नज़रिया

भारत का मैरीटाइम सिक्यूरिटी लॉ और सोमालिया के डाकू

नवंबर 2023 से अब तक 25 ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें लुटेरों ने जहाज़ पर हमला किया है. इस वज़ह से सोमालिया के तट पर एडेन की खाड़ी में एक बार फिर डकैती पर लोगों का ध्यान केंद्रित होने लगा है. इन घटनाओं के कारण ही इंटरनेशनल शिपिंग को सुरक्षा मुहैया करवाने वाले दस्तों, जहाज़ों के बीमा का प्रीमियम तथा संभावित फिरौती देने के मामलों पर होने वाले ख़र्चे में इजाफ़ा हो रहा है. ये हमले ऐसे वक़्त हो रहे हैं जब रेड सी यानी लाल समुद्र में हूती विद्रोही भी इंटरनेशनल शिपिंग को अपना निशाना बना रहे हैं. इस स्थिति में इंटरनेशनल शिपिंग और कॉमर्स के समक्ष एक नई चुनौती पेश होने की संभावना हैं.

भारतीय नौसेना की ओर से चलाए जाने वाले ‘ऑपरेशन संकल्प’ को शुरू हुए अब 100 से ज़्यादा दिन हो गए हैं. यह ऑपरेशन इंडियन ओशन रीजन (IOR) में चल रहा है. इस ऑपरेशन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मालवाहक जहाज़ की रक्षा एवं सुरक्षा की दृष्टि से सराहना मिल रही है. इस अभियान के तहत नौसेना के 5000 सैनिकों को तैनात किया गया है. इसमें 21 जहाज शामिल हैं जो 450 शिप डेज के साथ मेरीटाइम सर्विलांस एयरक्राफ्ट के 900 घंटे की उड़ान का उपयोग कर रहे हैं.

हूती विद्रोहियों की ओर से किए जा रहे हमले कारोबार को बाधित करने के साथ इजराइल और उसके सहयोगियों को भी निशाना बना रहे हैं. इसकी वज़ह से सुएज कैनाल से होने वाली शिपिंग भी प्रभावित हो रही है. ऐसे में सोमाली तट से चलने वाले अंतरराष्ट्रीय नौसैनिक जहाज़ के जत्थों ने रेड सी का रुख़ की ओर कर दिया है. यह इलाका उनके नियमित पेट्रोलिंग क्षेत्र से उत्तर में आता है.

सोमाली लुटेरों का ख़तरा
क्या सोमाली लुटेरों का ख़तरा ठीक उतना ही गंभीर है जैसा कि यह सन 2008 से 2014 के बीच एक बेहद गंभीर समस्या बना हुआ था? इंटरनेशनल मैरिटाइम ब्यूरो ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि सन 2011 में सोमाली लुटेरे ने 237 हमले किए थे. इसकी वज़ह से सैकड़ो लोगों को उन्होंने बंधक बनाया था. उस वक़्त वैश्विक अर्थव्यवस्था को इसकी वज़ह से 7 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कीमत चुकानी पड़ी थी, जिसमें फिरौती की राशि भी शामिल है. लेकिन इस बार लुटेरों ने छोटे जहाज़ पर हमला करना शुरू किया है. यह हमले ज़्यादातर उन इलाकों में हो रहे हैं जहां सुरक्षा बेहद कमज़ोर है.

इंटरनेशनल मैरिटाइम ब्यूरो ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि सन 2011 में सोमाली लुटेरे ने 237 हमले किए थे. इसकी वज़ह से सैकड़ो लोगों को उन्होंने बंधक बनाया था.

हालांकि अब यह देखा जा रहा है कि बड़े जहाज़ का उपयोग मदरशिप के रूप में किया जा रहा है, जबकि डीपर वाटर यानी मुश्किल मार्ग में छोटी नावों का उपयोग किया जा रहा है. भारतीय नौसेना ने उल्लेखनीय कार्रवाई करते हुए लुटेरों के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला है. इस वज़ह से उसने सैकड़ो नाविकों को बचाने में सफ़लता हासिल की है.

