नई दिल्ली : 1947 में भारत के बंटवारे के वक्त ही तीस्ता नदी के पानी के लिए विवाद शुरू हो गया था। उस वक्त ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने सर रेडक्लिफ की अगुवाई में गठित सीमा आयोग से दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी को तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में शामिल करने की मांग उठाई थी। हालांकि, तब कांग्रेस और हिंदू महासभा ने इसका विरोध किया था। इस विरोध को देखते हुए सीमा आयोग ने तीस्ता का ज्यादातर हिस्सा भारत को सौंप दिया था। जब 1971 में बांग्लादेश बना तब तीस्ता के बंटवारे का मसला फिर उठा। 1972 में इसके लिए भारत-बांग्लादेश संयुक्त नदी आयोग का गठन हुआ। 1996 में गंगा के पानी पर हुए समझौते के बाद तीस्ता के पानी के बंटवारे की मांग ने जोर पकड़ा, तभी से यह मसला विवादों में है। हाल ही में भारत दौरे पर आईं बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच तीस्ता के साथ 10 समझौतों पर दस्तखत हुए। तीस्ता नदी के संरक्षण एवं प्रबंधन के लिए भारत की ओर से एक तकनीकी दल को बांग्लादेश भेजा जाएगा।
गंगा समझौते के बाद दूसरी नदियों के अध्ययन के लिए विशेषज्ञों की एक साझा समिति गठित की गई। इस समिति ने तीस्ता को अहमियत देते हुए वर्ष 2000 में इस पर समझौते का एक प्रारूप पेश किया। 2010 में दोनों देशों ने समझौते के अंतिम प्रारूप को मंजूरी दे दी। 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ढाका दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच इस नदी के पानी के बंटवारे के एक नए फॉर्मूले पर सहमति बनी, मगर ममता के विरोध की वजह ये समझौता होते-होते रह गया। 2014 में जब नरेंद्र मोदी पीएम बने। उसके साल भर बाद यानी जून, 2015 में बंगाल की CM ममता बनर्जी के साथ बांग्लादेश गए। इस दौरान दोनों नेताओं ने बांग्लादेश को तीस्ता के बंटवारे पर एक सहमति का यकीन दिलाया था। लेकिन 9 साल बीतने के बावजूद अब तक तीस्ता नदी जल समझौते का समाधान नहीं निकल पाया।
दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर राजीव रंजन गिरि के अनुसार, हसीना के लिए तीस्ता के पानी का बंटवारे का मुद्दा काफी अहम हो गया है। बांग्लादेश की विपक्षी पार्टियां तीस्ता को लेकर हसीना पर भारत की कठपुतली होने का आरोप लगाती रही हैं। ऐसे में तीस्ता के पानी पर समझौता करके वह अपने ऊपर इस दाग को धो सकती थीं। राजीव रंजन गिरि के अनुसार, तीस्ता समझौता नहीं होने के विरोध में बांग्लादेश सरकार ने वहां पद्मा नदी से आने वाली हिल्सा मछलियों के निर्यात पर भी अरसे तक रोक लगा रखी थी, लेकिन ममता नहीं मानीं। अब इस समझौते से हसीना पर कुछ आरोप तो कम होंगे, मगर पूरा समझौता अमल में आना अभी तक दूर की कौड़ी है।
तीस्ता नदी सिक्किम में हिमालय की चोटियों से निकलती है। कांगसे और जेमू ग्लेशियर जहां से पिघलना शुरू करते हैं और दोनों मिलकर त्सो लहामो झील बनाते हैं, उसी के पास से तीस्ता नदी हिमालय के पाहुनरी ग्लेशियर से निकलती है और कलकल की नाद के साथ बहना शुरू करती है। दार्जिलिंग में तीस्ता बाजार के पास रंगीत नदी के पास तीस्ता अपनी पूरी रंगत में दिखने लग जाती है। वहां से यह पश्चिम बंगाल में बहती है और यहीं से वह बांग्लादेश में प्रवेश करती है। आगे चलकर तीस्ता ब्रह्मपुत्र में मिल जाती है, जहां इस नदी को जमुना कहा जाता है। इसके बाद यह बंगाल की खाड़ी में समुद्र में समा जाती है। नीचे दिए ग्राफिक से इस विवाद को समझते हैं।