अफगानिस्तान पर एक बार फिर से तालिबान के कब्जे के बाद तालिबान और युवा देशभक्तों के बीच राष्ट्रीय ध्वज को लेकर संघर्ष बढ़ने लगा है। अफगानिस्तान के युवा देशभक्तों को अपने देश के झंडे के साथ अपनी राष्ट्रीय पहचान पर गर्व है, जबकि आतंकी संगठन इसे बदलना चाहता है।
तालिबान और युवा ब्रिगेड के बीच दरार तब प्रज्वलित हुई, जब तालिबान ने अफगान राष्ट्रीय ध्वज को बदलने की कोशिश की और जिस राजा अमानुल्लाह ने आजादी के लिए संघर्ष किया था, तालिबान उसे भुलाकर देश की हर महत्वपूर्ण चीजों में अपनी मनमानी करना चाह रहा है। हालांकि राष्ट्रीय ध्वज बदलने की उसकी मंशा का खूब विरोध हो रहा है, और इसे लेकर लोगों की भावनाएं भड़क उठीं हैं।
बुधवार को, जलालाबाद शहर झंडे की लड़ाई में एक फ्लैशप्वाइंट बन गया, जो प्रतिस्पर्धी राष्ट्रीय पहचान और विचारधाराओं के बीच संघर्ष को प्रदर्शित करता है। जलालाबाद में लोगों ने अपने पारंपरिक राष्ट्रीय तिरंगे (काले, लाल और हरे रंग का झंडा) के समर्थन में जुलूस निकाला। उन्होंने तालिबान के सफेद झंडे को उतार दिया और उसकी जगह राष्ट्रीय ध्वज लगा दिया, जिसके बाद तालिबान आतंकियों की ओर से गोलियां चलाई गईं। स्थानीय मीडिया ने बताया कि गोलीबारी में दो की मौत हो गई और अन्य कई घायल हो गए।
जलालाबाद की घटना ने एक सोशल मीडिया तूफान को सक्रिय कर दिया, जिसने बदले में एकजुटता की लहर पैदा कर दी है। इस घटनाक्रम ने लोगों को बड़ी संख्या में राष्ट्रीय तिरंगे के प्रति अपनी निष्ठा प्रदर्शित करने के लिए प्रेरित किया है। एक अफगान कार्यकर्ता ने तस्वीरें साझा करते हुए लिखा, “राष्ट्रीय ध्वज के शहीद। आज जलालाबाद में, सहर ब्रॉडकास्टिंग एसोसिएशन के प्रमुख जाहिदुल्लाह, तालिबान द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए शहीद हो गए।”
जो भी लोग अफगान राष्ट्रीय ध्वज के समर्थन में सामने आए हैं, उनमें से ज्यादातर वे युवा हैं, जो एक स्वतंत्र अफगानिस्तान चाहते हैं, जिस पर कोई अंदरूनी या बाहरी हस्तक्षेप न हो। नंगरहार में, सैकड़ों लोगों ने अपने अफगान झंडे लहराए और उन्होंने तालिबान से इसका सम्मान करने और इसे न बदलने का आग्रह किया।
देश में राष्ट्रवादी भावना अब जंगल की आग की तरह फैल रही है। अफगान पत्रकार फ्रूड बेजान ने राष्ट्रीय ध्वज के साथ बाहर आने वाले लोगों की तस्वीर साझा की और बताया कि तालिबान ने अफगानिस्तान के पूर्वी शहर खोस्त में प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाईं। यह फुटेज कथित तौर पर दिखाता है कि निवासियों द्वारा सफेद तालिबान के झंडे को उतारने और इसे अफगानिस्तान के काले, लाल और हरे झंडे के साथ बदलने के बाद कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया और कई लोग घायल हो गए।
बीबीसी पस्तो के अनुसार, “विरोध के दौरान अराजकता फैल गई और स्थानीय मीडिया द्वारा जारी वीडियो में कुछ बंदूकधारियों ने लोगों को तितर-बितर करने के लिए हवा में गोलियां चलाईं। स्थानीय सूत्रों ने कहा कि फायरिंग में कम से कम एक व्यक्ति घायल हो गया।” अब सवाल यह उठता है कि क्या यह विद्रोहियों के खिलाफ राष्ट्रीय नागरिक प्रतिरोध की चिंगारी है?
तालिबान की ओर से सेना पर अपना अधिकार स्थापित करने और चुनी हुई सरकार के भागने के बावजूद, अफगानी लोग तालिबान की मौजूदगी में गुरुवार को स्वतंत्रता दिवस मनाने से पीछे नहीं हटे हैं। विडंबना यह है कि अफगानिस्तान को कभी उपनिवेश नहीं होने का असामान्य गौरव प्राप्त है, मगर फिर भी वह स्वतंत्रता दिवस मनाता है। अफगानिस्तान में स्वतंत्रता दिवस 19 अगस्त, 1919 को अफगानिस्तान के तत्कालीन राजा अमानुल्लाह खान और ब्रिटेन के बीच एक संधि पर हस्ताक्षर करने का प्रतीक है।
इस संधि ने लंदन को अफगान मामलों में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिए प्रतिबद्ध किया था। एक ब्रिटिश राजदूत की उपस्थिति में राजा अमानुल्लाह ने अफगानिस्तान को ‘आंतरिक और बाहरी दोनों तरह से पूरी तरह से स्वतंत्र, स्वायत्त और स्वतंत्र’ घोषित किया था। तब से इस दिन यानी 19 अगस्त को अफगानिस्तान अपना स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। इस वर्ष वह अपना 102वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है।
अब यहां फिर से तालिबान के सत्ता में आने से नागरिकों का भविष्य जरूर अंधकार में है और वह डर के साये में जी रहे हैं, मगर इसके बावजूद देश में स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा है। राजा अमानुल्लाह की स्वतंत्रता की मूल घोषणा को उद्धृत करने के लिए, इसका अर्थ कुछ ऐसा होना चाहिए जो ‘आंतरिक और बाहरी दोनों’ पर लागू हो।
अफगानिस्तान के झंडे के तीन रंग- काला रंग एक संरक्षित राज्य के रूप में इसके अशांत 19वीं सदी के इतिहास का प्रतिनिधित्व करता है, लाल स्वतंत्रता के लिए लड़ने वालों के खून को दर्शाता है और हरा भविष्य के लिए आशा और समृद्धि को दर्शाता है।
तो फिर, अफगानिस्तान में स्वतंत्रता का क्या अर्थ है? 2021 में यह कहना मुश्किल है। लेकिन संदेश साफ है। जैसा कि ट्विटर पर एक पोस्ट में कहा गया है, “ध्वज को निर्विवाद रखें। इस ध्वज को बदलना अफगानों को विभाजित कर रहा है.. बिगाड़ने वालों को अवसर न दें.. तालिबान को इस पर सोचना चाहिए.. वे बैरल के माध्यम से बहुत लंबे समय तक कई मोर्चों को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं.. दिल और दिमाग जीतें।”
पंजशीर प्रांत में तालिबान विरोधी मोर्चा पहले से ही दिखाई दे रहा है, जहां पहले उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह ने ‘कार्यवाहक राष्ट्रपति’ होने की स्व-घोषणा जारी की है। उन्होंने अन्य देशों से तालिबान के खिलाफ लड़ाई में उनका समर्थन करने का आह्वान किया है।