संकट काल में 14 विभिन्न देशों के 20 युद्धपोत आमतौर पर अदन की खाड़ी (गल्फ ऑफ़ अदेन) में गश्त करते हुए इंडियन ओशन से निकलने वाली शिपिंग लेन्स को सुरक्षा मुहैया करवाते थे. इस वज़ह से समुद्री लुटेरों के हमले लगभग समाप्त ही हो गए थे. ये हमले 2018 से इक्का-दुक्का ही होते थे. मार्च 2022 में UN की ओर से अंतरराष्ट्रीय नौसेनाओं को सोमाली क्षेत्र के समुद्री इलाकों में गश्त लगाने और कार्रवाई करने का जो अधिकार दिया गया था वह समाप्त हो गया, क्योंकि इसकी आवश्यकता ही नहीं रह गई थी. सोमाली राष्ट्रपति मोहम्मद ने एक नीति अपनाई थी जिसके तहत वे सोमाली कोस्ट गार्ड की क्षमता को बढ़ाकर उसकी कार्य शैली को चुस्त करना चाहते थे. सोमाली कोस्ट गार्ड के पास 700 कर्मचारी हैं, लेकिन उनके पास मौजूद कोस्ट गार्ड के चार जहाजों में से केवल एक ही उपयोगी है.

2023 में अदन की खाड़ी (गल्फ ऑफ़ अदेन) और उससे जुड़े IOR क्षेत्र को हाई रिस्क ज़ोन नहीं समझा जाता था. मार्च 2024 में कोयला लेकर चल रही बांग्लादेशी झंडे वाली एम वी अब्दुल्ला नामक जहाज़ के 23 क्रू मेंबर्स का सोमाली लुटेरों ने अपहरण कर लिया. इस वज़ह से इंडियन ओशन से जुड़े ख़तरे एक बार फिर उजागर हो गए.

एक ओर जहां पुंटलैंड और जुबालैंड अंतरार्ष्ट्रीय मान्यता हासिल करने को लेकर सक्रिय नहीं दिखाई देते, वहीं सोमालीलैंड ने इथियोपिया तथा ताइवान के साथ अपने संबंध बनाए रखे हैं

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि सोमाली लुटेरे हूती विद्रोहियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. इसे ज़्यादा से ज़्यादा हूती विद्रोहियों से प्रेरणा लेने अथवा उनके साथ सहानुभूति रखने का मामला कहा जा सकता है. सोमाली लुटेरों का लक्ष्य आर्थिक होने के साथ ही अराजकता फ़ैलाना भी है, जबकि हूती विद्रोहियों का लक्ष्य न केवल राजनीतिक, बल्कि भू रणनीतिक भी है. सोमालिया में स्थितियां काफ़ी विकट है. इसमें बेहद गरीबी, अराजकता के विभिन्न स्तर और कानून व्यवस्था की बिगड़ी स्थिति शामिल है. यह स्थिति फेडरेशन की चारों दिशाओं में है. लंबे समय से चल रहे गृह युद्ध की वज़ह से सोमालिया के कुछ इलाकों ने अपना भाग्य स्वयं तय करने का फ़ैसला किया. इसकी वज़ह से वहां चल रही गरीबी, हिंसा और अस्थिरता की जटिल समस्या और भी गंभीर हो गई है. प्रभावहीन सरकार की वज़ह से लुटेरे वहां पर महत्वपूर्ण संस्थाओं का नियंत्रण अपने हाथ में ले लेते हैं. कई बार वे इसके लिए फिरौती से मिली राशि का उपयोग करते हुए स्थानीय राजनीति को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं और कभी अपनी आपराधिक गतिविधियों को बढ़ाकर अपना दबदबा बनाने में सफ़ल हो जाते हैं.

