उत्तर प्रदेश

नमामि गंगे में मानकहीन निर्माण से घाटों का मूल स्वरूप हो रहा नष्ट , विरोध में उतरेंगे मठ के ब्रह्माचारी

डलमऊ से सुशांत त्रिपाठी: नमामि गंगे योजना से डलमऊ के पांच घाटों का जीर्णोद्धार होना है, जिनके लिए केंद्र सरकार ने 16 करोड़ रुपये स्वीकृत किए हैं। घटिया गुणवत्ता से धर्म नगरी के घाट भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहे हैं।

गुणवत्ता में सुधार न हुआ तो हम सब सड़क पर उतरने के लिए मजबूर

सरकार की मंशा है कि प्राचीन तकनीक से घाटों का निर्माण हो तो उनकी उम्र 300 वर्ष तक फिर बढ़ जाएगी। निर्माण एजेंसी अपनी बचत बढ़ाने के उद्देश्य से नए मानक तय कर लिए हैं। जिसको लेकर स्थानीय लोग आक्रोशित हैं।सनातन धर्म पीठ बड़ा मठ के ब्रह्माचारी दिव्यानंद गिरि ने कहा कि यदि निर्माण कार्य की गुणवत्ता में सुधार न हुआ तो हम सब सड़क पर उतरने के लिए मजबूर होंगे। कस्बावासियों के अनुसार प्राचीन तकनीक से सुर्खी प्लास्टर होना था, लेकिन बालू, मौरंग, सीमेंट मिलाकर सुर्ख रंग से रंगा जा रहा है।

चूना, बेल से सीमेंट जैसा पेस्ट तैयार करने की यह तकनीक सदियों पुरानी

पहले चूने को पानी में डाला जाता है, चूना गलने के बाद पत्थर का सुर्ख चूरा चूने में मिलाया जाता है। फिर पके हुए बेल के गूदे व उड़द की दाल को इसके साथ मिलाते हैं। कुछ दिन रखने के बाद मिश्रण तैयार हो जाता है। चूना, बेल से सीमेंट जैसा पेस्ट तैयार करने की यह तकनीक सदियों पुरानी है। निश्चित रूप से यह ज्यादा मजबूत और भरोसेमंद है। इस तकनीक में समय ज्यादा लगता है, लेकिन मजबूती के मामले में इससे बेहतर कोई तकनीक नहीं है। प्राचीन समय से इलेक्ट्रानिक्स के उपकरण नहीं थे, लेकिन सुर्खी मसाले के कारण महल वातानुकूलित होते थे।

डलमऊ के नगर पंचायत अध्यक्ष बृजेश दत्त गौड़ ने बताया कि मानकों के विपरीत बन रहे घाटों की शिकायत प्रधानमंत्री व केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी से की जाएगी। निर्माण एजेंसी डलमऊ के नक्काशीदार घाटों का स्वरूप ही नष्ट कर रही है।

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