Sankarshan Shukla, Delhi: कोरोना महामारी के कारण घोषित किये गये लॉकडाउन के कारण दिल्ली के मुखर्जी नगर और उसके आसपास के पूरे इलाके में हालात खराब हैं. यहां रहने वालों छात्रों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. खाने-पीने और पढ़ने-लिखने की समस्याओं के अलावा मीडियाविजिल के संज्ञान में एक वाक़या आया है जहां एक छात्रा के मदद मांगने पर पुलिस की ओर से मदद तो नहीं की गयी, उलटे उससे जो कहा गया उसके चलते छात्रा की मानसिक स्थिति पर प्रतिकूल असर पड़ा है.
लॉकडाउन की स्थिति को पुलिस कैसे संभाल रही है ये सब तो सोशल मीडिया पर ज़ाहिर है. इसमें से अधिकांश किस्से पुलिस द्वारा उत्पीड़न के हैं तो कुछ में पुलिस को मददगार भी दिखाया गया है. मुखर्जी नगर का केस इस मामले में चौंकाने वाला है. यहां रहने वाले एक छात्र नाम न छापने की शर्त पर एक छात्रा के साथ हुई घटना का जिक्र करते हैं जो उनकी मित्र है. वे बताते हैं कि उक्त छात्रा अपने हॉस्टल में अकेली रह गयी थी जिस कारण उसे डर लग रहा था. अगले दिन वो पुलिस के पास गयी। उसने पुलिस को बताया कि वह हॉस्टल में अकेली है और उसकी तबियत भी खराब है. उसने पुलिस से अनुरोध किया कि उसे उसकी एक दोस्त के यहां तक जाने के लिए मंजूरी दी जाय.
इस पर पुलिसवालों ने उससे कहा कि तबियत खराब है तो अस्पताल पहुंचा देते हैं. उसने कहा कि अस्पताल नहीं, उसे दोस्त के यहां तक जाने दिया जाय. पुलिसवालों ने इसके लिए मना कर दिया. इसी बीच उनमें से एक पुलिसवाले ने कहा, “नहीं, और कोई जरूरत हो तो बताओ, वो भी पूरी करूं.”
इस घटना के बाद से छात्रा मानसिक रूप से लगातार परेशान है और रोये जा रही है. कुछ और घटनाएं हैं जो इस छात्र बहुल इलाके में चुपचाप घट रही हैं और छात्रों को कुछ समझ नहीं आ रहा कि वे क्या करें.
मुखर्जी नगर और उसके आसपास के पूरे इलाके में बड़ी संख्या में स्टूडेंट रहते हैं. इनमें कुछ कोचिंग और तैयारी करने वाले हैं और कुछ दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र हैं जिनको हॉस्टल नहीं मिलता है. इलाके की पूरी इकॉनमी इन्हीं छात्रों की वजह से चलती है. बीच बीच में छात्र और मकान मालिकों की बीच झड़प की खबरें आती रहती हैं. मुखर्जी नगर और उसके आसपास रहने वाले कई लड़के घर लौट गये हैं जबकि कुछ यहीं रह गये जो अचानक किये गये लॉकडाउन के कारण घर नहीं जा पाये.
मीडियाविजिल ने इन तमाम छात्रों से उनकी दिक्कतों पर विस्तार से बात की है.
नेहरू विहार के एक पीजी में रहने वाले आदर्श बताते हैं कि पहले दिन जब लॉकडाउन हुआ उस दिन उन्हें भूखा रहना पड़ा क्योंकि अचानक से सब बंद हुआ और वे अपने लिए कुछ इंतजाम नहीं कर पाए. एक तो दुकानों पर अचानक भीड़ बढ़ गयी जिसके कारण घंटो वहां खड़ा रहना पड़ा, दूसरा महीने का आखिरी समय चल रहा है तो पैसे भी नहीं थे.
वे कहते हैं, “घरवाले तो महीने की शुरूआत में ही पैसे भेजते हैं. उससे कमरे का किराया, मेस का बिल देने के बाद थोड़ा सा पैसा बचता है जो महीने भर के खर्च के लिए होता है. अब आप ही बताइए ऐसे में मैं क्या करता?”
