नरेंद्र मोदी और अमित शाह को सुध नहीं है। यदि होती तो इनके दिमाग में इतना तो कौंधता कि वे भारत को क्या बना दे रहे हैं? उन्हें क्या पता है कि आठ सालों में उन्होंने हिंदुओं की राजनीति को कैसा निर्लज्ज, चरित्रहीन बना दिया है? भारत का कितना चारित्रिक पतन किया है? वे देश और समाज में उन लोगों को रोल मॉडल बना रहे हैं, जो नमकहराम, दलबदलू, झूठे, सत्ताखोर और गुलाम व भूखी तासीर की भ्रष्टताओं में ईमान बेचते हैं। हां, मैं शुक्रवार को व्यथित हुआ जब सुनाई दिया कि वाह! वाह, भारत के लोगों सुनो ‘आजाद’ हो गए गुलाम नबी! अपने गुलाम मीडिया से मोदी-अमित शाह कैसे ऐसे व्यक्तियों की देश में महिमा बनवा रहे हैं, जो भारतीयों और खासकर हिंदुओं के इस इतिहाजन्य सत्य को उद्घाटित करते हैं कि ईमान बेचना कोई हम हिंदुओं से जाने! संघ परिवार ने नब्बे साल कैसी भांड़ झोंकी है जो मोदी और अमित शाह में यह समझ और संस्कार भी नहीं बना पाए कि वफादारी, ईमान कौम और देश के जिंदा रहने की पहली जरुरत है। क्या सत्ता ने संघ और भाजपा की बुद्धि को इतना भ्रष्ट कर दिया, जो वफादारी और ईमान के सौदेबाजों का राष्ट्रीय अभिनंदन बनवाएं?
हिसाब से देश, समाज और राजनीति को गुलाम नबी आजाद को अछूत करार देना था। मेरी धारणा है कि मुसलमान संस्कार के वफादार होते हैं। उनमें धर्म के जरिए बचपन से एक पैगंबर का रट्टा लगवाया जाता है तो वफादारी और ईमान (भले वह धर्म का हो या व्यवहार की सहजता में) का पक्का होता है। इसलिए मेरी राय में गुलाम नबी आजाद ने पैंतालीस साल गांधी परिवार से सत्ता की मलाई खाने के बाद जो नमकहरामी दिखाई है वह कौम, राजनीति और समाज की शर्मनाक बानगी है। ऐसे गुलाम नबी के लिए प्रोपेगेंडा के तराने बजने चाहिए थे या थू-थू की थूक?
मगर मोदी-शाह ने आठ वर्षों से गद्दारों, नमकहरामों, भ्रष्टाचारियों की वाह का देश-समाज में ऐसा ढिंढोरा बनवाया है कि दुनिया निश्चित ही बूझती होगी कि हिंदू के सपनों का यह कथित हिंदू राष्ट्र क्या है?
निश्चित ही मोदी-शाह को वफादारी का महत्व मालूम नहीं है। इनके लिए वफादारी बिकाऊ है। सत्ता की सीढ़ी है। दिखावा है। वह सत्ता और राजनीति की दास है, औजार है। इन्हें समझ नहीं है कि बिना वफादारी के मनुष्य का हर रिश्ता पशुओं से भी खराब होता है। कोई वफादार नहीं है तो उस पर विश्वास नहीं होगा। न पति-पत्नी के रिश्ते में विश्वास और न सेना के सैनिकों की देश के प्रति वफादारी। न शपथ ले कर नागरिकों, अफसरों, मंत्रियों का देश, कौम और कर्तव्य के प्रति निष्ठा। सोचें, यदि देश का पूरा सिस्टम ही नमकहरामों, गद्दा्रों, जयचंदों, मीर जाफरों का हो जाए तो उस देश, उस कौम का क्या बचना है? वह देश फिर खत्म है।
क्या मैं गलत हूं?
