो खैर अपने समय को खपाने का एक ही जरिया है। भारत में ऐसे समयखाऊ तरीके की भरमार है जिससे आप दिन-प्रतिदिन स्वयं को समय और अमुक रोजगार के प्रतिकूल निखारते जाएंगे और फिर दिन-रात रोते रहेंगे। अब सवाल ये है कि भारत मे ऐसी कार्यसंस्कृति आई कैसे?
इस सवाल का एक जवाब है- हिंदुस्तानी टेलीविजन इंड्रस्टी और सोशल मीडिया। भारत में टेलीविजन ने ऐसी क्रांति लाई कि देश की बहुधा माताओं-बहनों का डिस्कोर्स सास-बहू-साजिश तक सिमट गया तो भैया-चाचा लोग ‘तेरे नाम कट’ और क्राइम पेट्रोल में आगे क्या होने वाला है, इसमे तर्कशक्ति लगाने तक मे सीमित रह गया। जहाँ टेलीविजन इंड्रस्टी ने अकर्मण्यता और गैर काबिलियत होने की जबरदस्त बुनियाद रख दी थी तो सोशल मीडिया ने इसका रंग और चोखा कर दिया। अब युवा आत्ममुग्ध भी हो गया। बिना कुछ विशेष किये भी सोशल मीडिया पर मिलने वाली प्रशंसा उसे भारत रत्न से कम न प्रतीत होती है।
अब बात उस देश की करते ह जिस देश से गलबहियां करने के लिए भारत और भारतीय एकदम आतुर रहते है- संयुक्त राज्य अमेरिका की। संयुक्त राज्य अमेरिका में शार्क टैंक नामक शो साल 2009 से प्रसारित होता है जिसका प्रसारण भारत मे बरस 2021 से शुरू हुआ है। हालांकि बहुत कम भारतीयों को इस बारे में पता है क्योंकि उनकी रूचि निक जोनास और प्रियंका चोपड़ा के रिश्ते के फॉलोअप को जानने में है और अगर एकाध शो के बारे में जानकारी है तो वो है- क्वांटिको। इस शो के बारे में भी इससे पता है क्योंकि इसमें प्रियंका चोपड़ा अभिनय करती है।
भारतीयों के इन्हीं रूझानों और रूचि का नतीजा है कि यहाँ लगभग 12 साल बाद ऐसे शोज आ पाते है जो देश की कार्यसंस्कृति और रोजगार परिदृश्य को बदलने का माद्दा रखते है। अमेरिका में जहाँ 500 यूनिकॉर्न कंपनी है वही भारत मे मात्र 88 यूनिकॉर्न कंपनी है। मगर हम भारतीय इस बात पर दुःखी होने से ज्यादा इस तथ्य के लिए खुशी मनाते है कि सुंदर पिचई, सत्या नडेला जैसे भारतीय अमेरिका की बड़ी कंपनियों के सीईओ है। भारतीयों की एक खास अदा है कि उन्हें स्वयं की असफलता को छिपाना बहुत अच्छे से आता है; इसके लिए वो अपने आस-पड़ोस के और उससे बढ़कर देश के कुछ सफल लोगों की कहानियों की किस्सागोई करते है बल्कि इसका महोत्सव मनाते है।
हालांकि सभी भारतीय ऐसे न है। कुछ भारतीय जबरदस्त उद्यमी स्वभाव के है मने उनके भीतर प्रबल व्यावसायिक निष्ठा है और एक ऐसा विचार है जो दुनिया बदल सकता है। मगर इस विचार को यथार्थ में बदलने के लिए उनके पास धन न है। उन्हें ये धन मुहैया कराते है- शार्क इन्वेस्टर, एंजल इन्वेस्टर और वेंचर कैप्टलिस्ट। शार्क टैंक शो की अवधारणा भी इन्हीं समस्याओं के समाधान के इर्द गिर्द रची गयी है। भारत मे ये अपनी तरह का अनूठा प्रयोग है बल्कि उस देश के टेलीविजन जगत और उसके दर्शकों के लिए क्रांति सरीखा भी है जहाँ पर टीवी के द्वारा मनोरंजन के नाम पर अब तक बस दिमाग को जड़ करने वाला कूड़ा-कचड़ा ही परोसा गया है।
