पाकिस्तान के पत्रकार नुसरत मिर्जा ने एक इंटरव्यू में दावा किया था कि भारत के उपराष्ट्रपति रहे हामिद अंसारी से उनकी 5 बार मुलाकात हुई थी। इस दौरान हासिल जानकारी को उन्होंने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI को सौंपा था। इसके बाद सियासत गरमा गई। BJP प्रवक्ता गौरव भाटिया ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और हामिद अंसारी पर देश से धोखा देने का आरोप लगाया।
अब नुसरत मिर्जा ने अपने बयान से पलट गए हैं। भास्कर से इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा कि वो हामिद अंसारी से निजी तौर पर कभी नहीं मिले। जो दस्तावेज उन्होंने ISI को दिए थे, उनका भारत से कोई मतलब नहीं था। वो दस्तावेज 2010 में आतंकवाद पर हुए एक सेमिनार में मौजूद पूर्व सोवियत जासूस के आरोपों से जुड़े थे। नुसरत मिर्जा ने और क्या-क्या कहा, पढ़िए पूरा इंटरव्यू
सवाल: आपके बयान पर भारत में हंगामा हुआ है, इस पूरे विवाद पर आप क्या कहेंगे?
जवाब: ये कोई मुद्दा ही नहीं। यह बेवजह विवाद खड़ा किया गया है। मैं 80 साल का सीनियर पत्रकार हूं और मुझे जासूस बना दिया गया। मेरी जिंदगी खुली किताब की तरह है। उन्हें समस्या हामिद अंसारी से है, वो हामिद अंसारी को निशाना बनाने चाहते थे और उनके चक्कर में मुझे भी निशाना बना दिया।
आप यहां पाकिस्तान में किसी से भी बात करेंगे तो वो बता देगा कि मैं कितना वोकल (साफ बोलने वाला) आदमी हूं। क्या कोई एजेंसी वाला मुझे अपने पास आने देगा, वो ये सोचेगा कि ये तो हमारी ही जानकारी उड़ा के रख देगा। इसलिए ही मैंने इस विषय पर बोलना बंद कर दिया है। चूंकि आपने कॉल किया है, अदब के साथ बात करना मेरी जिम्मेदारी है।
सवाल: आप कितनी बार हिंदुस्तान आ चुके हैं, हामिद अंसारी से कितनी बार मुलाकात हुई?
जवाब: हामिद अंसारी से मेरी कभी निजी मुलाकात नहीं हुई। मैंने एक सेमिनार में हिस्सा लिया था। हामिद अंसारी उसमें चीफ गेस्ट थे। मैं वहां स्पीकर था। उसके पुराने वीडियो निकालकर आप देख सकते हैं। मैंने अटल जी की कितनी तारीफ की थी। उस सेमिनार में हिंदू थे, सिख थे। पाकिस्तान के ऐंबैस्डर भी मौजूद थे। मैंने दोनों देशों को जोड़ने की दिशा में स्पीच दी थी।
इसके बाद कराची में भी एक सेमिनार किया था। हिंदुस्तान से कई लोगों को बुलाया था। उसमें पत्रकार भी थे। जिसको लेकर अब विवाद हो रहा है, तो मैं क्या कर सकता हूं। हमारे यहां ऐसा नहीं होता है। आपके यहां जिस तरह से एंकर बात करते हैं, हमारे यहां कोई एंकर हमसे ऐसे बात नहीं कर सकता हैं। मैं खुद भी एक एंकर हूं। बाकी मेरे लिए ये मामला खत्म हो चुका है।
सवाल: आपका कहना है बिना आग के ही धुआं उठ रहा, आप हामिद अंसारी से नहीं मिले तो फिर किससे मिले?
जवाब: हिंदुस्तान में जो हंगामा हो रहा है, उस पर मैं क्या कर सकता हूं। बात सिर्फ ये है कि एक व्यक्ति ने हमें फ्रेम करना चाहा था, बात को तोड़ मोड़कर रखना चाहा। अब वो बात उनके गले में ही फंस गई है।
18 साल की उम्र से मैंने खुली जिंदगी बिताई है। कहा जा रहा है मैंने खुर्शीद कसूरी (पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री) को हिन्दुस्तान की खुफिया जानकारी दी। यह झूठ है। कसूरी का दोस्त होना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं है। उनसे मिलना छोटे भाई से मिलने जैसा है। मैं तो उसके बाप का भी दोस्त था। उनके अब्बा 1970 में पाकिस्तान के कानून मंत्री थे। उस दौर में मैं स्टूडेंट लीडर था।
बेनजीर से भी मेरे संबंध रहे हैं। नवाज शरीफ की कैबिनेट में सलाहकार था। इन सब में मसला क्या है? मैं पॉवर पॉलिटिक्स का हिस्सा रहा हूं।
मैं तीन बातें साफ करता हूं- न ही मैं व्यक्तिगत तौर पर हामिद अंसारी से मिला, न मेरी उनसे किसी तरह की कोई बात हुई। हद तो ये है कि जब मैं आया था तब मेरी उनसे सिर्फ दुआ सलाम हुई थी। उस दौरे पर मनमोहन सिंह जी से जरूर मेरी मुलाकात हुई थी। उन्होंने मेरी खैरियत भी पूछी थी। हामिद अंसारी से तो कोई बात भी नहीं हुई थी, न उन्होंने मेरा हालचाल पूछा था। वो सीधे मंच पर चले गए थे। मुझे इस बात का बुरा भी लगा था।
सवाल: अगर आपकी बात सही है तो फिर इस मुद्दे पर विवाद क्यों है?