एक अवलोकन
सोमालिया का इतिहास काफी संपन्न रहा है, लेकिन एक आधुनिक और स्थिर देश के रूप में उसका अस्तित्व बेहद सीमित है. सोमालिया के झंडे में पांच सितारे हैं जो उसके भव्य सपने को दर्शाते हैं. पांच सितारे वर्तमान सोमालिया और उसके अनिच्छुक घटकों के साथ ब्रिटिश संरक्षण में रहे सोमालियालैंड की और इशारा करते हैं. अन्य इलाके जहां जातीय सोमाली रहते हैं उन्हें निशाना बनाया जाता है. इसमें जिबूती का इलाका, इथियोपिया सोमाली क्षेत्र तथा केन्या के उत्तर पूर्वी प्रांत शामिल हैं. महान एकत्रीकरण का यह सपना ही इथियोपिया और केन्या के साथ विवादों को जन्म दे रहा है.

1960 में आज़ादी हासिल करने के पहले सोमालिया संयुक्त राष्ट्र ट्रस्ट टेरिटरी के रूप में इटालियन प्रशासन के तहत था जबकि सोमलीलैंड को ब्रिटिश का संरक्षण हासिल था. इटालियन सोमलीलैंड ने 1925 में ब्रिटिश ईस्ट अफ्रीकन प्रोटेक्टरेट से जुबालैंड को हासिल किया था और अब वह अपने फ़ैसले के तहत सोमालीलैंड फेडरेशन से जुड़ गया था जबकि पुंटलैंड उसका ही एक हिस्सा बना रहा. जिबूती, जो कि एक फ्रेंच कॉलोनी थी, को फ्रेंच सोमाली लैंड के रूप में पहचाना जाता था. बाद में इसे टेरिटरी ऑफ़ द अफ़ार और इस्सास कहा जाने लगा. ये नाम वहाँ रहने वाली जनजातियों की वज़ह से दिया गया था. 1977 में जिबूती एक स्वतंत्र देश बन गया और यह अब हॉर्न ऑफ अफ्रीका में एक महत्वपूर्ण देश है.

सोमालिया को मिली यह ऋण राहत उसे अतिरिक्त अहम वित्तीय संसाधन जुटाने और अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने में सहायता करेगी.

कमज़ोर सरकार और अल-शबाब के आतंकियों की चुनौती के कारण मोदादिशु की फेरडरेशन पर पकड़ कमज़ोर हो गई है. विशेषत: सोमालीलैंड, चुनाव और प्रशासन के मामले में अब अधिक स्वायत्त हो गया है. पुंटलैंड और जुबालैंड ने कुछ हद तक उसका अनुसरण किया है, लेकिन जो संपन्नता सोमालीलैंड में दिखती हैं, वैसी अन्य मामलों में नहीं दिखाई देती. एक ओर जहां पुंटलैंड और जुबालैंड अंतरार्ष्ट्रीय मान्यता हासिल करने को लेकर सक्रिय नहीं दिखाई देते, वहीं सोमालीलैंड ने इथियोपिया तथा ताइवान के साथ अपने संबंध बनाए रखे हैं. सोमालीलैंड के पास कार्यशील प्रशासन शैली उपलब्ध है और वहां के बंदरगाह इंटरनेशनल शिपिंग को भी आकर्षित कर रहे है. जुबालैंड की शिपिंग व्यवस्था भी सक्रिय है, लेकिन उसका उपयोग लुटेरे करते हैं. 2008 में जब अफ्रीकन यूनियन मिशन इन सोमालिया (AMISOM) के बैनर तले केन्या की सेना ने सोमालिया में प्रवेश किया तो उसने किसमायो का सफ़ाया कर दिया था. जुबालैंड जहां केन्या के करीब है, वहीं पुंटलैंड और सोमालीलैंड जिबुती के नज़दीक हैं.

अत: वर्तमान में सोमालिया एक कमज़ोर फेडरेशन नज़र आता है, जहां संघर्ष आसन्न दिखाई दे रहा है. इसका कारण यह है कि सोमालीलैंड ने भूमिबद्ध इथियोपिया को अपना कुछ क्षेत्र नेवल बेस यानी नौसेना ठिकाना बनाने के लिए देने का फ़ैसला किया है. सोमालीलैंड को इसके बदले में इथियोपिया से निवेश और संभवत: द्विपक्षीय मान्यता मिलने की उम्मीद है.

