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पांच राज्‍यों के विधानसभा चुनाव के बाद विपक्ष का क्‍या बनेगा समीकरण?

पांच राज्‍यों के विधानसभा चुनाव परिणामों ने विपक्ष को और कमजोर बना दिया है। ऐसे में भाजपा की स्थिति आने वाले वर्षों में और अधिक मजबूत होनी तय है। राजनीतिक विश्‍लेषक कमर आगा का कहना है कि आने वाले समय में विपक्ष के सामने कोई एक चेहरा ऐसा नहीं है जो दूसरों को साथ लेकर आगे बढ़ सके और भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विपक्ष दे सके। ऐसे में विपक्ष का और कमजोर होना तय है।

आगा का ये भी कहना है कि मौजूदा समय में देश की तमाम विपक्षी पार्टियों के अंदर न तो कोई लोकतंत्र बचा है और न ही उनकी कोई विचारधार है। वो केवल परिवारवादी और अवसरवादी पार्टियों तक ही सीमित हैं। लेकिन भाजपा इससे उलट है। उसके अंदर एक डेमोक्रेसी और विचारधारा साफतौर पर देखने को मिलती है। कांग्रेस की ही बात करें तो उसकी राजनीतिक जमीन पूरी तरह से खिसक चुकी है और वो धीरे-धीरे एक क्षेत्रीय पार्टियों की जमात में शामिल होती जा रही है। वहीं कुछ क्षेत्रीय पार्टियों का कद उससे भी बड़ा हो गया है।

आगा के मुताबिक एक मजबूत विपक्ष की बात करें तो फिलहाल लंबे समय तक ये नहीं होने वाला है। टीएमसी जो बंगाल तक सीमित है अब दूसरे राज्‍यों में अपनी किस्‍मत आजमा रही है लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी है। वहीं कांग्रेस और टीएमसी की एकजुटता की बात करें तो कांग्रेस कभी ये नहीं चाहेगी कि उसको कोई लीड करे। वहीं कांग्रेस के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं बचा है जिसकी बात दूसरा सुने और मान लें।

वहीं यूपी के विधानसभा चुनाव में दूसरी नंबर की समाजवादी पार्टी की बात करें तो वो केवल नाम मात्र की समाजवादी है। अंदरखाने वो भी कांग्रेस की ही तर्ज पर आगे बढ़ रही है। कांग्रेस जहां अपना चेहरा नहीं बदलना चाहती है वहीं समाजवादी पार्टी भी एक ही चेहरे के साथ आगे बढ़ना चाहती है।

आम आदमी पार्टी की यदि बात करें तो वो पूर्व सरकार के खिलाफ उभरी आवाज या नेगेटिव वोटिंग के आधार पर अपनी जीत हासिल कर रही है। दिल्‍ली में पहले ऐसा हुआ था अब पंजाब में भी यही हुआ है। पंजाब में कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल से वहां की जनता नाराज थी इसलिए आम आदमी पार्टी को इसका फायदा मिला। लेकिन ये इस पार्टी में भी एक ही चेहरा है। बसपा में भी यही बात है।

आगा कहते हैं कि इन सभी पार्टियों की सबसे बड़ी परेशानी यही है कि वो किसी दूसरे चेहरे पर न तो विश्‍वास करना चाहती हैं और न ही उनको आजमाना चाहती, भले ही इससे कितना ही नुकसान उन्‍हें उठाना पड़े। ऐसे में भविष्‍य में एक मजबूत विपक्ष का होना भी काफी हद तक नामुमकिन लगता है।

द फ्रीडम स्टॉफ
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