नज़रिया

प्रकृति से जुड़ने का एक उत्सव है महापर्व छठ- राजेंद्र वैश्य

लोक आस्था का महापर्व छठ प्रकृति से जुड़ने का एक उत्सव है। यह सिसकती संस्कृति और मिटते नदियों और तालाबों के लिए भी एक आस है। आपके शहर में छठ व्रती सांस्कृतिक अतिक्रमण और नदियों पर कब्जे की नियत से नहीं उमड़ते हैं। यह तो पलायन की मजबूरी और परंपराओं से जुड़ाव के नाते घाटों का रुख करते हैं। यहां लोग प्रदूषण फैलाने नहीं, बल्कि नदियों की सफाई और सनातन संस्कृति के चेतना जागरणार्थ आते हैं।

यहां न तो प्लास्टिक और न ही किसी रसायन का कोई उपयोग होता है। यहां तक कि यह पूजा प्रदूषण के अन्य माध्यमों से भी मुक्त है। लोगबाग यहां श्रद्धा से खिंचे और भक्ति के रंग रंगे चले आते हैं। आखिर सामूहिकता में विश्वास सूर्य में श्रद्धा और पूज्य नदियों के तट पर आस्था को आप कैसे रोक सकते हैं? छठ एक ऐसा पर्व है जिसे बिना लोगों के सहयोग के संपन्न नहीं किया जा सकता। प्रसाद बनाने, अर्ध्य देने और छठ गीत गाने तक के लिए रिश्तेदार और परिचित लोग चाहिए। इस पर्व में छठ घाट तक प्रसाद से भरी टोकरी को सिर पर ढोकर लाने और ले जाने का विधान है।

वहीं छठ गीतों में संयुक्त परिवार, गांव, प्रकृति और सार्थक सामाजिक संदेश होते हैं। बिखरते परिवार, उजड़ते गांव वाले दौर में भी छठ व्रती अपने लिए एक प्यारी बेटी और दूसरों के लिए सौभाग्य मांगते हैं। ऐसे सभी उपक्रम परिवार व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए हैं। इससे सामाजिक जुड़ाव और लगाव भी बढ़ता है। छठ महापर्व मात्र एक त्यौहार भर नहीं है। यह अध्यात्म और भौतिकता का वो अनूठा संगम है जिसने सदियों से सनातन संस्कृति की मानव और प्रकृति उत्थान की बुनियादी सोच को अभिसिंचित किया है।

छठ पूजा वो भावना है, जो हमें प्रकृति के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का एक अवसर देती है। प्रकृति और जीवन एक दूसरे के पूरक हैं। बिना प्रकृति जीवन की कोई कल्पना नहीं है। लोक आस्था का महापर्व सनातन की “सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे संतु निरामया…” के मूल-मंत्र को मूर्त रूप देने वाला एक ऐसा अनुष्ठान है जिसमें सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय की कामना निहित है। इस भौतिक या नश्वर संसार में जीवों में ऊर्जा का मुख्य स्रोत सूर्य है। छठ महापर्व एक मात्र ऐसा पर्व है जिसमें सूर्य के उदीयमान होने से लेकर उसके अस्ताचलगामी होने तक के स्वरूप का पूजन किया जाता है। यह सनातन संस्कृति की उदारता और प्रकृति के प्रति उसकी कृतज्ञता के चरम भाव का द्योतक है।

मान्यतानुसार माता षष्ठी वनस्पतियों व प्रजनन की देवी हैं और प्रजनन व संतानोत्पति के समय सहायता करती हैं। निसंतान लोगों को संतान प्राप्ति में मदद करती हैं। इसीलिए वे संतान दाता और रक्षक के रूप में पूजी जाती हैं। माता षष्ठी को दक्षिण भारत के लोग देवी देवसेना कह कर पुकारते हैं। माता षष्ठी के इंद्रसूता, षष्टी, पुत्रदायनी, मोक्षदायनी, सुखदायनी, देवसेना, वरदायनी, षष्ठी, बालाधिष्ठात्री, छठी, षष्ठांशरुपाये, रौना माता, मैया और देवी आदि 108 नाम प्रचलित हैं। षष्ठी देवी को वंश, शक्ति, जीवनकाल, अर्घ्य, खुशी, आनंद, प्रेम, भक्ति, देवत्व, ईश्वर प्रेम, सौंदर्य, सद्भाव, आकर्षण, समय, ऋतुओं, जोड़ों, विवाह, दान, दंड, शक्ति, ऊर्जा, वैवाहिक सुख, , निर्माण, संरक्षण, विनाश, प्रकृति, भ्रूण, गर्भावस्था, दीर्घायु, संतान, मातृत्व और प्रजनन की देवी, शिशुओं की संरक्षिका, महामारि, रोग, दोषों को दूर करने वाली देवी, आदिशक्ति,पराशक्ति, जगतमाता के रूप में जाना जाता है। इनका निवासस्थान स्कंद लोक, और मणिद्वीप, इंद्र लोक माना गया है।

छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देना जीवन के प्रति आभार व्यक्त करने का एक तरीका है। सूर्य केवल ऊर्जा का स्रोत नहीं है। वह जीवन के पोषण कर्त्ता भी हैं। मनुष्य को प्रकृति से जोड़ने वाली इस पर्व के समय उन्हें प्रसन्न करके प्रकाश, ऊर्जा और जीवन को बनाए रखने की शक्ति देने के लिए धन्यवाद अर्पित किए जाने की परिपाटी है। यह पूजा जीवन, ऊर्जा और समृद्धि के प्रतीक माने जाने वाले सूर्य देवता और छठी मैया के प्रति आभार व्यक्त करने का एक माध्यम है। यह पर्व प्रकृति के साथ सामंजस्य और सम्मान का प्रतीक भी है। यह प्रकृति की शुद्धता और संतुलन को बनाए रखने की प्रेरणा और जलवायु संरक्षण की शिक्षा देती है। इसके अनुष्ठानों में किसी भी प्रकार की दूषित सामग्री अथवा प्रदूषण को बढ़ावा नहीं दिया जाता। इसलिए स्वच्छता के प्रति जागरूकता का संदेश फैलाना भी छठ पूजा का एक उद्देश्य है।





द फ्रीडम स्टॉफ
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