ऐसे समय मे जबकि भारत मे 53 मिलियन लोग बेरोजगार है और बेरोजगारी दर 7% है उस समय मे साल 2021 में स्टार्टअप द्वारा 1.4 मिलियन रोजगार का मुहैया कराना इस क्षेत्र की महत्ता बतलाने के लिए काफी है। अब शार्क टैंक शो की बात करते है। ये शो ऐसे स्टार्टअप को वित्तीय मदद से लेकर उनके कामों की स्केलिंग के लिए उन्हें तकनीकी और व्यवसायिक मदद भी उपलब्ध कराता है। मसलन आपका विचार तो बहुत शानदार है मगर अभी उसमें थोड़े से और नवोन्मेष अर्थात जुगाड़ की गुंजाइश है तो यहाँ के विशेषज्ञ उस दिशा में आपकी सहायता करेंगे।
अगर इस शो के द्वारा प्रमोट किये गए कुछ एक स्टार्ट अप की बात करूँ तो जेहन में शरद असानी जी का नाम आता है। असानी जी ने छत के पंखे द्वारा आत्महत्या किये जाने को रोकने के लिए आत्महत्यारोधी छत का पंखा बनाया है जिसे की शार्क बंसल जी द्वारा ₹50 लाख की आर्थिक मदद दी गई। बंसल जी ने यहाँ लाभ की जगह सामाजिक रूचि को वरीयता दी। चूंकि हिंदुस्तान में महिलाओं की स्टार्टअप में मात्र 14% भागीदारी है। ऐसे में अदिति गुप्ता की मेंस्ट्रूपीडिया कॉमिक बुक को प्रमोट करना महिलाओं को उद्यमिता की ओर आकर्षित करने के लिए एक पहल सरीखा है। कृषि क्षेत्र में भी नवोन्मेषी विचार को इस शो ने प्रमोट किया। महाराष्ट्र के जुगाड़ू कमलेश के उस विचार को यहाँ धन मुहैया कराया गया जिसके तहत किसानों की कृषिजन्य लागत तो घटेगी ही साथ ही साथ कीटनाशक के प्रभाव को भी कम किया जा सकेगा।
हालांकि इस शो में भी कुछ सुधार की गुंजाइश है। जैसे इस शो में एक जज है- अशनीर ग्रोवर। वो किसी स्टार्टअप और उसके मालिक के विचार को बेहद ही असभ्यता के साथ खारिज करते है- ये सब दोगलापन है, इससे वाहयात उत्पाद मैंने न जिंदगी में देखा है और न कभी देखूंगा आदि-आदि। माना कि टीवी शो के टीआरपी को बढाने की अपनी व्यवसायिक मजबूरियाँ है। मगर इस शो की अवधारणा कुछ हटके है तो उसकी मंचीयता भी कुछ अलग हट के होनी चाहिए। फिर भी इस शो को ढेर सारी शुभकामनाएं कि ये शो भारतीयों में सरकार और सरकारी नौकरी के भरोसे ही बैठे रहने की मानसिकता के विरुद्ध जागरूकता का सृजन करें। इसके अलावा ये शो भारत के युवाओं को उस दिशा में मोड़े जहाँ पर इनकी चाहत ट्विटर पर किसी मुद्दे को ट्रेंड कराने की जगह कुछ नया बनाने, कुछ नया करने की ओर उन्मुख हो।
संकर्षण शुक्ला
(लेखक युवा टिप्पणीकार हैं)
(सम्पादन का अधिकार सुरक्षित है और बिना अनुमति के अख़बार पत्रिका या किसी वेबसाइट पर प्रकाशन करने की इजाज़त नहीं है।)