Arvind Rai, Kolkata: पश्चिम बंगाल के बहरामपुर संसदीय क्षेत्र का रिजल्ट बेहद दिलचस्प रहा। यहां से लगातार 5 बार सांसद रहे अधीर रंजन चौधरी का किला ढह गया। तृणमूल कांग्रेस के स्टार उम्मीदवार और पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान ने अधीर चौधरी को 85,000 से अधिक मतों के अंतर से हरा दिया। चौधरी की पराजय के साथ ही कांग्रेस ने बहरामपुर पर अपनी राजनीतिक पकड़ खो दी, जो राज्य में कांग्रेस का अंतिम गढ़ था। पार्टी को केवल एक सीट मालदा दक्षिण पर जीत मिली है। इस हार के बाद अधीर रंजन चौधरी दुखी हैं, नाराज हैं और गुस्से में भी हैं। उनकी नाराजगी किसी और से नहीं बल्कि अपनी ही पार्टी कांग्रेस से है। कांग्रेस के हाई कमान से है। यहां तक कि अधीर रंजन चौधरी ने अपनी हार के बाद राहुल गांधी का नाम लेकर उनके ऊपर निशाना साधा।
अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि इस सरकार से लड़ने के प्रयास में मैंने अपनी आय के स्रोतों की अनदेखी की है। मैं खुद को बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे का) सांसद कहता हूं। राजनीति के अलावा मेरे पास कोई और कौशल नहीं है। इसलिए आने वाले दिनों में मेरे लिए मुश्किलें खड़ी होंगी और मुझे नहीं पता कि उनसे कैसे पार पाया जाए।
अधीर रंजन चौधरी ने कहा, ‘मैंने अपनी तरफ से हर संभव कोशिश की, लेकिन मैं सफल नहीं हो सका। मैं पांच बार सीट जीत चुका हूं। इस बार भाजपा को ज्यादा वोट मिले हैं। पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ पार्टी (टीएमसी) ने एक अजीब अभियान चलाया। वह बाहरी को लाए, मुझे उस पर कोई आपत्ति नहीं है – लेकिन वह (पठान) आया और अल्पसंख्यकों से कहने लगा कि वे ‘भाई’ को वोट दें, ‘दादा’ को नहीं। दादा का मतलब हिंदू और भाई का मतलब मुसलमान होता है।’
अधीर चौधरी ने टीएमसी और कांग्रेस गठबंधन के दौरान चले विवाद का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा, ‘टीएमसी ने कहा है कि आप पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के साथ गठबंधन के रास्ते में खड़े हैं… मैंने अपनी पार्टी से कहा था कि मुझे किसी के साथ भी समझौता करने में कोई समस्या नहीं है। लेकिन मैंने उनसे कहा कि जब तक मैं बंगाल में कांग्रेस की कमान संभालूंगा, तब तक वह (पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी) कोई समझौता नहीं करेंगी। मैंने पार्टी से कहा कि वे किसी नए व्यक्ति को राज्य कांग्रेस प्रमुख बना दें।’
यह पूछे जाने पर कि क्या वह प्रदेश कांग्रेस प्रमुख के पद पर बने रहेंगे तो उन्होंने कहा, ‘मैंने चुनाव में अपनी हार स्वीकार कर ली है और पहले अपने नेताओं से इस पद के लिए मुझसे ज्यादा योग्य व्यक्ति को खोजने का आग्रह करते हुए अपना पद छोड़ना चाहता था। मैं सोनिया गांधी के अनुरोध पर रुका रहा। मुझे अभी तक अपने नेताओं की ओर से कोई फोन नहीं आया है। फोन आने पर मैं एक बार फिर पार्टी को अपनी इच्छा से अवगत कराउंगा।’ चौधरी ने कहा कि बहरामपुर में प्रचार के लिए किसी नेता को न भेजना पार्टी का विवेकाधिकार है और इस बारे में वह कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते।
राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे पर निशान साधते हुए अधीर रंजन रंजन चौधरी ने कहा, ‘बहरामपुर में प्रचार के लिए किसी नेता को न भेजना पार्टी का विवेकाधिकार है और इस बारे में वह कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते। जब राहुल गांधी की ‘पूरब-पश्चिम भारत जोड़ो यात्रा’ मुर्शिदाबाद पहुंची तो हमने उसमें हिस्सा लिया। हमारे पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एक बार मालदा में प्रचार किया, लेकिन बहरामपुर कभी नहीं आए। यह हमारे केंद्रीय नेतृत्व का फैसला था, जिसके बारे में मुझे कुछ नहीं कहना है।’