कानपुर : प्रयागराज में कुंभ के दौरान पतित पावनी मां गंगा की जलधारा को अविरल व निर्मल बनाए रखने के लिए सरकारी कवायदें धरातल पर फेल नजर आ रही हैं। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) टेनरियां बंद होने की बात कह रहा है तो दूसरी तरफ जल निगम के अफसर नाले टैप होने का दावा ठोक रहे हैं। फिर भी रोजाना टेनरियों व नालों का छह एमएलडी दूषित पानी गंगा के आंचल को मैला कर रहा है।
भले ही बंद की गई टेनरियों पर लगातार नजर रखी जा है, लेकिन 36 एमएलडी कॉमन इफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) में आ रहा टेनरियों का दूषित उत्प्रवाह खेल से पर्दा उठाने के लिए पर्याप्त है। अभी 248 टेनरियों में महज 26 का संचालन हो रहा है। यह भी अपनी आधी क्षमता से चल रही हैं। सीईटीपी में टेनरियों के नौ एमएलडी दूषित पानी को ट्रीट करने की क्षमता है तो फिर छह एमएलडी पानी कैसे पहुंच रहा है। आंकड़े तो यही कह रहे हैं कि गंगा की सफाई को लेकर कोई न कोई विभाग झूठ बोल रहा है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पिछले दिनों जांच कर रिपोर्ट दी थी कि नालों के जरिये दूषित पानी गंगा में जा रहा है। नालों का बायोरेमिडेशन नहीं किया जा रहा है। हालांकि बाद में जल निगम ने शासन द्वारा नियुक्त थर्ड पार्टी की जांच रिपोर्ट दिखाकर कहा कि नालों का पानी ट्रीट करने के बाद ही छोड़ा जा रहा है। अब सवाल उठता है कि गंगा के आंचल को मैला करने का गुनहगार आखिर कौन है। जल निगम की जनवरी माह की सीईटीपी रिपोर्ट के मुताबिक टेनरी का औसत 11.5 एमएलडी दूषित पानी आ रहा है।
सफाई में कितना हुआ खर्च
नमामि गंगे के तहत 57 करोड़ रुपये से सीसामऊ नाला, नवाबगंज, म्योर मिल नाला व डबका नाला बंद किए गए। गुप्तार घाट और परमियापुरवा नाला अभी तक नहीं बंद हो पाया है। एक फरवरी से नाला बंद होने तक जल निगम ने ठेकेदार पर 57 हजार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना लगाया है।गुप्तार घाट, सत्तीचौरा, गोलाघाट, रानी घाट व डबका नाला के बायोरेमिडेशन पर दो करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं।
जिम्मेदार उवाच
कुलदीप मिश्र, मुख्य पर्यावरण अधिकारी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कहते हैं कि जल निगम टेनरियां बंद चल रही हैं। प्रदूषण विभाग उन पर निरंतर नजर रखे हुए है। नालों के बायोरेमिडेशन की रिपोर्ट शासन को भेज दी है।
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