हर हिंदू (खासकर संघ परिवार) इस इतिहास सत्य को गांठ बांधे कि हम हजार साल गुलाम इसलिए रहे हैं क्योंकि हम अपने धर्म, कौम और शासन के प्रति वफादार नहीं रहे हैं। हजार और पांच हजार मुसलमान खैबर पार से आकर दिल्ली के तख्त पर राज करते थे तो वजह वहीं होती थी, वहीं राजनीति थी जो आठ सालों से मोदी-शाह दुनिया को दिखला रहे हैं। हिंदुओं के कलियुगी स्वभाव में शासन का चरित्र नमकहरामी, सत्ता मोह की बिकाऊ निष्ठाओं में बना होता था। एक-दूसरे के (राजे-रजवाड़ों के रिश्तों याकि हिंदू राजनीति में परस्पर विश्वास की कमी के कारण) राजनीतिक व्यवहार में हमेशा खरीद-फरोख्त, सत्ता भूख, मूल्य (वैल्यूज) विहीनता और खौफ की चारित्रिक कमियों से हिंदू लुटे-पीटे, रीढ़हीन और गुलाम हुए। धनानंद से लेकर जयचंद, मानसिंह, मीर जाफर, जगत सेठ की राजनीति में हिंदू ऐसे कायर, डरपोक, संस्कारहीन बने कि युद्ध के दौरान अचानक दुश्मन के पाले में जाकर सैनिकों के जयकारा लगाने की घटनाएं भी हुईं।
उसी हिंदू चरित्र को मोदी-शाह ने वापिस राष्ट्र धर्म बना डाला है। सत्ता और पैसे से राजनीति-लोगों को खरीदने की भारत को ऐसी मंडी बना डाला है कि दुनिया के लोकतंत्रों में कहीं भी ऐसी बेशर्मी नहीं दिखेगी, जैसी हिंदुओं में इन दिनों लगातार दिख रही है। मुझे ध्यान है बचपन में माध्यमिक पढ़ाई के वक्त कहानी-कथा के बाद हिंदी में सवाल होता था कि फलां कहानी के फलां कैरेक्टर का चरित्र चित्रण करें? बच्चों में संस्कार डालने, समाज को संस्कारों में ढालने, नैतिकता, चरित्र की कहानियों और पाठ तथा सवालों से चरित्र बनवाने की शिक्षा हुआ करती थी। पूछा जाता था बच्चों से, क्या सीखा कहानी से? मेरा मानना है आरएसएस के हेडगेवार, गोलवलकर, देवरस, सुर्दशन (पता नहीं मोहन भागवत के वक्त में क्या है!) के स्वंयसेवकों में महाराणा प्रताप, शिवाजी जैसों को इसलिए चरित्रवान बतलाया जाता रहा होगा क्योंकि वे बिकाऊ नहीं थे। वे मर जाना पसंद करते थे लेकिन सत्ता के लोभ, विचार, मूल्यों से सौदा करने वाले नहीं थे।
तभी मानना गलत नहीं होगा कि वाजपेयी, आडवाणी, जोशी की पीढ़ी के स्वंयसेवक विचार, देश, कौम के लिए वफादारी-निष्ठा के चारित्रिक बल का आग्रह करते हुए थे। ये अपने वक्त में चाल, चेहरे, चरित्र में भाजपा के ‘पार्टी विथ डिफरेंस’ की बात करते थे। इसका प्रमाण यह भी है कि मोदी, शाह और भागवत के वक्त में संघ ने आडवाणी, जोशी, शांता कुमार जैसे चरित्रवानों के साथ जो भी किया, ये निष्ठावान स्वंयसेवक घर बैठे रहे लेकिन नमकहरामी नहीं की। विचार-मूल्यों, आदर्शों व संगठन से रिश्तों के साथ वैसा विश्वासघात नहीं किया जैसा कि गुलाम नबी आजाद ने किया है। या जैसे सत्ता और पैसे की मंडी में मोदी और शाह ने हजारों दलबदलुओं और नेताओं से गद्दारी करवाई है। गद्दारों से हिंदू राष्ट्र और उसका कथित गौरव बना रहे हैं। उनका अभिनंदन करा रहे हैं। सोचें, प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न दे कर महान बतलाना और सावरकर या हेडगेवार-गोलवलकर (कुछ भी हो ये प्रणब से लाख गुना अधिक राष्ट्रवादी, ऋषितुल्य हिंदू चिंतक-कर्मयोगी तो थे।) लेकिन मोदी-शाह खरीद-फरोख्त की मंडी में जीने वाले हैं तो अंबानी, प्रणब, गुलाम नबी आजाद पद्म पुरस्कार पाएंगे न कि सावरकर या शांता कुमार!
सोचें, प्रधानमंत्री मोदी की संसद में भावुकता से गुलाम नबी का महिमामंडन करना, उन्हें पद्म् भूषण देना और अब अपने प्रोपेंगेंडा मीडिया से उन्हें राष्ट्र, कौम का आदर्श, मानक चरित्रवान बनाना!
मुझे मोदी-शाह की हिंदू राजनीति का यह चरित्र चित्रण करते हए खेद है। मगर इसलिए जरूरी है क्योंकि राजा का आचरण ही कौम और देश के आदर्शों या पतन की शिखा है। गुलाम नबी आजाद के मौजूदा प्रसंग जैसे ही मैं तब भी व्यथित हुआ था जब मैंने अमित शाह द्वारा अपने घर पर कांग्रेस के बुजुर्ग नारायण दत्त तिवारी का स्वागत देखा। तब मैंने लिखा था कि अमित शाह, सावरकर के या तिवारी के? अमित शाह अपने ड्रॉईंग रूम में दिवाल पर चाणक्य और सावरकर की फोटो लगाए हुए हैं। उनको लेकर यह नैरेटिव बना रहा है कि वे मोदी के चाणक्य हैं। उफ! आधुनिक चाणक्य! आठ सालों में कितने जयचंद पैदा किए? कितने मीर जाफर? कितने जगत सेठ? कैसा जनता पर बेरहमी से टैक्स के कोड़े मारने वाला, छापे मारने वाला धनानंदी राज बनवाया? उन्होंने दलबदल को हिंदू संस्कार का पुण्य कार्य बना डाला। जात-पांत को हर तरह खिलाया। राजनीति में सत्य, नैतिकता, वैल्यूज, विचार और चारित्रिक निष्ठाओं को खत्म कर दिया। सोचें, गुलाम नबी आजाद से ऐसी चिट्ठी बनवाई कि जो निष्ठा के साथ कांग्रेस में जी रहे हैं, तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद भी पार्टी, विचारधारा, लीडरशीप के प्रति निष्ठावान हैं, उन्हें चापलूस करा दिया है और नमकहरामी, धोखे, पॉवरलिप्सा को वे देश के लिए अनुकरणीय आचरण करार दे रहे हैं!
