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IPCC Report :वैश्विक तापमान ऐसे ही बढ़ता रहा तो खेती हो जाएगी बर्बाद, खाने के पड़ जाएंगे लाले

यदि वैश्विक तापमान वृद्धि पर आईपीसीसी की रिपोर्ट में जताई गई चिंताओं पर संज्ञान नहीं लिया गया तो यह भारतीय कृषि के लिए घातक साबित हो सकता है। इसमें मानसून पैटर्न में बदलाव की आशंका के साथ गंगा घाटी के सूखे की चपेट में आने की भविष्यवाणी की गई है। इससे किसान, बेघर और गरीब तबाह हो जाएंगे। यह कहना है टेरी से जुड़ी पर्यावरणविद् एवं टेरी यूनिवर्सिटी की उपकुलपति डॉ. लीना श्रीवास्तव का।

सबसे बड़ी चुनौती कृषि वैश्विक तापमान वृद्धि के खतरों से बचाने की

पूर्व में आईपीसीसी की रिपोर्ट तैयार करने में शामिल रहीं डॉ. श्रीवास्तव ने कहा कि हमारे सामने आज सबसे बड़ी चुनौती कृषि को जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान वृद्धि के खतरों से बचाने की है। इसके लिए हमें फसलों को इसके प्रतिरोधी बनाना होगा। नए शोध करने होंगे। नई किस्में तैयार करनी होंगी। लेकिन चिंताजनक यह है कि इस दिशा में देरी हो रही है। उन्होंने कहा कि आईपीसीसी की रिपोर्ट में 2015 जैसी गर्म हवाओं का प्रकोप बढ़ने की बात कही गई है, यह बेहद चिंताजनक है। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव गरीबों पर पड़ेगा। जिनके पास घर नहीं हैं। गर्मी से बचने के साधन नहीं हैं, वे गर्म हवा के थपेड़ों से मारे जाएंगे।

जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंताएं बढ़ी

डॉ.श्रीवास्तव ने कहा कि सरकार को इस रिपोर्ट के आलोक में एकीकृत कार्ययोजना तैयार कर क्रियान्वयन करना चाहिए। उनके अनुसार, सरकारी महकमों में जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंताएं बढ़ी हैं। लेकिन उन्हें रोकने के लिए उपाय नहीं हो रहे हैं। हालांकि उत्सर्जन कम करने के लिए वैकल्पिक ऊर्जा के उत्पादन को लेकर प्रयास सराहनीय हैं। उन्होंने कहा, तापमान बढ़ोतरी को सीमित रखने के लिए भारत को लक्ष्य बढ़ाने होंगे। खासकर परिवहन क्षेत्र में बड़े पैमाने पर काम करने की जरूरत है।

यह है चिंता की वजह

भारत गर्म हो रहा है। अब तक रिकॉर्ड सबसे ज्यादा 15 गर्म सालों में 14 साल 2002 के बाद के हैं। सबसे गर्म साल 2017 रहा है।  वर्ष 2017 में देश के औसत तापमान में 0.71 डिग्री की बढ़ोतरी दर्ज की गई। जबकि पिछली एक सदी की औसत बढ़ोतरी 0.65 डिग्री थी।  मई 2016 में सर्वाधिक भयावह गर्मी दर्ज की गई जब जैसलमेर में तापमान  52.4 डिग्री पर पहुंच गया। इस साल राजस्थान में अप्रैल में ही भयावह लू का अलर्ट जारी करना पड़ा था।भयावह लू की घटनाएं पहले सौ साल में एक बार होती थी। लेकिन वैश्विक तापमान वृद्धि के चलते अब इनकी दस साल में एक बार पुनरावृत्ति होने लगी है।

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