कांग्रेस में सुधार को लेकर आवाज उठी, बदले में आरोप प्रत्यारोप हुए, कुछ आश्वासन दिए गए और फिर बात आई गई हो गई। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखने वाले 23 वरिष्ठ नेताओं में शामिल आनंद शर्मा को अब तक यह पता नहीं कि सुधार की गाड़ी कब चलेगी। पत्र विवाद के बाद पहली बार किसी मीडिया से रूबरू होते हुए थोड़ी खीझ, थोड़ी लाचारगी और थोड़े गुस्से से भरे आनंद शर्मा दैनिक जागरण के सहायक संपादक संजय मिश्र से बातचीत में बेबाकी से कहते हैं- आज से पहले कांग्रेस कभी इतनी कमजोर नहीं थी। वह कहते हैं कि बैठक में सवाल उठाने वाले नेताओं को साथ जो कुछ हुआ था वह ‘अभियान’ था। युवा कांग्रेस में चुनाव शुरू कराने वाले राहुल के फैसले पर भी सवाल उठाते हैं और कहते हैं- अब वहां परिवारवाद का सिलसिला शुरू हो गया है। संगठन में ऐसे लोग हम पर सवाल उठा रहे हैं जो कभी कांग्रेस को छोड़ गए थे। पेश है बातचीत के अंश-
कांग्रेस में आपके समेत 23 नेताओं के पत्र ने जबरदस्त उबाल की स्थिति है, इस पत्र को लिखने का उद्देश्य क्या था?
जिस तरह की बिखराव की स्थिति हमने हाल में कांग्रेस में देखी है, अनिश्चितता की उस पर हम सब चिंतित हैं। मुख्य कारण है कि देश में आज गहरा संकट है। राजनीति और प्रजातंत्र का जो नैरेटिव है, उस पर भाजपा और आरएसएस की सोच हावी है और उनका वर्चस्व है। अगर विपक्ष कमजोर होगा और उसका सीधा नुकसान हमारी संस्थाओं, लोगों के आत्मविश्वास पर है और भारत के आम नागरिक के मूल अधिकारों में है। यही हमारी चिंता का मुख्य कारण था।
इस कसौटी पर आज कांग्रेस कहां खड़ी है?
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 135 साल पुराना संगठन है। राष्ट्रीय आंदोलन में हर साल कांग्रेस के अध्यक्ष का चुनाव होता था, जिसमें कभी पूरब, पश्चिम, तो कभी दक्षिण से अध्यक्ष चुना जाता था। लेकिन मैं कह सकता हूं कि कांग्रेस आज से पहले कभी इतनी कमजोर नहीं थी। क्योंकि संगठन की अनदेखी की गई है और यह बात हमने कांग्रेस अध्यक्ष को भेजी गई चिठ्ठी में भी कही है। पिछले दो लोकसभा चुनाव में 2014 और 2019 में एक में लगभग साढे दस करोड़ नया वोटर तो दूसरे में आठ करोड़ नया वोटर आया। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 11.92 करोड़ वोट मिला और भाजपा को 7.84 करोड़ वोट मिला। जब 2014 में साढे़ दस करोड़ नया वोटर आया तो इस चुनाव में हमारा वोट घट कर 10.69 करोड़ वोट हो गया। यानि करीब 1.23 करोड़ वोट हमारा कम हुआ जबकि जबकि भाजपा 7.84 करोड़ से बढ़कर 17.60 करोड़ पहुंच गई।
पांच साल हम विपक्ष में रहे भाजपा सरकार ने नोटबंदी से लेकर त्रुटिपूर्ण जीएसटी समेत बड़ी गलतियां की जिसे कारोबार-रोजगार टूटे। देश में इसको लेकर हताशा और निराशा थी और लोगों ने कांग्रेस की ओर देखा कि क्या ये हमारे लिए विकल्प हैं। 2019 के चुनाव में आठ करोड़ नए वोटर जुड़े तो भाजपा का वोट बढ़कर 22.94 करोड़ पहुंच गया। जबकि कांग्रेस को 11.94 लाख वोट ही मिला। यानि देश में साढे अठारह करोड़ नये वोटर जुडऩे के बाद भी भाजपा और कांग्रेस के बीच वोट का अंतर बहुत बड़ा हो गया। यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि कांग्रेस इतनी कमजोर कभी नहीं थी। इस हालत में भी हम इनकार के मूड में रहें तो हम अपनी पार्टी के साथ न्याय नहीं कर रहे। कांग्रेस के प्रति हमारी प्रतिबद्धता है तो मेरे साथियों के साथ पूरी पार्टी के लिए गंभीर आत्मचिंतन जरूरी है।
क्या इन कमजोरियों पर कोई खुली चर्चा अब तक हो पायी है?
