लोक आस्था का महापर्व छठ प्रकृति से जुड़ने का एक उत्सव है। यह सिसकती संस्कृति और मिटते नदियों और तालाबों के लिए भी एक आस है। आपके शहर में छठ व्रती सांस्कृतिक अतिक्रमण और नदियों पर कब्जे की नियत से नहीं उमड़ते हैं। यह तो पलायन की मजबूरी और परंपराओं से जुड़ाव के नाते घाटों का रुख करते हैं। यहां लोग प्रदूषण फैलाने नहीं, बल्कि नदियों की सफाई और सनातन संस्कृति के चेतना जागरणार्थ आते हैं। यहां न तो प्लास्टिक और न ही किसी रसायन का कोई उपयोग होता है। यहां तक कि यह पूजा प्रदूषण के अन्य माध्यमों से भी मुक्त है। लोगबाग यहां श्रद्धा से खिंचे और भक्ति के रंग रंगे चले आते हैं।
आखिर सामूहिकता में विश्वास सूर्य में श्रद्धा और गंगा यमुना तट पर आस्था को आप कैसे रोक सकते हैं? छठ एक ऐसा पर्व है जिसे बिना लोगों के सहयोग के संपन्न नहीं किया जा सकता। प्रसाद बनाने, अर्ध्य देने और छठ गीत गाने तक के लिए रिश्तेदार और परिचित लोग चाहिए। इस पर्व में छठ घाट तक प्रसाद से भरी टोकरी को सिर पर ढोकर लाने और ले जाने का विधान है। वहीं छठ गीतों में संयुक्त परिवार, गांव, प्रकृति और सार्थक सामाजिक संदेश होते हैं। बिखरते परिवार, उजड़ते गांव वाले दौर में भी छठ व्रती अपने लिए एक प्यारी बेटी और दूसरों के लिए सौभाग्य मांगते हैं। ऐसे सभी उपक्रम परिवार व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए हैं। इससे सामाजिक जुड़ाव और लगाव भी बढ़ता है।
छठ महापर्व मात्र एक त्यौहार भर नहीं है। यह अध्यात्म और भौतिकता का वो अनूठा संगम है जिसने सदियों से सनातन संस्कृति की मानव और प्रकृति उत्थान की बुनियादी सोच को अभिसिंचित किया है। छठ पूजा वो भावना है, जो हमें प्रकृति के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का एक अवसर देती है। प्रकृति और जीवन एक दूसरे के पूरक हैं। बिना प्रकृति जीवन की कोई कल्पना नहीं है। लोक आस्था का महापर्व सनातन की “सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे संतु निरामया…” के मूल-मंत्र को मूर्त रूप देने वाला एक ऐसा अनुष्ठान है जिसमें सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय की कामना निहित है। इस भौतिक या नश्वर संसार में जीवों में ऊर्जा का मुख्य स्रोत सूर्य है। छठ महापर्व एक मात्र ऐसा पर्व है जिसमें सूर्य के उदीयमान होने से लेकर उसके अस्ताचलगामी होने तक के स्वरूप का पूजन किया जाता है। यह सनातन संस्कृति की उदारता और प्रकृति के प्रति उसकी कृतज्ञता के चरम भाव का द्योतक है।
भगवान सूर्य की उपासना के महापर्व ‘छठ’ की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। छठी मइया की कृपा से लोक आस्था का यह महापर्व सकल विश्व के लिए सुख-समृद्धि तथा आरोग्यता का कारक बनें।
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राजेन्द्र वैश्य
अध्यक्ष-पृथ्वी संरक्षण
डलमऊ,रायबरेली।