क्या यह सब चाणक्य ने किया था? क्या चाणक्य का हिंदू राजनीतिक दर्शन यह है कि जम्मू-कश्मीर जीतना है तो कभी मुफ्ती को पटाओ और कभी गुलाम नबी आजाद को मीर जाफर बना कर सूबा जीतो? सवाल यह भी है कि ऐसे जम्मू-कश्मीर के चुनाव में यदि हिंदू मुख्यमंत्री बन भी गया तो क्या वह स्थायी जीत होगी? क्या गारंटी जो गुलाम नबी से भी महबूबा मुफ्ती वाला अनुभव नहीं हो। जब वे कांग्रेस के वफादार नहीं रह सके तो एक पद्म भूषण से संघ परिवार में जीवन भर बिके रहेंगे?
इसलिए आठ सालों में जो हुआ है, और जो हो रहा है वह हिंदू राजनीतिक दर्शन, तौर-तरीकों, विचार-विश्वास और चारित्रिक दृढ़ता के राष्ट्र चिंतन, राष्ट्रीय चरित्र, राजनीतिक चरित्र सबके साथ धोखा है। कथित हिंदू राष्ट्र की सत्ता खरीद-फरोख्त की मंडी है। चाणक्य, सावरकर से लेकर सुर्दशन तक के आरएसएस के आदर्शवाद, चारित्रिक संस्कारों, नैतिकता, सत्य, वफादारी, कर्तव्यनिष्ठा, राष्ट्रनिष्ठा का खरीद की इस मंडी में इंच भर भी आग्रह नहीं है।
एक शब्द है शुचिता। यह शब्द हम हिंदुओं के सनातन धर्म का सत्व-तत्व है। संघ परिवार, आडवाणी, जोशी की पीढ़ी इस शब्द का जनता और कार्यकर्ताओं में रट्टा लगाते थे। शुचिता मतलब शुचि याकि शुद्ध रहना, शुद्ध होने की अवस्था, गुण व भाव। रहन-सहन में स्वच्छता-पवित्रता और राजनीति में ईमानदारी, पारदर्शिता, निर्दोषता तथा विचार-उद्देश्यों के प्रति निष्ठा, वफादारी। शुचिता का आग्रह चाणक्य और सावरकर की राजनीति के चरित्र चित्रण से बूझ सकते हैं। हिंदू भले कलयुगी हो गया लेकिन बावजूद इसके पुराने लोग राजनीति में पवित्रता-स्वच्छता के गुण का आग्रह बनाते रहे। प्रधानमंत्री ने लाल किले से हाल में कहा राजनीतिक शुद्धता मेरा मिशन। तब भला दलबदल, चुनी सरकारों को खरीद-फरोख्त की मंडी से गिराना, पूरी हिंदू राजनीति को बिकाऊ, सत्ताखोर बना डालना क्या 140 करोड़ हिंदुओं के आचरण, संस्कारों, चारित्रिक आग्रहों में पलीता लगाना नहीं है? आठ वर्षों में नरेंद्र मोदी ने भारत को क्या बना दिया है? उन्होंने स्वच्छता अभियान का सड़क पर झाड़ू तो लगाया लेकिन देश की राजनीति को गंदगी और बदबू का शौचालय बना डाला है!
क्या मैं गलत हूं? हर हिंदू को, संघ के हर स्वंयसेवक या हर सुबह चाणक्य की उक्तियां भेजने वाले भक्तों को दिल पर हाथ रख कर सोचना चाहिए कि मोदी-शाह के हिंदू राष्ट्र का यह कैसा आदर्शवाद है, जो गुलाम नबी के अभिनंदन के नगाड़े हैं! यह क्या है जो नमकहराम परम पूजनीय है! दलबदलू-भ्रष्ट-सत्ता लालचियों से राष्ट्र निर्माण माना जा रहा है! शपथ के विपरीत केवल पोस्टिंग के लालच में बिकाऊ-भ्रष्ट अफसरों की छापेमारी देश की ईमानदारी हो गई है! विरोधियों को खत्म करना राष्ट्र कल्याण है! अपने ही नागरिकों को पाकिस्तानी करार देना, देशद्रोही करार देना, लोगों को सड़कों पर गृहयुद्ध के लिए उकसाना देशभक्ति और राष्ट्रधर्म है!
साभार- नया इंडिया