ये नब्बे परसैंट से कम नंबर लेकर आने वाले बच्चो के शर्मिंदा होने के दिन है ! एक हम लोगो का वक्त था जब लडके के साठ फ़ीसदी लेकर फस्ट डिविज़न आने पर बाप निहाल हो जाता था ! अम्मा मोहल्ले मे मिठाईयाँ बाँटने निकल पड़ती थी ! दादा-दादी रास्ता चलते लोगो को रोक रोक कर पोते का रिज़ल्ट बताते थे और लड़का नई साईकल पाने का हक़दार मान लिया जाता था ! ऐसे खुशनुमा माहौल में मोहल्ले वाले अपनी ग़लती सुधारने के लिये मजबूर हो जाते थे कि हम लोग अब तक मोनुवा को नाहक ही नालायक़ मानते रहे ,ये तो गुप्ताजी का नाम रोशन कर देने वाला चिराग़ निकला !
सब के साठ फ़ीसदी तो आते नही थे पचपन के आसपास बने रहने वालो को भी शाबाश शाबाश टाईप इज्जत की निगाह से देखा जाता था और चालीस पैतालीस लाकर अगली क्लॉस मे कूद जाने वालो की भी इतनी बेइज़्ज़ती नही होती थी कि लड़का बर्दाश्त ना कर पाये ! यह तो फिर भी ठीक है एकाध सबजेक्ट मे लुढ़क जाने वालो की वकालत करने की ज़िम्मेदारी उनकी अम्माँये उठा ही लेती थी !
अब क्या बताये भौजी ! तुम तो जानती ही हो ! पप्पू परीक्षा के आठ दिन पहले तक तो टाईफाईड मे पड़े रहे ! बस गणित मे दो नंबर की कसर रह गयी वरना अव्वल आते क्लॉस मे ! अब बडी बहन की शादी मे लगी रह गई छोटी मुन्नी ,वरना इत्ती पढ गई हमे तो सप्लीमैट्री का नाम तक पता नही था !
फ़ेल हो जाने वाले बच्चे और उनके माँ बाप भी इस खबर को सर्दी ज़ुकाम से ज्यादा तवज्जो देते नही थे ! फ़ेल होने की दर्जनों वजहें हमेशा मौजूद होती थी ! बडकी की जचकी थी ! खेत मे गेहूँ काटने मे लगा रहा ! बीमार मां को और क़ौन देखता ! गणित वाला मास्टर बेवजह नाराज था ! हिस्ट्री वाले गुरूजी तो सनकी है ही ! जैसी बाते की जाती थी ऐसे मौको पर ,और सब मान भी लेते थे !
रामराज था चारों तरफ ! बच्चे खेलते कूदते पास फ़ेल होते रहते थे ! बाप को पता ही नही रहता था कि उसकी औलादो मे से कौन किस क्लॉस मे है और कितनी दफ़ा फ़ेल हो चुका है !
पास हो जाना भर काफी होता था तब ! बारहवी पास होने वाले लडके बस इस बात भर से खुश हो जाते थे कि अब स्कूल की मनहूस यूनिफार्म से छुटकारा मिल जायेगा और कॉलेज मे लडकियाँ भी साथ पढ़ेगी ! वैसे तो लडकियाँ तब भी फ़ेल होती नही थी पर भूले भटके कोई लडकी फ़ेल हो भी जाये तो वो दुखी हो जाये ऐसा भी नही था ! लडके वाले देखने आने लगते थे उन दिनो ये बात खु़श रहने की अपने आप मे बडी वजह थी !
उन दिनो भी एकाध लड़की सत्तर पार कर जाने जैसी हरकत कर बैठती थी ! और उसके ऐसा करते ही फौरन मान लिया जाता था कि इस लडकी की नियत लड़कों के मुँह पर थूकने की थी ! लोग बिना देखे मान लेते थे कि जरूर ये लडकी चश्मा लगाती होगी ! इतने ज्यादा नंबर लाकर तो अब ये कलेक्टर बनेगी ।
ये वो अच्छे दिन थे जब साठ सत्तर प्रतिशत लाने वालो के बारे मे घर के लोग यह मानते थे कि ये भगवान के बनाये स्पेशल बच्चे है और उनके बारे मे अडौसी पड़ौसियों की यह धारणा होती थी कि ये निहायत सिरफिरा असामाजिक ,घरघुस्सु ,और सूमड लड़का है !
आज अपने अम्मा बाबा को शुक्रिया कहने का जी चाहता है ! उन्होने हमे वह बेहतरीन वक्त दिया ! यदि हम इस ज़माने मे होते तो आज हम कहीं मुँह छुपाने की जगह तलाश कर रहे होते !