शारदीय नवरात्रों में चैत्र नवरात्रों की तरह एक बार फिर हम स्त्री शक्ति के नौ रूपों की पूजा करेंगे। देवी दुर्गा के रूप शक्ति, स्त्रीत्व और समृद्धि के प्रतीक है। इन स्वरूपों की पूजा करते हुए स्त्री रूपी इन देवियों के भव्य रूप हमारी चेतना में उपस्थित रहते हैं। इन्हें शक्ति रूप इसलिए कहा जाता है, क्योंकि जब सृष्टि के सृजन काल में देव पुरुष दानवों से पराजित हुए, तो उन्हें राक्षसों पर विजय के लिए दुर्गा से अनुनय करना पड़ा। एक अकेली दुर्गा ने विभिन्न रूपों में अवतरित होकर अनेक रक्षसों का नाश कर सृष्टि के सृजन को व्यवस्थित रूप देकर गति प्रदान की।
नवरात्रि मातृशक्ति की आराधना का महापर्व है। यह नारी शक्ति के आदर और सम्मान का उत्सव है। यह उत्सव नारी को अपने स्वाभिमान व अपनी शक्ति का स्मरण दिलाता है, साथ ही समाज के अन्य पुरोधाओं को भी नारी शक्ति का सम्मान करने के लिए प्रेरित करता है। जिस तरह हम नवरात्रि में मातृशक्ति के नौ रूपों का पूजन करते हैं, उनका स्मरण करते हैं, उसी प्रकार नारी के गुणों का हम सम्मान करें। हमारे घर में रहने वाली माता,पत्नी,बेटी,बहन इन सब में हम गुण ढूंढें। आज की नारी में जहां मां दुर्गा का ममतामयी रूप सजा है वहीं कुछ कर गुजरने का जोश भी निहित है। सृजन और संहार के दोनों रूपों को अपनाकर सशक्त हुई है आज की यह नारी।
आदिशक्ति हैं मां दुर्गा। इनके तीन गुण हैं सृजन, पालन और संहार। कभी वह सृजन करती हैं तो कभी मां के रूप में पालन करती हैं और कभी अपने भीतर की शक्ति को जागृत कर महिषासुर जैसे दानवों का संहार करती हैं। आज की नारी देवी दुर्गा के इन्हीं रूपों को साक्षात तौर पर निभा रही है। वह सृजन करती है, मां की हर जिम्मेदारी निभाती है और जब कुछ करने की ठान लेती है तो करके ही मानती है। आज की इस नारी की शक्ति असीम है और अपनी इस काबिलियत को इसने पहचान भी लिया है।
स्त्री शक्ति की पूजा धरती पर पूजा का सबसे पुरातन रूप है। र्सिफ भारत में ही नहीं] बल्कि यूरोप अरेबिया और अफ्रीका के हिस्सों में स्त्री शक्ति की पूजा होती है। शक्ति की उपासना का भारतीय चिंतन में ही महत्व है। शक्ति ही संसार का संचालन कर रही है। शक्ति के बिना शिव भी शव की तरह चेतना शून्य माने गए हैं। स्त्री और पुरूष शक्ति और शिव के स्वरूप माने गए है। भारतीय उपासना में स्त्री तत्व की प्रधानता पुरूष से अधिक मानी गई है। नारी शक्ति की चेतना का प्रतीक है। जो प्रकृति की प्रमुख सहचरी भी है जो जड] स्वरूप पुरूष को अपनी चेतना प्रकृति से आकृष्ट कर शिव और शक्ति का मिलन कराती है। और संसार की सार्थकता सिद्ध करती है। पुरातन युग में जितने भी अवतारी पुरूष हुए] जिन्होंने समाज को तत्व ज्ञान दे कर असुरी शक्तियों का विनाश किया वे सब आदिशक्ति दुर्गा के उपासक थे। त्रेतायुग में भगवान राम ने भी रावण युद्ध के समय भगवती देवी की आराधना की थी। देवी से वरदान पा कर ही रावण कर संहार किए थे। हिंदी के कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के राम की शक्ति पूजा काव्य में देवी की महिमा का वर्णन किया गया है। शास्त्रों के अनुसार शिव और शक्ति सनातन है। जिनकी आराधना करने से व्यक्ति और राष्टकृ दोनों का कल्याण होता है। नवरात्रि में मां आदिशक्ति की आराधना के साथ ही ये प्रत्येक नारी को यह याद दिलाने भी उत्सव है कि वो अबला नहीं बल्कि वो जन्म देने वाली जननी है। नवरात्रि प्रत्येक नारी को अपने स्वाभिमान व अपनी शक्ति का स्मरण भी करवाता है, साथ ही समाज के अन्य पुरोधाओं को भी नारी शक्ति का सम्मान करने के लिए प्रेरित करता है। आदिशक्ति की आराधना के साथ-साथ यह जरूरी है कि नारी के प्रति संवेदनाओं में भी विस्तार होना चाहिए। तभी देवी की पूजा सार्थक होगी।