जब ये नतीजे सामने आए तो राहुल गांधी जी ने त्यागपत्र दे दिया और हार की वजहों पर चर्चा नहीं हुई। हमने राहुल को चुना था और आग्रह किया था कि इस्तीफा न दें। उस कार्यसमिति की बैठक में पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह ने भी हार की पड़ताल के लिए कमिटी बनाने और उस पर कार्यसमिति में चर्चा किए जाने की बात कही थी। जैसाकि 2014 के चुनाव के बाद एंटनी समिति बनी थी। 2019 चुनाव के बाद राहुल गांधी के इस्तीफे के 15 महीने हो गए, इस पर कोई भी आत्मचिंतन या विश्लेषण नहीं हुआ बल्कि इस शब्द को ऐसा बना दिया गया है जैसे कि यह अप्रजातांत्रिक शब्द है। हम कैडर बेस पार्टी नहीं और हमारा आधार युवा और छात्र संगठनों के जरिये बढ़ता था वहां पर मेरिट और आम सहमति से लोग आते थे। अब वहां चुनाव होने लगे हैं, जिसमें पैसा और वंशवाद चल रहा है। बड़े नेता के पुत्र-पुत्री और पैसे वालों का संगठन पर कब्जा होता जा रहा है। जिस कांग्रेस में आजादी से पहले और उसके बाद भी कांग्रेस के अध्यक्ष चुनाव से बने। कांग्रेस की कार्यकारिणी में जो संविधान ने कहा है उसका पालन होना चाहिए।
आप कांग्रेस के हित में पत्र लिखने की बात कह रहे मगर कार्यसमिति की बैठक में तो आप लोगों पर भारी हमले हुए और इसे पार्टी नेतृत्व के खिलाफ बगावत बताया गया, क्या वाकई यह बगावत है?
अगर विद्रोह शब्द का मतलब बदल दें कि सच्ची तस्वीर पेश करना और नि:संकोच राष्ट्र हित और कांग्रेस के हित में अपनी बात कहना बगावत है तो मैं इसे स्वीकार करता हूं। सबसे पहले पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने पिछले साल कार्यसमिति की बैठक में आत्मचिंतन की बात कही थी। इससे कांग्रेस मजबूत होगी कमजोर नहीं।
पत्र में उठाए गए मुद्दों पर कार्यसमिति में चर्चा क्यों नहीं हो पायी?
कार्यसमिति में 23 लोग हैं मगर इस बैठक में 60 लोग थे। पर इस पत्र को बहुत कम लोगों ने देखा था केवल चार-पांच लोगों के पास ही इसकी कॉपी थी। बाकी किसी ने न पत्र देखा था न ही पता था। मगर बैठक से एक दिन पहले पूरे देश से बयान दिए गए सांसदों की ओर से और सबका मजमून भी एक ही था। जिसे साफ है कि यह एक तरह का अभियान था, जिसमें मिथ्या प्रचार किया गया। कुछ साथी नेताओं ने बैठक में ऐसे शब्द इस्तेमाल किए, जो शिष्टाचार के नाते स्वीकार्य नहीं हैं। आज जो कार्यसमिति में हमको नसीहत देने वाले कई लोग थे, वे इंदिरा जी को बुरे शब्द कह कर छोड़ कर चले गए थे।
राहुल गांधी समेत कई नेताओं ने पत्र लिखने के समय और संवेदनशीलता को लेकर सवाल उठाया इस पर क्या कहेंगे?
