जून का तीसरा हफ्ता आम हफ्तों जैसा ही था। बीजेपी प्रवक्ताओं ने कांग्रेस पर वैक्सिनेशन अभियान का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया। जबकि अखबारों में दिए विज्ञापनों और गली-मोहल्लों में लगी पोस्टर-बैनर के जरिये मुफ्त टीकाकरण के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी प्रचारित करने में सरकार जुटी रही।
बहरहाल, अब तो यह लोगों को भी पता चल चुका है कि सभी वैक्सीन मुफ्त नहीं हैं। अब भी केंद्र सरकार 75 फीसदी वैक्सीन खरीद रही है और बाकी 25 फीसदी निजी अस्पताल ले रहे हैं और जो पैसे दे सकते हैं, उन्हें कीमत लेकर टीके लगा रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ी चिंता की बात तो यह है कि जिन लोगों को मुफ्त में वैक्सीन मिली, उनमें से कितनों को असली लगी और कितनों को नकली, कोई नहीं जानता। कई जगहों पर नकली वैक्सीन के मामले सामने आए हैं और कई सेंटरों पर तो वैक्सिनेशन सर्टिफिकेट भी नहीं दिए गए। और तो और, दिल्ली की ही दूरदराज की गरीब बस्तियों में सर्टिफिके टके नाम पर अस्पष्ट-सी लिखावटके साथ कागज का टुकड़ा थमा दिया जा रहा है।
कोलकाता में अभिनेत्री मिमी चक्रवर्ती ने एक स्पेशल शिविर पर संदेह होने पर पुलिस को बुला लिया और पुलिस ने पाया कि शिविर वाले नकली नगर निगम कर्मचारी बनकर वहां डेरा जमाए हुए थे। मुंबई में एसवी रोड के पॉश इलाके में जब लोगों को अलग-अलग अस्पताल के नाम से सर्टिफिकेट आने लगे तो अपार्टमेंट के लोगों को संदेह हुआ और उन्होंने पुलिस से शिकायत की लेकिन इससे पहले वे पांच लाख रुपये दे चुके थे। पुलिस ने इस मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया और तब पता चला कि वे लोग ऐसे नौ शिविर लगाकर लोगों को ठग चुके हैं।
अव्यवस्था का ऐसा आलम है कि किसी व्यक्ति के लिए यह जानना लगभग असंभव ही है कि उन्हें असली वैक्सीन मिली या नकली या फिर उन्हें सादा पानी ही दे दिया गया। इन सबके बीच सरकार वैक्सिनेशन के बारे में लंबे-चौड़े दावे कर रही है। अब राज्यों को खुद तो वैक्सीन खरीदनी नहीं पड़ रही लेकिन अब भी वे घाटे में ही हैं। अनुमान के मुताबिक ही बीजू जनता दल के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. अमर पटनायक ने कहा, ‘सहकारी संघवाद का हश्र देखिए। राज्य का केवल 37 फीसदी संसाधन पर अधिकार है लेकिन उनसे देश का 58 फीसदी खर्च कराया जा रहा है। केंद्र 63 फीसदी संसाधन उगाहता है लेकिन कुल खर्च का केवल 42 फीसदी वहन करता है।’
राहुल गांधी ने महामारी के दौरान खराब प्रबंधन पर 150 पन्नों का श्वेतपत्र जारी किया और हमेशा की तरह केंद्रीय मंत्रियों ने उनका मखौल उड़ाया। स्मृति ईरानी ने उन्हें ‘ज्ञानी बाबा’ कहा तो बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने पूरे मामले को ही अजीब-सा मोड़ देते हुए ट्वीट किया कि सरकार को बेहतर तरह से चीजों का प्रबंधन करने की सलाह देने से पहले राहुल गांधी को यह बताना चाहिए कि उन्होंने वैक्सीन ली है क्या! टीवी एंकर भी इस अभियान में पीछे नहीं रहे। उनमें से कई ने विपक्ष के प्रवक्ताओं से सवाल किए कि वैक्सिनेशन अभियान के लिए आखिर वे प्रधानमंत्री की तारीफ क्यों नहीं करते। कुछ नया नहीं… इस हफ्ते भी वही पुराना राग।
21 जून को विश्व रिकॉर्ड बनाने की ऐसी धुन कि टीवी स्क्रीन, अखबारों से लेकर सोशल मीडिया पर इस तरह का संदेश छाया रहा- ‘बधाई! 21 जून को 86.16 लाख लोगों को कोविड-19 वैक्सीन लगाई गई। एक दिन में सबसे अधिक लोगों की वैक्सिनेशन का विश्व रिकॉर्ड!’ लोगों को पता ही वहीं कि चीन 1 जून, 2021 से ही औसतन 1.83 करोड़ डोज रोजाना दे रहा है जबकि भारत का औसत महज 50 लाख डोज ही है। 23 जून, 2021 तक भारत का कुल वैक्सीन कवरेज 29.46 करोड़ ही है।
चीन जून में रोजाना 2 करोड़ लोगों का वैक्सिनेशन कर रहा है और इस संदर्भ में एक और तथ्य पर गौर करने की जरूरत है कि 21 जून को सरकार ने कितनी वैक्सीन बांटी। पिछले 20 दिनों की तुलना में 21 जून को सरकार ने 180 फीसदी अधिक वैक्सीन उपलब्ध कराई और इसका ज्यादा हिस्सा बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, बिहार, गुजरात और हरियाणा को गया। 21 जून को उपलब्ध कराई गई वैक्सीन का 58 फीसदी हिस्सा इन छह राज्यों को मिला। ऐसा किस आधार पर किया गया? राजनीति? पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने मध्य प्रदेश की ओर इशारा करते हुए ट्वीट किया- रविवार को इकट्ठा करना, सोमवार को दे देना और मंगलवार से फिर वही सुस्त चाल।
एक ही दिन में रिकॉर्ड वैक्सिनेशन का यही राज है। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में 20 जून को केवल 692 डोज दिए गए जबकि अगले ही दिन 16.93 लाख। सोचने वाली बात तो यह भी है कि वैक्सिनेशन में विश्व रिकॉर्ड से पहले और उसके बाद टीका देने की रफ्तार क्या रही। कोई सरकार कोविड-19 से सफलतापूर्वक निपटने का दावा तब तक नहीं कर सकती जब तक वह 40-50 फीसदी लोगों का टीकाकरण न कर ले।