देश

प्रकृति को चट कर रहे माइनिंग माफिया और गो तस्कर क्या हमारी शासन व्यवस्था से भी ज्यादा शक्तिशाली हैं?

रेत माफिया, माइनिंग माफिया और गो तस्करों ने पूरी व्यवस्था को धता बता दिया है। राज्य सरकारें, उनका प्रशासन और माफिया पर कार्रवाई करने की पूरी प्रक्रिया, लगता है जड़ हो चुकी है।

हाल ही में माइनिंग माफिया ने हरियाणा के नूंह में DSP स्तर के पुलिस अधिकारी सुरेंद्र सिंह को डम्पर के नीचे कुचल डाला। इस बीच झारखण्ड में बुधवार की सुबह एक महिला सब इंस्पेक्टर संध्या को गो तस्करों ने अपने वाहन के नीचे बीच सड़क पर कुचल कर मार डाला।

सरकारें इन दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के पीछे जब- तब पिछली सरकारों को जिम्मेदार बताती फिरती हैं। हरियाणा में ही 2020 में अवैध खनन की 539 घटनाएं हुईं। 2021 में ऐसी घटनाएं बढ़कर 910 हो गईं। सरकार ने क्या किया? एक, दो या चार लोगों को तत्काल गिरफ्तार तो कर लिया जाता है, लेकिन माफिया का पर्दाफाश नहीं हो पाता।

अचरज की बात यह है कि हरियाणा की घटना पर चुप बैठी भारतीय जनता पार्टी झारखण्ड मामले में आरोप लगाती है कि गो तस्करों को राज्य सरकार का संरक्षण प्राप्त है, इसलिए ऐसी घटनाएं हो रही हैं। हो सकता है भाजपा ही सही हो, तो फिर सवाल उठता है कि भाजपा शासित राज्यों में इस तरह की तस्करी क्यों नहीं रुकती?

कुछ साल पहले मध्यप्रदेश के मुरैना में रेत माफिया ने एक IPS अफसर को ट्रैक्टर के नीचे कुचल दिया था। तो क्या इस घटना के बाद मध्यप्रदेश में अवैध रेत खनन बंद हो गया?

पूरे जोर-शोर से अब भी जारी है। रातभर रेत के डम्पर दनदनाते फिरते हैं। नर्मदा, तवा जैसी नदियों की कमर तोड़ दी गई। उनकी छातियों को खोद डाला, लेकिन अवैध खनन माफिया के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई अब तक तो देखने-सुनने में नहीं आई।

सही है, कोई सरकार नहीं चाहती कि रेत माफिया पनपे, माइनिंग माफिया फले-फूले या गो तस्कर अपनी मनमानी करते रहें लेकिन इसके बावजूद यह सब हो तो रहा है! आखिर क्यों? इसका मतलब है कि हमारी व्यवस्था में ही कहीं या कई छेद हैं।

तो फिर सरकारें या उनके जिम्मेदार मंत्री, अफसर, पहाड़ों, नदियों को खुदने देने की बजाय व्यवस्था के इन छेदों को क्यों नहीं पूरते? क्यों हर वक्त हम माफिया के सामने विवश नजर आते हैं? क्या कोई माफिया, कोई तस्कर, हमारी शासन व्यवस्था से भी ज्यादा शक्तिशाली या साधन संपन्न हो सकता है? नहीं।

फिर ऐसी क्या वजह है कि इन पर तुरंत सख्त कार्रवाई नहीं होती? क्यों इनसे जुड़े केसों को अदालतें प्राथमिकता के आधार पर नहीं निपटातीं। जल्द से जल्द, कड़ी से कड़ी सजा दी जाए तो निश्चित ही इस समस्या का हल हो सकता है वर्ना तो वर्षों से जैसी व्यवस्था, जैसा ढर्रा चला आ रहा है, सब देख ही रहे हैं!

द फ्रीडम स्टॉफ
पत्रकारिता के इस स्वरूप को लेकर हमारी सोच के रास्ते में सिर्फ जरूरी संसाधनों की अनुपलब्धता ही बाधा है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के सुझाव दें।
https://thefreedomsnews.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *