कोरोना महामारी का कारण बने सार्स-कोव-2 वायरस का नया वैरिएंट ओमिक्रोन म्युटेशन के मामले में अब तक के सभी वैरिएंट पर भारी है। इसमें 50 से ज्यादा म्युटेशन पाए गए हैं। अकेले 32 म्युटेशन इसके स्पाइक प्रोटीन में हुए हैं। स्पाइक प्रोटीन ही वायरस को मनुष्य की कोशिकाओं में प्रवेश करने में सक्षम बनाता है। अब तक की जानकारी बताती है कि यह पहले के विभिन्न वैरिएंट की तुलना में ज्यादा संक्रामक हो सकता है। इसके घातक होने के बारे में अभी पर्याप्त आंकड़े नहीं मिले हैं।
एक व्यक्ति के शरीर से दूसरे के शरीर में पहुंचने के क्रम में अक्सर वायरस में कुछ बदलाव होने लगते हैं, जिन्हें म्युटेशन कहा जाता है। जितने ज्यादा लोग संक्रमित होते हैं, म्युटेशन की आशंका भी उतनी बढ़ती जाती है। यही म्युटेशन नए वैरिएंट के बनने का कारण होते हैं। सार्स-कोव-2 के मामले में चिंता की बात यही है कि इस समय जो वैरिएंट है, वह दो साल पहले वुहान में मिले वायरस से पूरी तरह अलग है। यही विज्ञानियों की चिंता का असली कारण है कि कहीं नया वैरिएंट मौजूदा टीकों के प्रभाव हो खत्म न कर दे। राहत की बात यह है कि अब तक किसी वैरिएंट को लेकर ऐसा प्रमाण नहीं मिला है।
विज्ञानियों का मानना है कि ओमिक्रोन ऐसे किसी व्यक्ति के शरीर में पनपा है, जो इम्यून सप्रेस्ड था। इम्यून सप्रेस्ड ऐसे लोगों को कहा जाता है जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली सही काम नहीं करती है और कई बार अपने ही शरीर को नुकसान पहुंचाने लगती है। एड्स के मरीज इसी श्रेणी में रखे जाते हैं। विज्ञानियों का कहना है कि किसी एड्स के मरीज के शरीर में ओमिक्रोन वैरिएंट विकसित हुआ होगा। डेल्टा वैरिएंट भी ऐसे ही पनपने का अनुमान है।
वैरिएंट के बनने की प्रक्रिया से स्पष्ट है कि कम संक्रमण ही नए वैरिएंट को बनने से रोक सकता है। इसलिए मास्क, शारीरिक दूरी और हैंड सैनिटाइजेशन जैसे बचाव के सभी साधनों का प्रयोग करते रहना ही सही विकल्प है। इसके अलावा, टीकाकरण भी इससे बचने की अहम राह है। मौजूदा टीके अभी सभी वैरिएंट पर कारगर पाए गए हैं। पूर्ण टीकाकरण करा चुके व्यक्ति में संक्रमण की आशंका कम हो जाती है। इससे संक्रमण की चेन टूटती है और नया वैरिएंट नहीं बन पाता है।
ज्यादा संक्रमण की स्थिति में वायरस के वैरिएंट लगातार बनते रहते हैं। कभी-कभी ऐसा भी देखने में आता है कि कागजों पर कोई वैरिएंट बहुत घातक जान पड़ता है, लेकिन असल जिंदगी में उनका उतना असर नहीं दिखता है। कोरोना वायरस का बीटा वैरिएंट इसका उदाहरण है। यह वैरिएंट इस साल की शुरुआत में मिला था। शोध में विज्ञानियों ने पाया कि बीटा वैरिएंट में इम्यून सिस्टम से बचकर निकलने की खूबी थी। इसलिए यह आशंका जताई गई कि इससे टीकों का प्रभाव कम हो सकता है। हालांकि कुछ समय बाद ही ज्यादा संक्रमण क्षमता वाले डेल्टा वैरिएंट ने अपनी जगह बना ली। धीरे-धीरे डेल्टा ने बड़ी आबादी को अपनी चपेट में ले लिया और बीटा वैरिएंट खत्म हो गया।