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NRC का फाइनल ड्रॉफ्ट जारी, 40 लाख लोगों के नाम गायब, ममता ने कहा, बंगालियों के खिलाफ ये BJP की साजिश

गुवाहाटी: असम में नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन का फाइनल ड्राफ्ट जारी होने के साथ ही राजनीतिक बवाल भी शुरू हो गया है। इस ड्राफ्ट में 40 लाख लोगों के नाम नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इन लोगों का क्या होगा? हालांकि, यह फाइनल लिस्ट नहीं है बल्कि ड्राफ्ट है। जिन लोगों के नाम इसमें शामिल नहीं है, वे इसके लिए दावा कर सकते हैं। इसके बावजूद इसको लेकर असम में तनाव है और संसद में यह मामला सोमवार को उठा तो केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को सरकार की तरफ से पक्ष रखना पड़ा। इससे पहले 31 दिसंबर को पहला ड्राफ्ट जारी किया गया था। तब 1.90 करोड़ लोगों के नाम शामिल किए गए थे। प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि ये बंगाली बोलने वाले लोगों और बिहारियों को बाहर निकालने की भाजपा की साजिश है।

क्या है नैशनल रजिस्टर?
नए नैशनल सिटिजन रजिस्टर में असम में बसे सभी भारतीय नागरिकों के नाम, पते और फोटो हैं। यह पहला मौका है, जब सूबे में अवैध रूप से रहने वाले लोगों के बारे में जानकारी मिल सकेगी। देश में लागू नागरिकता कानून से थोड़ा अलग रूप में राज्य में असम अकॉर्ड, 1985 लागू है। इसके मुताबिक 24 मार्च, 1971 की आधी रात तक सूबे में प्रवेश करने वाले लोगों को भारतीय नागरिक माना जाएगा।

अभी भी क्लेम करने का दूसरा अवसर

नागरिकता के लिए 3,29,91,380 लोगों ने आवेदन किया था, जिनमें से 2,89,38, 677 को नागरिकता के लिए योग्य पाया गया है। जिन 40 लाख लोगों का नाम लिस्ट से बाहर है उनके पास अभी भी क्लेम करने का दूसरा अवसर है। एनआरसी कोऑर्डिनेटर ने कहा कि इस लिस्ट के आधार पर किसी भी नागरिक को फिलहाल डिटेंशन सेंटर में नहीं भेजा जाएगा।

इसमें केंद्र का क्या रोल है?

अब यह भी सवाल सामने आ रहा है कि अंतिम ड्राफ्ट आने के बाद जिनका नाम एनआरसी में नहीं आता है उनका भविष्य क्या होगा? एनआरसी लिस्ट को लेकर उलझन और संशय पर राजनाथ सिंह ने सोमवार को लोकसभा में कहा, ‘इस मामले में पूरी पारदर्शिता बरती जाएगी। मैं विपक्ष से पूछना चाहता हूं कि इसमें केंद्र का क्या रोल है? यह सब कुछ सुप्रीम कोर्ट के निगरानी में चल रहा है। इस तरह के संवदेनशील मसले पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। जो ड्राफ्ट आया है, वह अंतिम नहीं है। इसके बाद भी दावा किया जा सकता है। जिन्हें लगता है कि उनका नाम इसमें होना चाहिए वह एनआरसी में दावा कर सकते हैं। इस दावे का निपटारा कितने दिन में होगा, इस बारे में सुप्रीम कोर्ट को तय करना है। अगर कोई इससे भी संतुष्ट नहीं होता है तो वह फॉरनर्स ट्राइब्यूनल में अपील कर सकते हैं। कहीं न कहीं तो न्याय मिलेगा ही। मैं पूरे सदन से अपील करना चाहता हूं कि इसमें सभी का सहयोग मिलना चाहिए। इस तरह के संवेदनशील मुद्दे पर हंगामा नहीं किया जाना चाहिए।’

यह लिस्ट फाइनल नहीं

रजिस्ट्रार जनरल शैलेश ने साफ कहा है कि यह लिस्ट फाइनल नहीं है और क्लेम और आपत्तियां दर्ज की जाएंगी। 3,29,91,380 लोगों ने नागरिकता के लिए आवेदन किया था, जिनमें से 2,89,38, 677 को नागरिकता के लिए योग्य पाया गया है। जिनका नाम इस लिस्ट में नहीं आया है, उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है। भारत के किसी भी वैध नागरिक के साथ कोई अन्याय नहीं होगा।’ रजिस्ट्रार जनरल के इस बयान के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या जो लोग भारत के वैध नागरिक नहीं हैं, उनका भविष्य क्या होगा?

