बृजेश यादव, लखनऊ: केजीएमयू में प्राइवेट प्रैक्टिस का नया मामला सामने आया है। आरोप है कि ईएनटी विभाग के एक डॉक्टर ने केजीएमयू आए एक मरीज को जल्दी ऑपरेशन का झांसा देकर निजी अस्पताल में भर्ती करवाया, फिर वहीं पर ऑपरेशन किया। इसके बाद मरीज की हालत बिगड़ने लगी तो उसे केजीएमयू के शताब्दी फेज-दो में वेंटिलेटर पर भर्ती करवाया, जहां उसकी मौत हो गई।
पीड़ित परिवार ने मदेयगंज पुलिस और केजीएमयू प्रशासन से इसकी शिकायत की है। इस पर केजीएमयू ने विभागीय जांच शुरू करवाई है। वहीं, अडिशनल डीसीपी सेंट्रल मनीषा सिंह का कहना है कि पीड़ित की तहरीर पर सीएमओ से रिपोर्ट मांगी गई है। उनकी रिपोर्ट पर आगे की कार्रवाई होगी।
लखीमपुर निवासी सुरेंद्र सिंह ने शिकायत में बताया कि उनकी पत्नी पूनम मौर्य (32) की आवाज भारी हो गई थी। वह 23 सितंबर को पूनम को इलाज के लिए केजीएमयू लाए थे। यहां कान-नाक-गला (ईएनटी) विभाग में दिखाने पर डॉक्टरों ने बताया कि गले के भीतर मांस बढ़ गया है। इसे काटकर निकालने के लिए डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह दी। इसके बाद विभाग के डॉ. रमेश कुमार ने केजीएमयू में भर्ती की तारीख काफी दिन बात मिलने की बात कही और खदरा में पक्का पुल के पास केडी अस्पताल में बुलाया, जबकि केजीएमयू में इस ऑपरेशन के लिए कोई वेटिंग नहीं होती।
डॉक्टर के कहने पर भी सुरेंद्र निजी अस्पताल में जाने को तैयार नहीं हुए और वापस लखीमपुर चले गए। इसके बाद डॉ. रमेश ने अपने सहयोगी से कई बार फोन करवाया और ऑपरेशन में देरी होने पर दिक्कत होने की बात कही। इस पर सुरेंद्र 25 अक्टूबर को अपनी पत्नी पूनम को लेकर केडी अस्पताल पहुंचे।
थाने में दी तहरीर में सुरेंद्र ने केडी अस्पताल में ऑपरेशन के बाद ऑक्सिजन सिलिंडर तक न मिलने का आरोप लगाया है। सुरेंद्र ने एनबीटी को बताया कि 25 अक्टूबर की दोपहर करीब एक बजे उनकी पत्नी को भर्ती किया गया। इस दौरान केजीएमयू के डॉ. रमेश भी मौजूद थे। ऑपरेशन शाम करीब पांच बजे शुरू हुआ।
कुछ ही देर बाद ही ओटी से पूनम के कराहने की आवाज आने लगी। कर्मचारियों से पूछने पर पता चला कि ऑपरेशन में कुछ गड़बड़ हो गई है और वहां ऑक्सीजन सिलिंडर भी नहीं है। ऐसे में मरीज को ज्यादा देर तक नहीं रखा जा सकता। इसके बाद अस्पताल प्रबंधन ने मरीज को वेंटिलेटर की जरूरत जताते हुए हाथ खड़े कर दिए।
निजी अस्पताल के साथ केजीएमयू के डॉ. रमेश की मिलीभगत ऐसी थी कि ऑपरेशन में गड़बड़ी के बाद मरीज को सीधे शताब्दी फेज-दो में लाकर वेंटिलेटर पर भर्ती करवा दिया। आम तौर पर किसी मरीज को वेंटिलेटर के लिए पहले ट्रॉमा सेंटर भेजा जाता है। वहां नंबर नोट करवाने के बाद कहा जाता है कि वेंटिलेटर खाली होने पर बुलाया जाएगा, लेकिन आरोपित डॉक्टर ने मरीज को ट्रॉमा सेंटर में भेजे बिना सीधे विभाग में वेंटिलेटर दिलवा दिया।
क्या कहते है नियम?
प्रदेश सरकार का आदेश है कि एमबीबीएस और एमएस करने के बाद सरकारी मेडिकल कॉलेज, यूनिवर्सिटी या अस्पताल में दो साल काम करना पड़ेगा। इसका बॉन्ड भरना होता है। इसी नियम के तहत डॉ. रमेश को केजीएमयू में तैनाती मिली थी। केजीएमयू में प्राइवेट प्रैक्टिस पर रोक है। इसके लिए बाकायदा नॉन प्रैक्टिस अलाउंस मिलता है। यह नियम बॉन्ड पर तैनात सीनियर रेजिडेंट पर भी लागू होता है।
प्राइवेट प्रैक्टिस के आरोप साबित होने पर बर्खास्तगी हो सकती है। वहीं, ऑपरेशन के दौरान मेडिकल नेग्लिजेंसी की जांच सीएमओ स्तर से होती है। इस जांच में आरोपों की पुष्टि हो गई तो नैशनल मेडिकल काउंसिल से डॉक्टर का रजिस्ट्रेशन निरस्त करने की सिफारिश की जा सकती है।