आशीष सिंह विक्रम, यूपी ब्यूरो: इससे बुरा क्या हो सकता है कि जिस अधिकारी को लोगों की जान बचाने के लिये सरकार ने नियुक्त किया हो और वही निजी लाभ के लिए लोगों की जान से खेलने वाले डॉक्टरों को बचाने के काम में लग जाए। 2 महीने पहले गलत तरीके से और गलत रिपोर्ट देने का आरोप स्वास्तिक डॉयग्नोस्ट की संचालिका डॉ शैल्जा गुप्ता पर लग चुका है। इस बात की लिखित शिकायत महिला के पति ने CMO कार्यालय रायबरेली में की वह भी सबूत के साथ लेकिन पता नहीं कौन सी मीठी मिठाई है जो खाने के बाद CMO डॉ नवीन चंद्रा ने कार्यवाही तक नहीं कर पा रहे हैं।
CMO साहब की सरपरस्ती में डॉक्टर साहिबा अपने पेशे की गरिमा को तार-तार करते हुए दांये बांये रिपोर्ट छापकर मासूम महिलाओं को ऑपरेशन की तरफ ढकेल रही हैं या उनको मानसिक परेशानी में डाल रही हैं। हालांकि यह जांच का विषय है कि अब तक कितनी गलत रिपोर्ट बना कर डॉ शैल्जा गुप्ता पता नहीं कितनी महिलाओं की जान से खेल चुकी होंगी। मगर रायबरेली का CMO कार्यलय और वहां के जिम्मेदार अधिकारी लेन-देन करके आंखे मूंद लेते हैं।
मामला कुछ यूं है कि एक महिला अपने इलाज के लिए रायबरेली में डॉ सुमेधा रस्तोगी के पास जाती है और सुमेधा रस्तोगी उनको अल्ट्रासाउंड करवाने को कहती हैं वह भी स्वास्तिक डॉयगनोस्ट से। महिला स्वास्तिक डॉयगनोस्ट गयी और अपना अल्ट्रासाउंड करवाया और स्वास्तिक डॉयगनोस्ट की संचालिका डॉ शैलजा गुप्ता जोकि एक MBBS डिग्रीधारक हैं और उन्होंने पता नहीं किस नीयत से एक गलत रिपोर्ट दे दी जिसमे महिला का यूट्रस सामान्य से बहुत बड़ा दिखाया गया। इसके बाद महिला समुेधा रस्तोगी के पास दोबारा गयी रिपोर्ट लेकर तब डॉ सुमेधा ने कहा इसका तो ऑपरेशन करना पड़ेगा और हो सकता है यूट्रस निकालना भी पड़े, आप रविवार को 6 हजार रूपये लेकर आ जाना। यह सुनकर महिला जोकि नवविवाहिता थी और कोई संतान नहीं थी और परिजनों के पैरों तल जमीन खिसक गयी और महिला अवसाद में चली गयी।
इसके 2 तीन बाद महिला के परिजनों ने डॉ सुमेधा के पास ना जाकर लखनऊ के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में दोबारा मामले की चिकित्तसीय सलाह ली। वहां की वरिष्ठ महिला चिकित्सक ने डॉ शैल्जा की रिपोर्ट पर हैरानी जताते हुए कहा कि ऐसा कोई कैसे लिख सकता है और उन्होने दोबारा महिला का अल्ट्रासाउंड कराने को कहा और आश्यर्यजनक रुप से जब महिला के दोबारा अल्ट्रासाउंड की जब रिपोर्ट आयी तब उसमें सब कुछ सामान्य था। यह सुनकर महिला के परिजनों को आश्यर्य हुआ कि कोई ड़ॉक्टर चंद पैसों के लिए कितना गिर सकती है जबकि वह खुद एक महिला है।
इस लूटमार की और लोगों की जान से खेलने के चल रहे इस गंदे खेल के बारे में महिला के पति ने एक लिखित शिकायत रायबरेली मुख्य चिकित्साधिकारी से की। जिस पर 1 महीना से ज्यादा समय बीतने पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई। सूत्रों के मुताबित इस बार भी इस मामले में लीपापोती करके संभवत: लेनदेन भी मामले को रफा दफा कर दिया। हमारे संवावदाता ने कई बार मुख्य चिकित्साधिकारी नवीन चंद्रा से बात करने की कोशिश लेकिन उन्होने फोन नहीं उठाया। अब सवाल उठता है कि सरकार ने जिसे चिकित्सकों की निरंकुशता पर रोक लगाने और आम जन को लूटमार से बचाने के लिए नियुक्त कर रखा है जब वह ही लापरवाह है तो न्याय की उम्मीद किससे लोग करें।