चुनाव आयोग अंतिम फैसला करेगा

अभी यह साफ नहीं है कि जिन 40 लाख लोगों का नाम इस लिस्ट में नहीं है, वे क्या अगले आम चुनाव में वोट डाल पाएंगे? अधिकारियों का कहना है कि इस पर चुनाव आयोग अंतिम फैसला करेगा।

अगर आपका नाम लिस्ट में नहीं है तो ये करें
-आपके पास क्लेम करने का एक और मौका है। आप 30 अगस्त से 28 सितंबर तक दावा कर सकते हैं। पूरी सुनवाई के बाद ही इसका निपटारा होगा। असम में मौजूद आवेदक हेल्पलाइन नंबर 15107 पर किसी भी समय कॉल कर सकते हैं। इसके अलावा असम के बाहर के आवेदक 18003453762 नंबर पर कॉल कर जानकारी दे सकते हैं। हालांकि इस दौरान आवेदक को रसीद संख्या की जानकारी देनी होगी।
ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने भी लोगों की मदद के लिए एक कंट्रोल रूम शुरू करने की पहल की है। इस कंट्रोल रूम से भी 24 घंटे मदद मिल सकेगी।

खुद को करना होगा यह साबित
इस रजिस्टर में उन्हीं लोगों के नाम शामिल किए जाएंगे, जो खुद को साबित कर पाएंगे कि उनका जन्म 21 मार्च, 1971 से पहले असम में हुआ था। इस लिस्ट में उन लोगों को भी शामिल किया गया है जिनके वंशज देश की पहली जनगणना (1951) में शामिल थे या फिर जिनका नाम 24 मार्च, 1971 को असम की निर्वाचक नामावली में शामिल था।

इस मुद्दे पर कई बड़े और हिंसक आंदोलन भी

असम में अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशियों का मामला बहुत बड़ा मुद्दा रहा है। इस मुद्दे पर कई बड़े और हिंसक आंदोलन भी हुए है। असम के मूल नागरिकों ने तर्क दिया कि अवैध रूप से आकर यहां रह रहे ये लोग उनका हक मार रहे हैं। 80 के दशक में इसे लेकर एक बड़ा स्टूडेंट मूवमेंट हुआ था जिसके बाद असम गण परिषद और तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के बीच समझौता हुआ कि 1971 तक जो भी बांग्लोदशी असम में घुसे उन्हें नागरिकता दी जाएगी और बाकी को निर्वासित किया जाएगा। कई सालों तक सियासी बवाल के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और फिर अदालत के दबाव में नैशनल सिटिजन रजिस्टर जारी किया गया।

बांग्लादेश से भारत के रिश्ते अच्छे

अब यह भी सवाल सामने आ रहा है कि अंतिम ड्राफ्ट आने के बाद जिनका नाम एनआरसी में नहीं आता है उनका भविष्य क्या होगा? क्या उन्हें बांग्लोदश भेज दिया जाएगा? सूत्रों के अनुसार अभी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर लिस्ट जारी की जा रही है, लेकिन उसके बाद क्या करना है, इसके लिए नीति को अंतिम रूप नहीं दिया गया है। दरअसल, इतनी बड़ी संख्या में अवैध नागरिकों के साथ क्या सलूक हो, यह केंद्र और राज्य सरकार के लिए सबसे बड़ी दुविधा हो सकती है। पीएम नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में बांग्लादेश से भारत के रिश्ते अच्छे हुए हैं और पाकिस्तान को अलग-थलग करने में भारत को उससे मदद मिली है। ऐसे में बांग्लादेश पर इन लाखों लोगों को लेने का दबाव बनाना आसान नहीं होगा।

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