भावनाओं की बात हो माता या परिवार की बात है लोग कहते हैं कि किसी को कष्ट नहीं होना चाहिए। तो मैं आज आप से कहता हूं कि सबसे बड़ा कष्ट मेरी मां को हुआ जब हमको गद्दार और जयचंद कहा गया जिन्होंने खुद हमारे खून से सने कपड़े उतारे थे, जब मैं कांग्रेस के लिए लड़ाई में लाठी-डंडों से पीटा जाता था। (बेहद भावुक होते हुए आखों में छलक आए आंसू रोकते हुए), हम तो इंदिरा गांधी, संजय गांधी, राजीव गांधी के काल से लेकर अब तक तीन पीढ़ियों से कांग्रेस के साथ हैं।
पार्टी के एक वर्ग की राय में इस पत्र को लिखने का मकसद राहुल गांधी को दुबारा कांग्रेस अध्यक्ष बनने से रोकना था, क्या यह बात सही नहीं है?
ऐसा नहीं है हमने तो कांग्रेस के और देश के हालात को देखते हुए पत्र लिखा था। अध्यक्ष चुनना पार्टी का फैसला होता है। राहुल गांधी को हमने अध्यक्ष चुना था और हमने नहीं कहा था कि वे त्यागपत्र दें। राहुल गांधी ने खुद इस्तीफा देते हुए कहा था कि कोई गैर गांधी अध्यक्ष बनना चाहिए।
सोनिया गांधी की बीमारी के मद्देनजर पत्र लिखने के समय और संवेदनशीलता पर उठाई गई आपत्तियों का क्या जवाब है?
पांच महीने से आपस में कोई बैठक नहीं हुई। वर्चुअल प्लेटफार्म पर संगठन की कोई संवेदनशील चर्चा नहीं हो सकती। चूंकि 30 जुलाई को राज्यसभा सांसदों के साथ सोनिया जी ने बैठक बुलाई थी, इसीलिए बैठक से पूर्व पत्र देना उचित नहीं लगा। मगर इस बैठक के बाद ही उसी दिन सोनिया जी स्वास्थ्य वजहों से अस्पताल में भर्ती हो गईं। हम सभी ने उसी समय तय किया कि जब तक वे स्वस्थ नहीं हो जातीं, यह पत्र नहीं भेजा जाएगा। एक अगस्त की शाम सोनिया जी अस्पताल लौट आयीं। इसके बाद एक हफ्ते में तीन बार गुलाम नबी आजाद ने फोन कर सेहत की जानकारी ली और जब यह मालूम हो गया कि सब ठीक है तब 7 अगस्त को पत्र पर तारीख डाली गई और इसे 8 अगस्त की शाम को भेजा गया। हमने पूरे संवेदनशील रहे, तभी तो इतना इंतजार किया।
कांग्रेस के भविष्य के लिए आप लोगों ने जो मुद्दे उठाए हैं, क्या उनके समाधान का कोई संकेत आप सब को मिला है?
जी नहीं। कहा तो गया था कि एक कमिटी बनेगी। हम अपेक्षा करते हैं कि इस पर खुले मन से चर्चा होगी। सोनिया जी ने कार्यसमिति में जो अंतिम शब्द कहे थे, उसमें काफी परिपक्वता और संवेदनशीलता थी।
लोकसभा व राज्यसभा के पदाधिकारियों के चयन में इनकी अनदेखी क्यों हो गई?
यह कांग्रेस अध्यक्ष का विशेषाधिकार है और इस पर टिप्पणी उचित नहीं।
आप लोगों के हिसाब से कांग्रेस की राजनीतिक वापसी का रास्ता कैसे बनेगा?
हमने आज की चुनौती की गंभीरता को देखते हुए पत्र में इसका भी उल्लेख किया है। आज समय आ गया है कि कांग्रेस पहले अपने को संगठित कर विपक्ष का एक बड़ा मंच बनाए, जिसमें तमाम प्रगतिशील व प्रजातांत्रिक दल आ जाएं। इसमें उनलोगों को भी शामिल किया जाए जो बड़े-बड़े नेता हैं और कई राज्यों में तो मुख्यमंत्री हैं। यह जिम्मेवारी कांग्रेस की है और वह ऐसा करती है तो देश को एक विकल्प दिखेगा। आज जो लगता है कि मोदी का विकल्प नहीं है तो हम इस रास्ते यह विकल्प दे सकते हैं।
साभार- दैनिक जागरण