ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को स्वर्ग से उतरकर सूर्यवंशी राजा भगीरथ के पुरखों का उद्धार करने के लिए गंगा देवाधिदेव शिव की जटाओं से होती हुई धराधाम में अवतरित हुईं। गंगा पृथ्वीवासियों को देवलोक का दिव्य प्रसाद है। स्कंद पुराण के अनुसार जिस दिन पृथ्वी पर गंगावतरण हुआ,उस दिन दस योग थे। ज्येष्ठ मास,शुक्ल पक्ष,दशमी तिथि,बुध का दिन,हस्त नक्षत्र,व्यतिपात,गर और आनंद योग और कन्या राशि मे चन्द्रमा तथा वृष राशि मे सूर्य। इसी कारण इस दिन किया गया गंगास्नान ‘दशहरा’ अर्थात दश पापों का हरण करने वाला माना जाता है। धरती पर अवतरण के बाद गंगा भारतीय जन मानस के मन-प्राण मे बस गयी। हम गंगा को माँ का दर्जा देते है। मान्यता है कि गंगा पतितपावनी है,उसके निर्मल जल से हमारे सारे पाप धुल जाते है। गंगा न सिर्फ जगत को पाप-ताप से मुक्ति देतीं है बल्कि लोगों की भूख-प्यास भी मिटाती है। गोमुख से गंगासागर तक गंगा देश की लगभग आधी आबादी की आजीविका गंगा पर निर्भर है। कृषि,पर्यटन,साहसिक खेलों,उद्योगों के विकास एवं पुरोहितों की रोजी-रोटी में गंगा की अहम भूमिका है।
देश को एक सूत्र में बांधने का श्रेय गंगा नदी को है। गंगा हमारे लिए पवित्र नदी है। गंगा सभी भारत वंशियों के लिए प्रेरक भी है और प्रेरणा भी। शहनाई के शहंशाह उस्ताद विस्मिल्लाह खां का वह प्रसंग सर्व विदित है कि जब उन्हें अमेरिका में बसने का प्रस्ताव दिया गया तो उनका जवाब था यहां गंगा को ले आओ तो मैं भी आ जाऊंगा यानी गंगा के बगैर समूचा वैभव व्यर्थ है।
पिछले 40-50 वर्षों में अनियंत्रित विकास और अंधाधुंध औद्योगिकीकरण के कारण प्रकृति के साथ स्नेहिल दृष्टि से पूर्ण संस्कृति से ताना-बाना पूरी तरह टूट गया। नतीजा हमारी गंगा आज दुनिया की दस सबसे प्रदूषित नदियों में गिनी जाने लगी। प्रयोगशालाओं में प्रमाणित हो चुका है कि गंगाजल में पाया जाने वाला वैक्टीरियोफेज नामक जीवाणु इसे सड़ने नही देता।
कोरोना वायरस के कारण जब से देश में लाॅकडाउन हुआ है, तभी से पर्यावरण खिल उठा है। गंगा सहित समुद्र एवं विभिन्न जलाशयों का पानी साफ हुआ है। प्रकृति की इन धरोहरों में साॅलिड और लिक्विड वेस्ट कम फेंके जाने के कारण जीव-जंतुओं ने राहत की सांस ली है। जलीय जीवन में नई जान आई है, लेकिन इन सबसे हमने सबक नहीं लिया।
देश के अधिकांश हिस्से में लॉकडाउन से रियायत मिलने पर पृथ्वी को फिर प्रदूषित करना शुरू कर दिया है। हमारे द्वारा उपयोग कोविड-19 का कचरा न केवल सार्वजनिक स्थानों पर फेंका हुआ दिख रहा है, बल्कि नदियों और समुद्र तक पहुंच गया है, जो कि भविष्य में जल प्रदूषण के गंभीर समस्या के संकेत दे रहा है। इससे जलीय जीवन और मानव जीवन, दोनों ही प्रभावित होंगे। अभी भी यदि हम नही जागे तो केवल गंगा ही नही,अपितु यह देश अपना भीतर-बाहर का सारा पानी खो देगा और न ही भूमि पर जल होगा और न किसी की आंखों में। सर्व पूजित गंगा हमारा परिचय है।यदि गंगा खो गई,तो हम भारत के बिन पानी के लोग किसी को क्या बताएंगे कि हम कौन है? जीवनदायिनी माँ गंगा को कोटि-कोटि प्रणाम। गंगा दशहरा की हार्दिक शुभकामनाओं सहित।
लेखक-
राजेन्द्र वैश्य,
अध्यक्ष-पृथ्वी संरक्षण, डलमऊ, रायबरेली