ब्यूरो रिपोर्ट, रायबरेली : गंगा घाटों की बदहाली दूर करने के लिए नमामि गंगे योजना शुरू की गई। इसमें करोड़ों रुपये खर्च कर दिए गए। घाट से लेकर आसपास के मंदिरों को सजाया संवारा गया। लेकिन, कार्य की गुणवत्ता बेहतर नहीं होने के कारण सरकार की मंशा पूरी होती नहीं दिखाई पड़ रही है। इतना ही नहीं अब कार्यदायी संस्था गुपचुप तरीके से हैंडओवर कराने की फिराक में है।
पौराणिक नगरी डलमऊ में करीब दर्जन भर घाट है। हर घाट का अपना अलग-अलग महत्व है। नमामि गंगे योजना के तहत इन घाटों पर जीर्णोद्धार कराने के लिए करोड़ों रुपये का बजट दिया गया। कागजों पर काम भी पूरा हो गया। जबकि हकीकत में कई कार्य अधूरे पड़े हैं। इतना ही नहीं घाटों को नगर पंचायत को सौंपने के लिए निर्माण एजेंसी ने दौड़भाग तेज कर दी है। हकीकत यह है कि महज कुछ महीनों पहले लगे पत्थर उखड़कर गिरने लगे हैं। यहीं नहीं वर्षों तक चलने वाला सुर्खी प्लास्टर के मजबूती की भी पोल खुल गई। मानकों को दरकिनार कर बनाया गया सुर्खी प्लास्टर दीवारों को फिर छोड़ रहा है।
नमामि गंगे योजना के तहत पांच घाटों का जीर्णोद्धार कराया गया, लेकिन सीढि़यां न बनाए जाने से घाट बदसूरत दिख रहे हैं। इससे लोगों में आक्रोश व्याप्त है। तीर्थ पुरोहित भंवरनाथ तिवारी, संदीप मिश्र, पुकुन शुक्ल आदि ने बताया कि सीढि़यां घाटों का आभूषण होती हैं। कई बार सीढि़यां बनवाये जाने को लेकर पत्र भेजे गए, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ।
“हैंडओवर करने के लिए पत्र नगर पंचायत को प्राप्त हुआ है। जेई को बुलाकर एजेंसी की कार्य योजना से मिलान कराया जाएगा। इसके बाद ही निर्णय लिया जाएगा। साथ ही गंगा मंत्रालय को पत्र भेज कर घाटों पर सीढि़यां बनवाने की मांग की गई है।”
-बृजेश दत्त गौड़, अध्यक्ष, नगर पंचायत