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किसानों का फिर दिल्ली कूच: मोदी सरकार की मंत्री मीनाक्षी लेखी बोलीं- दिल्ली में प्रदर्शनकारी किसान नहीं, मवाली हैं;

कृषि कानूनों की रद्द करने की मांग को लेकर किसानों ने जंतर-मंतर पर गुरुवार को किसान संसद लगाई। इस दौरान किसान नेता राकेश टिकैत सहित सभी किसान तीनों कानून रद्द करने की मांग पर अड़े रहे। इस बीच सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने कहा कि ब्रिटेन की संसद में इस पर बहस हो रही, लेकिन हमारी सरकार इस मुद्दे पर खामोश है।

उधर, केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी के किसानों पर दिए एक बयान पर विवाद खड़ा हो गया है। उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में किसान संसद में शाामिल हुए किसानों के बारे में कहा कि वे किसान नहीं मवाली हैं। इस पर ध्यान देना चाहिए, ये आपराधिक गतिविधियां हैं। जो कुछ 26 जनवरी को हुआ वह भी शर्मनाक था। उसमें विपक्ष की ओर से ऐसी चीजों को बढ़ावा दिया गया।

मीनाक्षी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि पहली बात तो आप उन्हें किसान कहना बंद कीजिए। वे किसान नहीं हैं। किसानों के पास इतना समय नहीं है कि जंतर-मंतर पर धरना देने बैंठे। इसके जवाब में राकेश टिकैत ने कहा कि किसानों के बारे में ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए। किसान देश का अन्नदाता है।

किसानों को शर्तों के साथ प्रदर्शन की इजाजत
26 जनवरी को दिल्ली में उग्र प्रदर्शन के बावजूद दिल्ली सरकार ने किसानों को एंट्री की इजाजत दी है। यह परमिशन 22 जुलाई से लेकर 9 अगस्त तक है। दिल्ली डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने शर्तों के साथ प्रदर्शन की मंजूरी दी है।

भारतीय किसान यूनियन (BKU) के लीडर राकेश टिकैत पहले वे सिंघु बॉर्डर पहुंचे थे। यहां से बसों के जरिए वे किसानों के साथ जंतर-मंतर आए। प्रदर्शन में सिर्फ 200 किसान शामिल हुए। वे जंतर-मंतर पर किसान संसद लगाएंगे। राकेश टिकैत ने कहा कि हम मानसून सत्र की कार्यवाही पर भी नजर रखेंगे।

कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली के बॉर्डर पर जगह-जगह प्रदर्शन कर रहे किसान सिंघु बॉर्डर पर पहुंच रहे हैं। दिल्ली में जंतर-मंतर और बॉर्डर पर सिक्युरिटी बढ़ा दी गई है। पुलिस ने किसानों को इस शर्त पर प्रदर्शन की इजाजत दी है कि वो संसद तक कोई मार्च नहीं निकालेंगे।

हरसिमत कौर बोलीं- 500 से ज्यादा किसानों की मौत हुई
शिरोमणि अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल ने कहा कि किसान दिल्ली बॉर्डर पर 8 महीने से प्रदर्शन कर रहे हैं। 500 से ज्यादा किसानों की इस प्रदर्शन में मौत हो चुकी है। फिर भी सरकार को किसानों की कोई चिंता नहीं है। वे लोग कृषि कानून वापस लेने को तैयार नहीं हैं। यदि बातचीत भी की जाती है तो उसका मुद्दा क्या होगा।

उन्होंने कहा कि किसानों के प्रतिनिधि को संसद में अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया जा रहा है। मंत्री किसानों से बात करने की इच्छा तो व्यक्त करते हैं, लेकिन असल में वो ये करना नहीं चाहते।

26 जनवरी को रैली में हुई थी हिंसा
इसी साल 26 जनवरी को लाल किले तक किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा के बाद उन्हें पहली बार दिल्ली में प्रदर्शन की इजाजत मिली है। 26 जनवरी की रैली के दौरान प्रदर्शनकारी उग्र हो गए थे और कई उपद्रवियों ने लाल किले में घुसकर पुलिसकर्मियों से मारपीट की थी और किले की प्राचीर पर धार्मिक झंडा भी फहरा दिया था।

केंद्र और किसान दोनों अड़े
देश के किसान नए कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले साल दिसंबर से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। इस दौरान किसान संगठनों की केंद्र सरकार से 12 दौर की बातचीत भी हो चुकी है, लेकिन कोई समाधान नहीं निकल सका है। किसान तीनों कृषि कानून रद्द करने की मांग पर अड़े हैं। वहीं केंद्र सरकार का कहना है कि वह किसानों की मांगों के मुताबिक कानूनों में बदलाव कर सकती है, लेकिन कानून वापस नहीं लिए जाएंगे।

द फ्रीडम स्टॉफ
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