यूँ तो अफ्रीका में अलगाववाद को अच्छी निगाहों से नहीं देखा जाता, लेकिन हॉर्न ऑफ अफ्रीका ने दो सफ़ल अलगाव के मामले देखे हैं. 1993 में इथियोपिया के ड्रेन प्रशासन से मुक्त होने के बाद, इरिट्रिया जो कि पूर्व में एक इटालियन कालोनी थी, ने भी जनमत संग्रह के माध्यम से आज़ादी हासिल की. इसी प्रकार 2011 में साऊथ सूडान ने अफ्रीका के सबसे बड़े राष्ट्र सूडान से अलग होने का फ़ैसला किया था. ये सारे देश अब अफ्रीकी यूनियन से मान्यता प्राप्त एक रिजनल कम्युनिटी इंटरगवर्नमेंटल अथॉरिटी ऑफ डेवलपमेंट (IGAD) का हिस्सा हैं, लेकिन उनके बीच की अंदरुनी प्रतिस्पर्धा शांत होने का नाम नहीं ले रही है. इस प्रतिस्पर्धा की वज़ह से ही काफ़ी रक्तपात हुआ है और वैध और असंवैधानिक तरीकों से सरकारों को भी बदला गया है.

1995 में जब से UN की सेनाओं ने सोमालिया से वापसी की थी तब से ही लुटेरों ने अपना सिर दोबारा उठाना शुरू कर दिया थी. बाद में 20 नौसेनाओं को मिलकर इसका खात्मा करना पड़ा था. ऐसी आशंका थी कि कुछ साहूकार और वित्तपोषण करने वाले लोग ही इन लुटेरों को बढ़ावा दे रहे थे. इसका कारण यह था कि वे लोग इसे फ़ायदे का सौदा मानते थे, क्योंकि उस वक़्त सोमालिया के कुछ हिस्सों में इससे बेहतर कुछ व्यवसाय नहीं दिखाई दे रहा था.

AMISOM जिसमें मुख्यत: इथियोपिया तथा केन्या की सेनाओं के साथ युगांडा तथा बुरुंडी की सेना शामिल थीं, को अप्रैल 2022 में समाप्त कर दिया गया. अब यह अफ्रीकन यूनियन ट्रांजिशन मिशन इन सोमालिया (ATMIS) के नाम से 2025 तक काम करेगा. AMISOM ने पिछले पंद्रह वर्षों में सोमाली नेशनल आर्मी, एक पेशेवर सोमाली पुलिस बल तथा फेडरल इंस्टीट्यूशन्स के उभार में अहम भूमिका अदा की है.

इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) तथा वर्ल्ड बैंक ने सोमालिया के लिए हैविली इनडेब्टेड पूअर कंट्रिज इनिशिएटिव कम्प्लीशन प्वाइंट (HIPC) को मान्यता दी है, जिसके माध्यम से कुल 4.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर्स की ऋण वापसी सुगम हो रही है. HIPC कम्प्लीशन प्वाइंट के बाद सोमालिया का बाहरी ऋण 2018 में उसकी GDP का कुल 64 प्रतिशत था, जो 2023 में घटकर उसके GDP का 6 प्रतिशत रह गया है. सोमालिया को मिली यह ऋण राहत उसे अतिरिक्त अहम वित्तीय संसाधन जुटाने और अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने में सहायता करेगी. इस ऋण राहत के कारण सोमालिया अपने यहां गरीबी को कम करते हुए रोज़गार सृजन को बढ़ावा दे सकेगा.

ऐसे में यह भरोसा जताया जा रहा है कि सोमालिया में स्थिरता लौटेगी. समस्या यह है कि सोमालिया, पुंटलैंड, सोमालीलैंड और अन्य में प्रशिक्षित सुरक्षा बल अपने आप में ही महत्वपूर्ण संस्थान बन जाते हैं और फिर स्थानीय राजनीति का हिस्सा बनने लगते हैं.

