संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर चंद्रकांत लहारिया के मुताबिक यह बीमारी मंकीपॉक्स नाम के वायरस से होती है। मंकीपॉक्स, ऑर्थोपॉक्स वायरस परिवार का हिस्सा है। इसमें भी चेचक की तरह शरीर पर दाने हो जाते हैं। दरअसल, चेचक को फैलाने वाला वैरियोला वायरस भी ऑर्थोपॉक्स फैमिली का ही हिस्सा है।
हालांकि, मंकीपॉक्स के लक्षण चेचक की तरह गंभीर नहीं, बल्कि हल्के होते हैं। यह बहुत कम मामलों में ही घातक होता है। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इसका चेचक से कोई लेना-देना नहीं है।
क्या मंकीपॉक्स थूक, छींक, खून और स्पर्म से भी फैलता है?
डॉक्टर चंद्रकांत लहारिया के अनुसार मंकीपॉक्स एक कॉन्टैक्ट डिजीज है, जो मुख्यतौर पर तीन तरह से फैलता है…
पहला: स्किन टु स्किन कॉन्टैक्ट में आने से। मतलब जब कोई एक व्यक्ति संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आता है।
दूसरा: बॉडी फ्लूइड के जरिए। मतलब ये कि संक्रमित व्यक्ति के शरीर से निकलने वाले थूक, छींक, पसीने आदि से ये बीमारी फैलती है।
तीसरा: रैशेज के संपर्क में आने से भी मंकीपॉक्स बीमारी के फैलने की आशंका होती है।
जब हमने डॉक्टर से खून और स्पर्म से मंकीपॉक्स फैलने की आशंका को लेकर बात की तो डॉक्टर लहारिया ने कहा कि खून से मंकीपॉक्स बीमारी फैलने के सबूत नहीं मिले हैं। बाकी शरीर से निकलने वाले हर तरह के फ्लूइड से यह बीमारी फैलती है।
आगे बढ़ने से पहले जानते हैं कि दुनिया के किन 10 देशों में सबसे ज्यादा मंकीपॉक्स संक्रमण के मामले सामने आए हैं।
क्या ये यौन रोग है, जो समलैंगिक पुरुष सेक्स से फैलता है?
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन की रिपोर्ट में सामने आया है कि मंकीपॉक्स संक्रमण वाले करीब 98% मरीज समलैंगिक पुरुष या बाईसेक्सुअल पुरुष हैं। ऐसे में सवाल उठने लगा कि क्या मंकीपॉक्स एक यौन रोग है। इस सवाल का जवाब हमने दो एक्सपर्ट्स से जानने की कोशिश की है…
एक्सपर्ट नंबर 1: WHO में साउथ ईस्ट एशिया की रीजनल डायरेक्टर डॉक्टर पूनम खेत्रपाल सिंह ने कहा, ‘मंकीपॉक्स के मामले उन पुरुषों में ज्यादा मिले हैं जो पुरुषों के साथ यौन संबंध बनाते हैं।’ उन्होंने कहा कि इस बीमारी के खिलाफ लड़ाई में हम लोगों को संवेदनशील और भेदभाव से मुक्त रहना चाहिए।
एक्सपर्ट नंबर 2: संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर चंद्रकांत लहारिया का कहना है कि मंकीपॉक्स के ज्यादातर मामले पुरुषों में मिले हैं, लेकिन अभी हम इसे सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज नहीं कह सकते हैं। इस बात पर रिसर्च चल रही है कि क्या ये एक यौन रोग है। लहारिया का कहना है कि यौन संबंध बनाते समय दो लोग करीब आते हैं, ऐसे में कॉन्टैक्ट डिजीज होने की वजह से भी यह बीमारी फैल सकती है।
कोरोना वायरस से कम या ज्यादा खतरनाक है मंकीपॉक्स?
डॉक्टर लहारिया कोरोना की तुलना में मंकीपॉक्स को कम खतरनाक मानते हैं। इसके पीछे उन्होंने दो तर्क दिए हैं।
पहला तर्क: मंकीपॉक्स कोरोना से कम खतरनाक है, क्योंकि कोरोना में राइबोन्यूक्लिक एसिड यानी RNA वायरस होते हैं। यह अपने रूप को तेजी से बदल सकता है। इसी वजह से यह तेजी से फैलता है। वहीं, मंकीपॉक्स में डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक एसिड यानी DNA वायरस होता है। DNA एक स्टेबल वायरस है, जो तेजी से रूप नहीं बदल सकता है। इसी वजह से इसके फैलने की रफ्तार कम है।
दूसरा तर्क: कोरोना वायरस लक्षण नहीं होने पर भी दूसरे को संक्रमित करता है। ऐसे में तेजी से कोरोना वायरस संक्रमण के मामले बढ़ते हैं। वहीं, मंकीपॉक्स में लक्षण सामने आने पर ही दूसरे व्यक्ति को संक्रमण फैलता है। इसी वजह से बेहतर सर्विलांस के जरिए इस बीमारी को आसानी से फैलने से रोका जा सकता है।
क्या मंकीपॉक्स के कारण एक बार फिर से महामारी आने वाली है?
संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर चंद्रकांत लहारिया के अनुसार मंकीपॉक्स की वजह से देश में महामारी नहीं आने वाली है। उन्होंने कहा कि ऐसा कहने के पीछे 3 वजह हैं…
पहली वजह: मंकीपॉक्स 50 साल पुरानी बीमारी है। इस बीमारी के खिलाफ तीन वैक्सीन भी मौजूद हैं। ऐसे में इसे आसानी से फैलने से रोका जा सकता है।
दूसरी वजह: बीते 13 साल में करीब 7 बार WHO ने वर्ल्ड हेल्थ इमरजेंसी घोषित किया है। हालांकि, महामारी सिर्फ कोरोना को ही घोषित किया गया।
तीसरी वजह: मंकीपॉक्स एक जूनोटिक बीमारी है। मतलब जानवरों से इंसान में फैलने वाला बीमारी। ऐसी बीमारियां बीच-बीच में सामने आती रही हैं, लेकिन इसके कोरोना की तरह बड़े स्तर पर फैलने की गुंजाइश कम है। इसे आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है।
भारत के लिए WHO के वर्ल्ड हेल्थ इमरजेंसी का मतलब क्या है?
WHO जैसे ही किसी बीमारी को वर्ल्ड हेल्थ इमरजेंसी घोषित करती है, तो इसका मतलब होता है कि वह बीमारी तेजी से दुनिया भर में फैल रही है। ऐसे में भारत में इसकी दस्तक चिंताजनक है। WHO के मुताबिक अब भारत या दूसरे देशों के सरकार को इस बीमारी को रोकने के लिए 3 स्टेप में फैसले लेने होंगे…
पहला: बीमारी को फैलने से रोकने के लिए प्रोटोकॉल और कड़ी गाइडलाइ बनाना।
दूसरा: लोगों को जागरूक करते हुए बनाई गई गाइडलाइन को कड़ाई से लागू करना।
तीसरा: संक्रमित मरीजों की पहचान कर उनका इलाज करना।