नज़रिया

Environment Day: पेड़ नहीं लगा सकते तो मत लगाओ, लेकिन काटो भी मत- राजेंद्र वैश्य

पूरी मानव सभ्यता कोरोना वायरस महामारी के कहर से जूझ रही है और दुनिया ग्लोबल वार्मिंग जैसी चिंताओं से रूबरू है। लोगों को पर्यावरण की अहमियत,इंसानों व पर्यावरण के बीच के गहरे सम्बन्धों को समझते हुए प्रकृति, पृथ्वी,वृक्षारोपण एवं पर्यावरण के संरक्षण के लिए जागरूक होना होगा। आज कोरोना महामारी के समय में हमने यह अहसास कर ही लिया है कि हमारे जीवन मे ऑक्सीजन की कितनी जरूरत है।

इस महामारी की दूसरी लहर में हमनें देखा कि रोगियों को ऑक्सीजन की पूर्ति नहीं हो पा रही थी लेकिन अनादिकाल से ऑक्सीजन की पूर्ति हमारी प्रकृति एवं वृक्ष करते रहे हैं। जीवन को संतुलित एवं जीवनमय बनाने की इस सुंदर और व्यवस्थित प्रक्रिया को हमने तथाकथित विकास एवं आर्थिक स्वार्थ के चलते भारी नुकसान पहुंचाया है। प्रकृति का लगातार हो रहा दोहन,वनों का कटान और पर्यावरण की उपेक्षा ही कोरोना जैसी महामारी का बड़ा कारण है।

वर्तमान में हमने जंगल नष्ट कर दिए और भौतिकवादी जीवन ने इस वातावरण को धूल,धुएं के प्रदूषण से भर दिया है जिससे हमारी सांसें अवरुद्ध हो रहीं है एवं भविष्य खतरे में है। इस खतरे से बचाने में घर-घर वृक्षारोपण क्रांति एक कारगर उपाय है। वृक्ष इंसानों एवं पशुओं के लिए,जलवायु सन्तुलन तथा जलश्रोतों को बचाने के लिए बहुत जरूरी है। पेड़ मानव जीवन की कहानी का प्रथम अध्याय है। हम सबको जीने के आक्सीजन की जरूरत होती है,अगर आक्सीजन नही होगी तो जीवन सम्भव ही नही है और ऑक्सीजन के लिए पेड़ की जरूरत है। इस लिए हर व्यक्ति का नैतिक कर्तव्य है कि वह अपने हिस्से की ऑक्सीजन के लिए कम से कम दो पेड़ प्रति वर्ष अवश्य लगाए।जन्मदिन,शादी-विवाह,सालगिरह एवं अन्य मांगलिक कार्यक्रम वृक्षारोपड़ हेतु उपयुक्त अवसर है।

द फ्रीडम स्टॉफ
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