राजेश बताते हैं कि लॉकडाउन के कारण उनका खाना ही बंद हो चुका है. “जब खाएंगे ही नहीं तो पढ़ेंगे क्या?”, राजेश सीधे पूछते हैं. वे बताते हैं कि पढ़ाई के लिए ज्यादा समय मिले इसके लिए हमने टिफिन सर्विस लगायी थी. लॉकडाउन के कारण वो बंद हो गयी है. वे बताते हैं, “अब जबकि हम टिफिन सर्विस के भरोसे थे तो कुछ ही घंटो में खाने के संसाधन कैसे जुटाते? पुलिसवाले बाहर नहीं निकलने दे रहे और ऐसे माहौल में किसी के दोस्त के यहां आ-जा नहीं सकते. जाना ठीक भी नहीं है. अगले दो महीने में यूपीएससी का प्री का पेपर है, भगवान जाने क्या होगा?”
रोहित बताते हैं कि यूपीएससी की तैयारी करने वालों की दिक्कत ये है कि मई के आखिर में प्री की परीक्षा है. यही समय होता है जब तैयारी पूरे जोरशोर से होती है. इसके लिए तमाम तरह की जरूरतें होती हैं. स्टडी मैटेरियल की जरूरत होती है, कोचिंग संस्थान जाने की जरूरत होती है लेकिन अब सब बंद है. “मैटेरियल कहां से जुटाएं? कोचिंग संस्थान जो आखिरी समय में छात्रों की मदद के लिए अलग से क्लास लेते हैं उसका क्या होगा?”
ऑनलाइन पढ़ाई के सवाल पर रोहित कहते हैं कि उसके लिए हर समय वाइफाइ की जरूरत होती है. ज्यादातर लड़के कोचिंग या फिर निजी लाइब्रेरी के जरिये वाइफाइ का जुगाड़ करते हैं. इस समय सब बंद है.
यूपीएससी की तैयारी करने वाले राजकुमार बताते हैं कि जिस दिन लॉकडाउन किया गया उस दिन कुछ लड़कों ने भीड़ में घुसकर ऊंचे दाम पर जरूरत का सामान रख लिया था. अभी तो वही चल रहा है, लेकिन एक बार जब ये खत्म होगा तब असली समस्याएं शुरू होंगी.
“अभी दुकानों में भी जरूरी सामान मिल रहा है, भले ही थोड़े ऊंचे दाम में मिल रहा हो. ये कितने दिन चलेगा ये बड़ी समस्या है. दुकानों में सामान की कमी होने लगी है. दुकानदार से पूछो कि भैया फलां चीज कब आएगी तो कहता है कि आगे से सप्लाई आएगी तो मिल जाएगा. कब आएगा, कैसे आएगा, कुछ नहीं कह सकते”.
प्रतीक बताते हैं कि 22 तारीख को जब प्रधानमंत्री ने जनता कर्फ्यू की बात की थी तब बहुत सारे लड़के लड़कियां स्थिति की गंभीरता को समझते हुए घरों को लौट गये थे, लेकिन जो बचे रह गये वे खौफ़ में जी रहे हैं. एक तरफ कोरोना का डर है तो दूसरी तरफ भूख की चिंता.
शिवम मकान मालिकों के डर का हवाला देते हैं. वे बताते हैं कि यहां के मकान मालिक किराये पर बहुत ज्यादा निर्भर रहते हैं और ऐसे माहौल में किराया कैसे दिया जाएगा ये समस्या है. यहां के हर घर में लड़के किराये पर रहते हैं और आपने पहले देखा है कि मकान मालिक और छात्रों के बीच पुराना झगड़ा है.
वे कहते हैं, “सभी मकान मालिक उतने मददगार नहीं हैं कि उनसे किसी भी प्रकार की मदद की उम्मीद की जाए. यहां हालात अगले महीने से खराब होंगे जब किराया देने का समय आएगा. तब हो सकता है मकान मालिक लड़कों को भगाना शुरू करें या फिर लड़ाई झगड़े की नौबत आए”.
मुखर्जी नगर और आसपास के इलाकों में रहने वालों छात्रों को पता ही नहीं है कि सरकार ने उनकी सहायता के लिए क्या इंतजाम किये हैं और किये भी हैं तो कहां पर किस जगह किये हैं. अगर पता चल जाए तो कुछ छात्रों की मदद हो सकती है.
हालात की गम्भीरता को देखते हुए मुखर्जी नगर के नेहरू विहार में चलने वाले मिथिला रेस्त्रां ने छात्रों के लिए मदद के लिए अपना हाथ बढ़ाया है. रेस्त्रां के मैनेजर ने फोन पर हुई बातचीत में बताया, “हमने जरूरतमंद छात्रों के लिए मुफ्त में भोजन की व्यवस्था की है. हमारे पास ऐसे हजारों छात्रों के फोन आये जिनको भोजन की ज़रूरत है. ज्यादातर चाहते हैं कि उनके घर पर डिलीवर कर दिया जाए”.