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बेबसी : लाठी के सहारे मुंबई से 1200 Km दूर अपने घर पैदल निकला पड़ा ये दिव्यांग

लॉकडाउन की सबसे बड़ी मार जिस तबके पर पड़ी है, वो है मज़दूर वर्ग. जिन बड़े शहरों में वो नौकरी की तलाश में आये, उन्हीं शहरों से आज भूखे वापस जा रहे हैं. इनमें से कई लोग अपने परिवार सहित पैदल चल रहे है. न उनके पास साधन हैं और न पैसे. सरकार से मदद के इंतज़ार करते-करते आख़िरकार उन्होंने हार मान ली और ख़ुद ही अपने गांव की तरफ़ निकल पड़े. जब सरकार को होश आई तो उसने इनके लिए श्रमिक ट्रेनें चलवाईं और कई लोग अपने-अपने राज्य वापस पहुंच पाए. लेकिन, अभी भी कई ऐसे हैं जो घर जाने की आस में अकेले निकल चुके हैं. इनमें से एक हैं 30 साल के दिव्यांग अजय कुमार साकेत जो अपने घर पहुंचने के लिए 1200 किलोमीटर के सफ़र पर निकले हैं. 

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक़, अजय एक ही टांग से चल सकते हैं. बिना लाठी के सहारे के उनके शरीर का निचला हिस्सा नहीं हिलता और इस दिक्कत के बावजूद वो 1200 किलोमीटर का सफ़र करने निकले हैं. जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने श्रमिक ट्रेन का इंतज़ार क्यों नहीं किया तो उनका जवाब था:

“मैंने 5 दिन पहले श्रमिक ट्रेन का रेजिस्ट्रेशन करवाया और मुझे मेडिकल सर्टिफिकेट भी मिला लकिन मेरे पास खाने को कुछ नहीं बचा था. मुझे लगा अगर यहां रहूंगा तो मर जाऊंगा.”

अजय मुंबई में एक छोटा स्टॉल चलाते हैं और वहीं से इनकी कमाई होती है. जब दुकान बंद हुई तो कुछ समय चल गया लेकिन उसके बाद खाने के लिए दिक्कत होने लगी. और उन्होंने अपने घर जाने का फ़ैसला किया। वो मध्य प्रदेश के सेहदोल ज़िले के रहने वाले हैं. अजय और लोगों के साथ पैदल निकला है. जब उससे पूछा गया कि वो गुज़ारा कैसे कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि कुछ अच्छे लोगों ने उन्हें बिस्किट और पानी दिया है और वो ऐसे ही लोगों के सहारे निकले हैं.

घर में बैठ कर ये सवाल करना बहुत आसान है कि ये लोग पैदल क्यों निकल रहे हैं. जब किसी के घर में खाने को कुछ न हो, पीने को पानी न मिले और मदद के लिए कोई हाथ न बढ़ाये, तो उसके पास चारा ही क्या बचता है.

द फ्रीडम स्टॉफ
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