नज़रिया

भोजन की बर्बादी संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है- राजेन्द्र वैश्य

भारतीय संस्कृति न केवल आध्यात्मिक समृद्धता लिए हुए हैं, बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्वों के प्रति भी सहिष्णु है। उसकी एक बानगी भोजन को लेकर तय आदर्श संहिता से मिलती है। हमारी संस्कृति में अन्न को देवता की संज्ञा दी गई है। वहीं मां अन्नपूर्णा को उसकी अधिष्ठाता देवी। भारतीय संस्कृति थाली में जूठन छोडऩे को असंस्कार मानती है। भोजन जूठा छोडऩा तो दूर की बात है, यदि भोजन करते समय अन्न का कोई दाना नीचे गिर भी जाए तो उसे उठाकर चींटी या चुहे के बिल के पास रखने की सीख भारतीय संस्कृति देती है। समय के साथ यह संस्कार विलुप्त होता जा रहा है।


एक तरफ शादी-विवाहों,पर्व-त्योहारों और पारिवारिक आयोजनों में भोजन की बर्बादी बढ़ती जा रही है,तो दूसरी तरफ भूखे लोगो को कूड़ादान से जूठन को बिनते हुए देखा जा सकता है। दरअसल, भोजन की बर्बादी संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। शादी-ब्याह या किसी भी आयोजन में होने वाली पार्टियां भोजन की बर्बादी का कारण बनती जा रही हैं। खुशी के मौके पर अपने परिचितों, रिश्तेदारों को भोज देना हर व्यक्ति को अंतर्मन से सुकून देता है,लेकिन भोज पूरा होने के बाद थालियों में जूठन देखकर मेजबान दु:खी भी हो जाता है, पर वह किसी से कहने की स्थिति में नहीं रहता। दावतों में लोग प्लेट को क्षमता से अधिक भर लेते हैं,फिर खा नहीं पाते और यूं ही भरी हुई प्लेट कूड़ादान में छोड़ देते हैं। इससे भोजन बर्बाद होता है। सभी तरह की खाद्य सामग्री का मिश्रण हो जाने से अमूमन पशु भी इसे नहीं खाते और यह सारा खाना सिर्फ और सिर्फ नदी, नालों, गड्ढों में फेंक दिया जाता है।


विश्व का हर सातवां और भारत का हर चौथा व्यक्ति भूखा सोता है। एक शोध के अनुसार दुनियां भर में हर वर्ष जितना भोजन तैयार होता है उसका एक-तिहाई भाग अर्थात लगभग एक अरब तीस करोड़ टन बर्बाद चला जाता है। बर्बाद हो जाने वाला भोजन इतना होता है कि उससे दो अरब लोगों के खाने की जरूरत पूरी हो सकती है।


खाने की बर्बादी रोकने की दिशा में महिलाएं बहुत कुछ कर सकती हैं। खासकर बच्चों में शुरू से यह आदत डालनी होगी कि उतना ही लो थाली में,जितनी भूख हो। एक-दूसरे से बांट कर खाना भी भोजन की बर्बादी को बड़ी हद तक रोक सकता है। भोजन और खाद्यान्न की बर्बादी रोकने के लिए हमें अपनी संस्कृति और परम्पराओं के पुर्नचिंतन की जरूरत है। हमें अपनी आदतों को सुधारने की जरूरत है। धर्मगुरुओं एवं स्वयंसेवी संगठनों को भी इस दिशा में पहल करनी चाहिए। हम सभी को मिलकर इसके लिये सामाजिक चेतना लानी होगी तभी भोजन की बर्बादी रोकी जा सकती है।

राजेन्द्र वैश्य
अध्यक्ष, पृथ्वी संरक्षण

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