सादगी से भरा व्यक्तित्व, स्वाभाविक सी प्रतीत होती औदात्यमयी मुस्कान, कर्मठता से भरा जीवन और काम को एक तय समय मे अंजाम देने की जिद का नाम है अरविंद शर्मा। अरविंद शर्मा गुजरात कैडर के 1988 बैच के आईएएस अफसर हैं जो फिलवक्त भाजपा पार्टी के एमएलसी है और संगठन में उपाध्यक्ष है।
अरविंद शर्मा के इस हालिया परिचय से पहले का उनका जीवन कर्मठता का एक महाकाव्य है। उप्र में एक जिला पड़ता है मऊ; मऊ जनपद में एक तहसील पड़ती है- मोहम्मदाबाद गोहना और इसी तहसील के काज खुर्द गांव में बरस 1962 में श्रीमूर्ति राय और शांति राय की सबसे बड़ी संतान के रूप में अरविंद शर्मा का जन्म हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव से हुई, इसके बाद वो शहर के डीएवी कॉलेज में गए। यहाँ से पढ़ने के बाद उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया; जहाँ से बीए, एमए और पीएचडी करने के बाद उन्होंने सिविल सेवा की परीक्षा दीं। इसमें उनका चयन आईएएस के लिए हुआ और उन्हें गुजरात कैडर मिला।
अरविंद शर्मा ने यहाँ पर विभिन्न प्रशासनिक महकमों में काम किया। फिर 2001 का साल आता है जबकि गुजरात के मुख्यमंत्री पद से केशूभाई पटेल की विदाई होती है और नरेंद्र मोदी नए मुख्यमंत्री बनते है। केशूभाई पटेल के मुख्यमंत्री पद छोड़ने के वक्त गुजरात की हालत कुछ खास ठीक न थी। 1998 का कांडला बंदरगाह में आया तूफान, साल 1999-2000 में कच्छ और सौराष्ट्र में आया सूखा और फिर 2001 का भुज का भूकंप मने प्राकृतिक समस्याओं और विपदाओं की एक सिलसिलेवार विरासत का ताज उन्हें मिला था।
इस वक्त में नरेंद्र मोदी की भेंट गुजरात कैडर के एक वरिष्ठ अधिकारी से होती है जो उन्हें एक अधिकारी का नाम सुझाते है—- अरविंद शर्मा का। सीएम मोदी इस वक्त भुज भूकंप की मार झेल रही जनता के राहत और पुनर्वास कार्य की व्यवस्था देख रहे होते है। ऐसे में अरविंद शर्मा राहत और पुनर्वास कार्य को ऐसे योजनाबद्ध और नियोजित ढंग से अंजाम देते है कि आपदा काल मे गुजरात द्वारा किया गए राहत और पुनर्वास के कार्य केस स्टडी सरीखे बन जाता है। ऐसे में अरविंद शर्मा, सीएम मोदी के और नजदीक आ जाते है। सीएम कार्यालय में सचिव पद पर कार्यरत शर्मा जी अब जॉइंट सेक्रेटरी बना दिये जाते है। साल 2003 में शुरू हुए वाइब्रेंट गुजरात के बाद के संस्करणों में इस सम्मेलन को निवेश का इंजन बनाने में अरविंद शर्मा की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस सम्मेलन के सबसे महत्वपूर्ण योजनाकारों में से एक रहे है वो।
साल 2008 का समय था; विश्व मे आर्थिक महामंदी की सुगबुगाहट शुरू हो गयी थी। फिर भी भारत के हालात अभी सुथरे हुए ही थे। ऐसे में एक दिग्गज उद्योगपति घराने के एक उद्यमी पुरूष रतन टाटा लोगों को लाख रूपये में कार देने का एक सपना पालते है। इस सपने की जमीन वो बंगाल में तैयार करना चाहते है। इसके लिए सिंगूर को वो चुनते है। लेफ्ट पार्टी उन्हें जमीन आवंटित कर देती है। मगर इस जमीन आवंटन का मुख्य विपक्षी पार्टी तृणमूल कांग्रेस जाबड़ विरोध करती है और अंततः रतन टाटा वहां प्लांट न लगाने का निश्चय करते है।
इसके बाद गुजरात से रतन टाटा को एक फोन जाता है और सुस्वागतम की आवाज आती है। फोनकर्ता होते है नरेंद्र मोदी और वो रतन टाटा को गुजरात मे प्लांट लगाने को हामी भर देते है। कहते है कि इस राजीनामे और करार के पीछे जो प्रमुख वास्तुकार थे, वो थे अरविंद शर्मा। नरेंद्र मोदी के सच्चे सिपहसालार अरविंद शर्मा एक बार फिर से अपनी समझ और कर्मठता को साबित कर देते है।
अरविंद शर्मा, मोदी के आँख के ऐसे तारे है जिन्हें मोदी ने राज्य की राजनीति छोड़ने पर केंद्र की राजनीति में भी अपने साथ बनाए रखा। 26 जनवरी 2014 को मोदी जी पीएम पद की शपथ लेते है और 3 जून 2014 को अरविंद शर्मा पीएमओ में संयुक्त सचिव पद पर बहाल होते है। इसके बाद उन्हें एडिशनल सेक्रेटरी बनाया जाता है।
साल 2020 में जब कोरोना महामारी हमारे जन को और उद्योगों को मार रही होती है। उस वक्त देश की अर्थव्यवस्था के एक प्रमुख तंत्र एमएसएमई के मंत्रालय का उन्हें सचिव बनाया जाता है। जहाँ पर वो आसानी से और किफायती दामों पर लोन देने की एक योजना के साथ आत्मनिर्भर भारत जैसी योजनाओं के माध्यम से इस सेक्टर को पुनर्जीवित करने का एक सफल उपक्रम साधते है।
जनवरी 2021 में करीब दो साल पहले ही वो स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले लेते है, एक नई यात्रा पर निकलने के लिए… जो उन्हें लोकसेवक से लोकप्रतिनिधि के मार्ग पर ले जाती है। वो सदस्यों की संख्या के लिहाज से विश्व की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा को जॉइन करते है। अरविंद शर्मा की लोकप्रियता का ये आलम था कि उनके भाजपा जॉइन करते ही मानस और लोक के एक हिस्से से उन्हें सूबे के सूबेदार या नायब बनाने की मांगे उठने लगती है। उस वक्त वो यूपी की राजनीति के पोस्टर बॉय बन जाते है। इसके बाद वो राज्य विधानसभा के उच्च सदन यानी विधान परिषद के सदस्य के तौर पर वो निर्वाचित होते है। जून 2021 में उनकी भाजपा संगठन में उपाध्यक्ष के तौर पर एंट्री होती है।
समय बीतता गया और 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा फिर से पूरी धमक के साथ उत्तर प्रदेश में सरकार बनाती है। यहां पर उल्लेख करना जरूरी है कि 2022 में हुए यूपी के विधानसभा चुनाव में एके शर्मा भाजपा के एक प्रमुख रणनीतिकार भी रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री बनने के साथ ही वह भाजपा की स्वच्छ छवि को न सिर्फ मजबूत करते है बल्कि भाजपा की सिग्नेचर कार्यशैली गुड गवर्नेंस की भी अवश्यंभावी उम्मीद जगाते है।
संकर्षण शुक्ला