नज़रिया

फौजी इस दुनिया से अक्सर तब विदा ले लेते हैं जब हम आप जिंदगी की रोमानियत में खोये होते हैं..

फौजी इस दुनिया से अक्सर तब विदा ले लेते है जब हम आप जिंदगी की रोमानियत में खोएं रहते है. जिंदगी के इन क्षणों में जब देह और दैहिक जरूरतें बदलावों के क्लाइमेक्स पर पहुँच चुकी होती है और देह हार्मोनों के आगे नतमस्तक होता है….

उस समय भी फौजी सरहद पर माँ भारती के आगे नतमस्तक होता है और कई बारी माँ भारती की सेवा में शीश कटा भी देता है!

ऐसे में जब फौजियों को मिलने वाले सुविधाएं और भत्तों पर कुछेक लोग सवाल उठाते है तो मन करता कि मुँहे-मुँह इनको कूचे!

क्या आप उमर के इस पड़ाव में अपनी जॉब के चक्कर मे इस किस्म के सुखों को भोगने से चूकते है?

क्या आप अपने इष्ट अभीष्ट के काज-काम, मांगलिक कार्यक्रमों में उनसे दूर होने का विरह झेलते है?

क्या आप मल्टीप्लेक्स-मॉल में घूमने की जगह सरहद की दुर्गम बर्फीली चोटियों पर अपनी जिंदगी के सबसे महत्वपूर्ण पल बिताते है?

रात में जब पुरवाई बहती है तो आपका मन बिगड़ने पर आप साथिन से कम्युनिकेट करते है और सरहद पर उन्हें ऐसे समय मे हैंड ग्रेनेड और गोलियों से कम्युनिकेट करना पड़ता है.

आज जब भारतीय सेना की 10 पैरा यूनिट के कमांडो कैप्टन अंकित गुप्ता के देहावसान की खबर पढ़ी तो लगा कि यार, क्या जिंदगी जीते है ये लोग!

यहां नोन-तेल-लकड़ी और सुबह हगने से शुरूआत करने के बाद शाम में बिस्तर पर मोबाइलों के साथ या अपने-अपने पार्टनर के साथ इंसान जिंदगी का सुख भोग रहा होता है!

उधर अंकित गुप्ता जैसे जवान मात्र 46 दिन की शादी के बाद ही महाप्रयाण कर जाते है.

इसलिए फौजियों पर मजाक बनाना बंद ही कीजिए.

उनकी सेवा इतने उच्च स्तर की है कि उन्हें देवों की लोकसभा में भी स्पीकर की ही जगह मिलेगी!

ईश्वर अंकित गुप्ता की आत्मा को चिर शांति दें और उनके परिवार को हौसला दें!

ॐ शांति ॐ

जय हिंद-जय जवान- जय भारत

संकर्षण शुक्ला

द फ्रीडम स्टॉफ
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