श्रीनगर : सर्वाेच्च न्यायालय में अनुच्छेद 35-ए को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई टल गई है। बताया जा रहा है कि तीन जजों की बेंच में से एक जज छुट्टी पर थे, जिस कारण सुनवाई सोमवार को नहीं हो सकी। तीन जजों की बेंच में जस्टिस चंद्रचूड़ भी शामिल हैं, जो कि छुट्टी पर हैं। अब मामले की अगली सुनवाई 27 अगस्त को होगी। अनुच्छेद 35-ए को पहले की तरह कुछ समय के लिए स्थगित किया जाता है या नहीं। इस पर पूरे देश की निगाहें टिकी हुई हैं। अनुच्छेद के हटने की आशंका को देखकर कश्मीर में बने तनाव के माहौल बीच सोमवार को मामले की सुनवाई नहीं हुई। हालांकि ये तनाव फिलहाल खत्म होता नजर नहीं आ रहा है। बता दें कि अनुच्छेद 35-ए के तहत जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष शक्तियां मिली हुई हैं।
क्या यह मसला संविधान पीठ जाना चाहिए या नहीं
सोमवार को अनुच्छेद 35-ए पर सुनवाई टल जाने के कारण अब अगली सुनवाई में ही यह तय हो सकेगा कि इस मसले की सुनवाई संविधान पीठ करेगी या नहीं। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र ने याचिकाकर्ता से यह सवाल पूछा है कि क्या यह मसला संविधान पीठ जाना चाहिए या नहीं। सीजेआइ ने कहा कि हमें यह तय करने की जरूरत है कि क्या इस मामले को पांच जजों की बेंच के पास भेजें या नहीं। इसे अब तीन जजों की कमेटी तय करेगी। दरअसल, संविधान पीठ की सिफारिश के लिए तीन जज चाहिए, लेकिन सोमवार को अदालत में दो जज ही मौजूद थे। जस्टिस चंद्रचूड़ अभी छुट्टी पर थे, इस कारण यह फैसला नहीं हो सका।
अलगाववादियों के बंद का असर दिखा
धारा 35-ए के खिलाफ सुनवाई को सुप्रीम ने सोमवार को 27 अगस्त तक स्थगित कर दिया गया। लेकिन इस याचिका के खिलाफ अलगाववादियों द्वारा आयोजित दो दिवसीय बंद दूसरे दिन भी पूरी तरह प्रभावी नजर आया। इस बीच पुलिस ने धारा 35-ए और धारा 370 के संरक्षण को यकीनी बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक कार्यालय में ज्ञापन देने जा रहे कश्मीर इकोनामिक एलांयस के मार्च को बलपूर्वक नाकाम बना दिया।
गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर के स्थानीय नागरिकों को परिभाषित करने व उनके लिए विशेष सुविधाओं का प्रावधान करने वाली भारतीय संविधान की धारा 35-ए के खिलाफ दायर याचिका को रद करने के लिए अलगाववादियों के साझा संगठन ज्वाइंट रेजिस्टेंस लीडरशिप (जेआरएल) ने दो दिवसीय (पांच-छह अगस्त) कश्मीर बंद का आहवान कर रखा है। बंद को कश्मीर के सभी व्यापारिक, सामाजिक संगठनों और ट्रेड यूनियनों ने भी समर्थन दिया है। हालांकि नेकां और पीडीपी ने बंद का खुलकर समर्थन नहीं किया है,लेकिन परोक्ष रूप से यह संगठन भी इस मुद्दे पर बंद के हक में हैं।
यासीन मलिक पुलिस के पहुंचने से पहले ही भूमिगत
अलगाववादियों द्वारा इस सिलसिले मे आयोजित धरना-प्रदर्शनों को रोकने के लिए प्रशासन ने अलगाववादी हुर्रियत चेयरमैन मीरवाईज मौलवी उमर फारुक, कटटरपंथी सईद अली शाह गिलानी, पीपुल्स पोलिटीकल पार्टी के चेयरमैन हिलाल अहमद वार, तहरीक-ए-हुर्रियत कश्मीर के प्रमुख मोहम्मद अशरफ सहराई समेत सभी प्रमुख अलगाववादी नेताओं को उनके घरों में शनिवार की रात ही नजरबंद कर दिया था। जबकि जम्मू- कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के चेयरमैन यासीन मलिक नजरबंदी से बचने के लिए अपने घर पर पुलिस के पहुंचने से पहले ही कहीं भूमिगत हो गए। बनिहाल-बारामुला रेल सेवा को भी अगले आदेश तक बंद कर दिया गया है।
बंद का असर नजर आया
इस बीच सोमवार दूसरे दिन भी पूरी वादी में बंद का असर नजर आया। सभी दुकानें और व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद रहे। सड़कों पर वाहनों की आवाजाही भी नाममात्र ही रही। ग्रीष्मकालीन राजधानी के डाऊन-टाऊन में कई जगह निषेधाज्ञा को सख्ती से लागू किया गया था। दक्षिण कश्मीर के शोपियां, अनंतनाग, पहलगाम और कुलगाम में भी कई जगह प्रशासन ने हालात को काबू में रखने के लिए धारा 144 को लागू किया गया।