जवाब : इसकी एक वजह तो ये है कि हामिद अंसारी एक मुसलमान हैं और दूसरी ये कि वो कांग्रेसी हैं। BJP उन्हें निशाना बना रही है। ये सब भारत की पॉवर पॉलिटिक्स का हिस्सा है। एक गैर जरूरी विवाद खड़ा किया गया। हामिद अंसारी ने उस सेमिनार में क्या बोला था ये तो देखा जाए। उन्होंने कहा था कि पड़ोसी नहीं बदले जा सकते हैं।
सवाल: आपने कुछ दस्तावेजों का भी जिक्र किया था, ISI को देने के बारे में बात की थी, वो क्या मसला था?
जवाब: जब ये सेमिनार हुआ था उस समय खुर्शीद कसूरी पाकिस्तान के विदेश मंत्री भी नहीं थे। उन दस्तावेजों का भारत से कोई संबंध नहीं था।
दरअसल, सेमिनार में एक रूसी महिला ने पाकिस्तान पर अपना करार तोड़़ने के आरोप लगाए थे। वो महिला KGB (सोवियत संघ की इंटेलिजेंस एजेंसी) की पुरानी एजेंट थी। हमने उनसे कहा था कि आप गलत कह रही हैं।
यही वो बात थी जिसके बारे में पाकिस्तान लौटकर दस्तावेज दिए थे और कहा था कि आप पर ये इल्जाम लग रहे हैं। तब मुझसे कहा गया था कि हां, ये गलत नहीं है, सही है। इस प्रोजेक्ट के पीछे अमेरिका था। इस सबका भारत से कोई मतलब था ही नहीं।
मैं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का मीडिया सलाहकार था। इस हैसियत से जिस भी देश में जाता था, उसका एक प्रोटोकॉल होता था। जाहिर हैं मुझे उसी प्रोटोकॉल के हिसाब से रिसीव किया गया।
मैं जब भारत पहुंचा तो पाकिस्तान के दूतावास से मुझे सिम कार्ड दिया गया था। ये बताया गया था कि मुझ पर नजर रखी जा रही है। मैंने कहा कि रखने दो नजर। मैं दोस्त बनाने आया हूं। दोस्त बनाकर चला जाऊंगा। जब मुझे भारत का वीजा दिया गया था, तब उन्हें भी पता था कि मैं कौन हूं और मुझे भी पता था मुझ पर नजर रखी जा सकती है।
सवाल: यह तो आपकी सफाई है, फिर भी आपको नहीं लगता कि आपने गैर जिम्मेदाराना बयान दिया था?
जवाब: हिंदुस्तान में लोग समझ रहे होंगे कि कोई गैर जिम्मेदार पत्रकार है, जो कुछ भी बोल रहा है। वे लोग जानते नहीं हैं कि मैं कैसा पत्रकार रहा हूं। जब वाजपेयी जी वाघा बॉर्डर के रास्ते पाकिस्तान आए थे, तब मैं उनका स्वागत करने वाले लोगों में शामिल था, क्योंकि तब मैं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का सलाहकार था।
सवाल : इस विवाद से आपको निजी तौर पर क्या असर हुआ है?
जवाब: मैं सिर्फ पत्रकार ही नहीं हूं, राजनीति में भी रहा हूं। इस तरह के विवादों का हम जैसे लोगों पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। लोग मुझे गालियां दे रहे हैं, देते रहें। मुझे क्या फर्क पड़ता है। मुझे तो इस विवाद पर कुछ महसूस ही नहीं हो रहा है। अगर लोग बेवजह पागल हो रहे हैं तो उस पर मैं क्या कर सकता हूं, मैं तो बस हंस ही सकता हूं।
जब उन्हें मेरे बारे में पता चलेगा तो वो खुद सोचेंगे कि वो किस इंसान के बारे में बात कर रहे हैं। मैं बचपन से संघर्ष करता रहा हूं। हंगामों का हिस्सा रहा हूं। हमने तो पाकिस्तान में तानाशाहों को देखा है। तीन तानाशाहों से मुकाबला किया है, तो फिर इस विवाद से हम पर क्या फर्क पड़ेगा।
सवाल: आप भारत के आम लोगों को कोई सफाई या पैगाम देना चाहेंगे?
जवाब: मैं सिर्फ ये पैगाम देना चाहता हूं कि पड़ोसी नहीं बदले जाते हैं। इसलिए हमें अच्छे पड़ोसी की तरह रहना चाहिए ना कि बेवजह विवाद खड़े करते रहना चाहिए। किसी ने ISI का नाम ले लिया तो आपके यहां पटाखे छोड़ने शुरू कर दिए, ऐसा नहीं होना चाहिए।
राजनीति में तो कोई किसी का नहीं होता है। औरंगजेब ने अपने सगे भाई दारा शिकोह को ही मरवा दिया था। ये पॉवर पॉलिटिक्स बेरहम खेल है। आम जनता को इसके विवादों में नहीं फंसना चाहिए। मुझे इस खेल का हिस्सा बना रहे हैं, मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। अगर कोई मुझे अपने देश की एजेंसी (ISI) का एजेंट भी कहता है, तो मुझे कोई समस्या नहीं है। ये अलग बात है कि मैं सिर्फ पत्रकार हूं, कोई एजेंट नहीं।