समुद्री लुटेरों का यह नया उभार भी संभवत: एक बार पुन: पुंटलैंड से ही होता दिख रहा है. सोमालीलैंड की तुलना में पंतलैंड आर्थिक रूप से कम मजबूत और संगठित हैं. ऐसे में वहां के युवाओं को अपनी अर्थव्यवस्था से मिलने वाले रोज़गार के अवसरों पर ज़्यादा भरोसा नहीं है. इसी प्रकार व्यवस्थित फिशिंग फ्लीट्‌स का अभाव एवं चीन समेत अन्य फिशिंग ट्रॉलर्स की वज़ह से परंपरागत रूप से मछली पालन के लिए पहचाने जाने वाले इलाकों में भी मछलियों का स्टॉक कम होता जा रहा है. इस IUU के कारण स्थानीय रोज़गार के अवसर उपलब्ध नहीं होते और ब्लू इकोनॉमी से जुड़े प्रयास भी केवल कागज़ों तक ही सीमित हैं.

समुद्री लुटेरों की परंपरा और अब लगभग कमज़ोर होते जा रहे अल-शबाब की ओर से होने वाली हथियारों की आपूर्ति और अल-शबाब के बचे हुए लड़ाकों की ओर से पेश होने वाली चुनौती भी काफ़ी ख़तरनाक है.

भारत का अपना मैरीटाइम सिक्यूरिटी लॉ, 2022 उसे अन्य मामलों के साथ ही समुद्री लुटेरों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का अधिकार प्रदान करता है.

जिबुती का कोड ऑफ कंडक्ट अर्थात आचार-संहिता और उसका जेद्दाह संशोधन (जिसके साथ भारत भी एक निरीक्षक के रूप में जुड़ा हुआ है) की वज़ह से क्षेत्रीय नौसेना को समुद्री लूटेरों के ख़िलाफ़ कार्रवाई का कानूनी अधिकार मिलता है. इसकी वज़ह से ही पश्चिमी इंडियन अशोन और अदन की खाड़ी (गल्फ ऑफ़ अदेन) में लुटेरों को दबाने में सहायता मिली है. इसके अलावा इन नौसेनाओं के कार्रवाई के दायरे को विस्तारित करते हुए उन्हें अवैध समुद्री गतिविधियों, जिसमें मानव तस्करी और IUU फिशिंग का समावेश हैं, में भी कार्रवाई करने का अधिकार मिल गया है.

IOR में भारत
इंडो-पैसिफिक को खुला और स्वतंत्र रखने के लिए भारत ने IOR में अपनी भूमिका को काफ़ी गंभीरता से लिया है. यह भारत की संकल्पना है जिसके तहत इंडियन ओसियन में ईंडो-पैसिफिक का दायरा अब बढ़कर अफ्रीका के किनारों तक फ़ैल गया है. भारत ने अपने घरेलू ठिकानों से अदन की खाड़ी (गल्फ ऑफ़ अदेन) के मामलों में कार्रवाई करने के लिए हवाई और नौसैनिक क्षमताओं का प्रदर्शन किया है. हालांकि इसके लिए भारत की पहुंच अपने सहयोगियों के अड्डों तक भी है.

भारत का अपना मैरीटाइम सिक्यूरिटी लॉ, 2022 उसे अन्य मामलों के साथ ही समुद्री लुटेरों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का अधिकार प्रदान करता है. अत: यह पहली बार होगा कि सोमाली समुद्री लुटेरों को भारत में लाकर उनके ख़िलाफ़ कानूनी कार्रवाई की जाएगी. समुद्री लुटेरों के ख़िलाफ़ आरंभिक दौर में नौसेना की ओर से की जाने वाली कार्रवाई को कानूनी कवच हासिल नहीं था. केन्या और सेशल्स को भी काफ़ी मुश्किलों के साथ समुद्री लुटेरों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के लिए अदालतों का गठन करने के लिए मनाया गया है. अब घरेलू कानून बन जाने के बाद भारत भी IOR में उसके हितों पर हमला करने वाले समुद्री लुटेरों से निपटने की बेहतर स्थिति में दिखाई देता है.

CC- ORF

द फ्रीडम स्टॉफ
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