रूसी क्रांति के नायक व्लादिमीर लेनिन ने कहा था कि “रूस के लिए यूक्रेन को गवांना ठीक वैसा ही होगा जैसा एक शरीर से उसका सिर अलग हो जाए।” यूक्रेन का जन्म देखा जाए तो 1917 में रूसी क्रांति से बिखरे रूसी साम्राज्य से यूक्रेन ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी लेकिन 3 […]
नज़रिया
चीप पब्लिसिटी की खातिर दैनिक भास्कर ने लांघी शाब्दिक मर्यादा: विधायक अदिति सिंह को बताया वसूलीबाई
देश का और यूपी का निजाम बदलते ही दैनिक भास्कर एकदम बदलापुर मूड में आ गया है। भाजपा की नीति, उनके नारों, उनके नेताओं और उनकी नियति को ये लगातार कठघरे में खड़ा कर रहा है। इन्होंने चुनावी पोस्टर नाम से एक नई पहल शुरू की है जो वीडियो फॉर्मेट के पॉलीटून जैसी है। पॉलीटून […]
Budget 2022: रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत
रक्षा उपकरणों का वितरण: एचएएल द्वारा डिज़ाइन और विकसित किया गया हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टरों को वायु सेना प्रमुख को सौंप दिया गया। भारतीय स्टार्टअप द्वारा डिज़ाइन और विकसित किये गए ड्रोन और यूएवी थल सेनाध्यक्ष को दिये गए।डीआरडीओ द्वारा डिज़ाइन और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) द्वारा निर्मित नौसेना के जहाजों के लिये उन्नत इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर […]
चुनाव में ‘मुफ्त की राजनीति’ एवं इसका प्रभाव
भारतीय राजनीति में मुफ्त सुविधाएँ: राजनीतिक दल लोगों के वोट को सुरक्षित करने के लिये मुफ्त बिजली / पानी की आपूर्त्ति, बेरोज़गारों, दैनिक वेतनभोगी श्रमिकों और महिलाओं को भत्ता, साथ-साथ गैजेट जैसे लैपटॉप, स्मार्टफोन आदि की पेशकश करने का वादा करते हैं। इस प्रथा के पक्ष और विपक्ष में कई तर्क हैं: ऐसी प्रथा के […]
अब कोई दूसरा कमाल ख़ान नहीं होगा – रवीश कुमार
उन्होंने केवल पत्रकारिता की नुमाइंदगी नहीं की, पत्रकारिता के भीतर संवेदना और भाषा की नुमाइंदगी नहीं की, बल्कि अपनी रिपोर्ट के ज़रिए अपने शहर लखनऊ और अपने मुल्क हिन्दुस्तान की भी नुमाइंदगी की. कमाल का मतलब पुराना लखनऊ भी था जिस लखनऊ को धर्म के नाम पर चली नफ़रत की आंधी ने बदल दिया. वहां […]
कृषि कानूनों की वापसी पर शोक मनाने वालों ना तो खेत समझते हैं ना खेती- आकार पटेल
कृषि कानूनों की वापसी पर दो तरह के लोगों ने प्रतिक्रिया जताई है। एक तो किसान हैं, जो करीब एक साल से आंदोलन कर रहे हैं, इनमें अधिकतर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के हैं। इन लोगों ने कानूनों की वापसी का जश्न मनाया, क्योंकि संघर्ष कामयाब हुआ और उनके नागरिक अधिकारों की जीत हुई। […]
देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू का लोकतंत्र में था यकीन, इसलिए वे थे इतने उदारवादी
30 जनवरी, 1948 को दक्षिणपंथी उग्रवादी और हिन्दू कट्टरपंथी नाथराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या कर दी और फिर परे देश का बोझ जवाहरलाल नेहरू के कंधे पर आ गया। गांधी के बाद के समय में जब नेहरू निर्विवाद रूप से देश के सबसे बड़े नेता थे, उस समय तक भारत का संविधान तैयार […]
दिल्ली के मुखिया जिस यमुना में दिल्लीवासियों को डुबकी लगवाना चाहते हैं वह यमुना सरकारी फाइलों में ‘मृत नदी’ के रूप में है दर्ज
यमुना में झाग की तस्वीरों से उत्सवप्रेमी धर्मभीरू समाज विचलित है. सरकार की लानत मलानत की जा रही है कि वादों दावों और इरादों के बावजूद यमुना में गिर रहे नालों को रोका क्यों नहीं जा रहा है. यहां सरकार का मतलब है पिछले 28 सालों में जब भी जिसकी भी सरकार रही है उसने […]
कांग्रेस को एक नए सामाजिक विजन की जरूरत है- ज़फ़र आग़ा
आखिर वही हुआ जो होना था। पिछले सप्ताह यह तय हो गया कि कांग्रेस पार्टी की कमान गांधी परिवार के ही हाथों में ही रहेगी। अब आप ही बताइए, क्या कांग्रेस की कमान गुलाम नबी आजाद को सौंप दी जाए! क्या शशि थरूर कांग्रेस को पुनर्जीवन दे सकते हैं! पूरी कांग्रेस पार्टी में गांधी परिवार […]
आज़ादी के बाद बदलना चाहिए था पुलिस का चरित्र, मगर अफ़सोस नहीं आया उसके मूल चरित्र में कोई ख़ास बदलाव
पुलिस द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन के प्रकरण आजकल प्रायः रोज़ ही देखने, सुनने और पढ़ने को मिलते रहते हैं। जनसामान्य के साथ पुलिस के दुर्व्यवहार, मारपीट, उत्पीड़न, यातना आदि के प्रकरण समाचार-पत्रों की अक्सर सुर्खियाँ बनते रहते हैं। मारपीट और यातना के कुछ प्रकरणों में पीड़ित की मृत्यु तक हो जाती है। मृत्युवाले प्रकरणों में कुछ […]