ईद और आलिया में कोई बड़ा गहरा रिश्ता है शायद । करीब 7-8 साल पहले की बात है . आज के जैसे ही ईद का दिन था सभी आलिया को ईद मुबारक विश कर रहे थे . कॉलेज में अभी भी लड़के लड़कियां कितने भी advance हो जायें लेकिन अपना modern-पना दिखाने में नानी याद आ जाती है . आलिया सभी से हाथ मिला के ईद मुबारक ले रही थी, इतने में मैं सामने पड़ गया . मैंने कहा
“हमारे यहाँ तो ईद पर गले मिलते हैं , हाथ मिला के ईद थोड़े मिली जाती है”
पता नहीं मेरी इस बात पर वो गुस्सा हुई या खुश , करीब एक मिनट तक मेरी आखों में घूरकर देखने के बाद बोली
“तो लग जाओ गले ,मिश्रा जी”
उसके ये बोलते ही मेरे होश उड़ गए , मैंने हँस से कहा “अरे मज़ाक कर रहा था यार”
इसपर उसने कहा की कल ईदी खाने घर आना और ये बोलकर वो चली गयी। मैं कॉलेज से लौटकर हॉस्टल में अपने रूम पर आलिया के बारे में बहुत देर तक सोचता रहा. बात आई गयी हो गयी . कॉलेज के अगले तीन साल हम मिलते रहे और हर ईद पर मैं हमेशा उसको बोलता रहा “हमारे यहाँ तो ईद पर गले मिलते हैं , हाथ मिला के ईद थोड़े मिली जाती है” और वो हर बार बोलती रही “तो लग जाओ गले ,मिश्रा जी”
मुझे हमेशा डर लगा रहा कि कहीं किसी ईद पर मैं आलिया को गले लगा लूँ तो ज़्यादा तो नहीं हो जाएगा। किसी भी लड़के लिए ये समझ पाना बड़ा ही मुश्किल है कि कब किसी लड़की से केवल हाथ मिलाना कम रह जाता है और गले लगाना कब ज़्यादा हो जाता है।
आलिया की तरफ से कुछ था भी या नहीं इस बात का पता कॉलेज के चार सालों में तो नहीं चल पाया. कॉलेज के बाद आलिया ने एक सॉफ्टवेर कंपनी ज्वाइन कर ली और हम touch में नहीं रहे .वो Facebook पर भी नहीं मिली जहाँ वो सारे लोग मिल जाते हैं जिनको आप अपनी लाइफ में “add as friend” नहीं करना चाहते . कल जब दिल्ली में फ्लाइट से उतरा तो दूर टैक्सी की लाइन में एक बंदी दिखी मुझे एक बार को लगा कि आलिया है . मैं पास गया और उस बंदी से को देखा और झिझक के साथ मैंने पूछा“आ….आप, आलिया है न”
उसने बंदी ने बिना एक भी मिनट गवाएँ कहा
“अरे मिश्रा जी आप, what a pleasant surprise”
इसपर मैंने ही झिझकते हुए पूछा
“इतनी जल्दी पहचान लिया तुमने, मुझे तो लगा था कि पता नहीं क्या क्यायाद दिलाना पड़ेगा”
“क्या बात कर दी मिश्रा जी, तुमको को कैसे भूल सकती हूँ यार। तुम 100 साल बाद भी मिलते तो एक बार में पहचान लेती”
उसके ये बोलने के बाद मुझे किसी बात की तसल्ली हुई। प्यार एक तरह की तसल्ली ही तो होता है । उस दिन मुझे पहली बार इस बात का एहसास हुआ कि हमारी कहानी के खोये हुए अधूरे चैप्टर ऐसे ही कभी सालों बाद अचानक से पूरे हो जाते हैं।
मेरी कार आई हुई थी मैंने उसको कहा चलो मैं छोड़ देता हूँ । वो कार में साथ आ गयी रस्ते में कॉलेज, दोस्तों , कैंटीन , बोरिंग लेक्चर ,क्लास बंक …पूरी दुनिया भर की बातें हुईं. उसने बताया कि ईद पर वो 15 दिन के लिए घर आई है.
उसने पुछा भी कि “शादी हो गयी क्या मिश्रा जी “
मैंने कहा “हाँ यार, मेरी 2 साल की बच्ची भी है “
बातों बातों में पता ही नहीं चला कि कब उसका घर आ गया.
उसके उतरने पर मैंने आलिया से कहा “ईद मुबारक”
ये सुनते ही वो बोली
“हमारे यहाँ तो ईद पर गले मिलते हैं , हाथ मिला के ईद थोड़े मिली जाती है”
मैंने उसको गले लगा लिया और उसने मेरे कान में धीमे से कहा
“ईद मिलने में इतनी देर कर दी तुमने मिश्रा जी“
ये सुनकर मैं बस इतना बोल पाया
“ईद मुबारक आलिया, मेरी बच्ची का नाम आलिया है, कभी घर आओ”
कार में बैठकर अपने घर पहुँचने तक मैं वही सोचता रहा जो उस दिन हॉस्टल के कमरे में सोच रहा था जब उसने पहली बार कहा था “तो लग जाओ गले,मिश्रा जी”
मेरी कहानी का खोया हुआ अधूरा चैप्टर उस दिन पूरा हो गया था।