उत्तर प्रदेश

लखनऊ में खेल प्रशिक्षकों की हालत खस्ता, 450 संविदा कोच, चाट और चाय बेचकर चला रहे गृहस्थी

ब्यूरो रिपोर्ट, लखनऊ: वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के इस दौर में उत्तर प्रदेश में विभिन्न खेलों का संचालन करने वाले तकरीबन 450 संविदा प्रशिक्षकों की माली हालत खराब है। वे लगभग पांच माह से अपने वेतन की बाट जोह रहे हैं। इनमें से कुछ की आॢथक स्थिति इस कदर बिगड़ चुकी हैं कि परिवार चलाने के लिए उन्हेंं चाट की रेहड़ी लगाने से लेकर निजी स्टोर पर सुपरवाइजर और चाय की दुकान तक चलाने का काम करना पड़ रहा है। प्रदेशभर में नियमित प्रशिक्षकों की संख्या सिर्फ 150 के आसपास है। खिलाडिय़ों को निखारने की जिम्मेदारी संविदा प्रशिक्षकों पर अधिक है। ऐसे में सवाल यह है कि खेल विभाग इनकी मदद के लिए आगे क्यों नहीं आ रहा है। हालांकि, उत्तर प्रदेश ओलंपिक एसोसिएशन की अगुआई में तमाम खेल संघों ने उन्हेंं शासन से पांच हजार रुपये प्रतिमाह वेतन देने की गुहार लगाई है, लेकिन संबंधित विभाग की उदासीनता के चलते इस पर भी अभी तक कोई फैसला नहीं हो सका है।

शत्रुघ्न लाल : अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी शत्रुघ्न लाल शहर के चौक स्टेडियम में संविदा पर कोच हैं। उन्हेंं बच्चों को खिलाड़ी बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। वह इसे बखूबी निभा भी रहे थे, लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते उन्हेंं घर बैठना पड़ा। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई तो दूर, दो जून की रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है। शत्रुघ्न बताते हैैं, पांच महीने से सैलरी नहीं मिली है। अब तो मेरे बच्चों का भविष्य भी दांव पर लगता दिख रहा है। इस संबंध में कई बार खेल विभाग का चक्कर भी लगा चुका हूं, लेकिन आश्वासन के सिवाय कुछ नहीं मिला। शुत्रघ्न ने ऐशबाग में किराये की दुकान लेकर अपने परिजनों के साथ चाट की दुकान इस उम्मीद में खोली कि शायद हालात कुछ बेहतर हो जाएं, लेकिन किस्मत ने यहां भी धोखा दिया। वह बताते हैैं कि कोरोना के डर से ग्राहकों का भी टोटा है।

मुहम्मद नसीम : उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर की टीम से अपने पंच का जौहर दिखा चुके मुक्केबाज मुहम्मद नसीम इन दिनों बेरोजगार हैैं। कोरोना काल के पहले शहर के चौक स्टेडियम में वह संविदा पर मुक्केबाजी कोच की भूमिका निभा रहे थे, लेकिन इस वैश्विक महामारी के संक्रमण का दायरा इस कदर बढ़ा कि उसकी जद से वह भी नहीं बच सके। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई और परिवार का खर्च चलाने के लिए नसीम को चाय की दुकान खोलनी पड़ी। दैनिक जागरण से बातचीत में उन्होंने कहा, जब किसी नौकरीपेशा व्यक्ति को एक महीने की सैलरी नहीं मिलती तो घर का हिसाब-किताब खराब हो जाता है, हम लोगों को पांच महीने से एक पैसा नहीं मिला है, सोचिए हमारे परिवार पर क्या बीत रही होगी। पैसा न होने की वजह से कोई और व्यापार तो कर नहीं सकता, इसलिए चाय की दुकान ही खोल ली। खेल विभाग के कार्यालय जाकर कई बार हाजिरी लगाई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।

द फ्रीडम स्टॉफ
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