भारत के पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी एक बार फिर से विवादों में हैं। इस बार विवाद की जड़ है पाकिस्तान के कॉलमनिस्ट नुसरत मिर्जा का वो इंटरव्यू जो पिछले दिनों सोशल मीडिया पर छाया रहा। नुसरत मिर्जा ने इंटरव्यू में हामिद अंसारी का नाम लिया और कहा कि उनके बुलावे पर वो भारत आए थे। मिर्जा ने कहा है कि भारत जाने पर उन्होंने पाकिस्तान की इंटेलीजेंसी एजेंसी आईएसआई के लिए कई जानकारियां जुटाई हैं। हामिद अंसारी ने बयान जारी कर इस इंटरव्यू को खारिज कर दिया है। हामिद ने इस इंटरव्यू को खारिज करने के लिए जो बयान जारी किया उसमें ईरान के राजदूत के तौर पर अपनी भूमिका पर भी टिप्पणी की है। हामिद ने कहा है कि बतौर राजदूत उन पर जो भी आरोप लगे वो पूरी तरह से निराधार हैं। जानिए आखिर हामिद अंसारी पर ये आरोप क्यों लगते हैं और जिस समय वो राजदूत थे तो ऐसी कौन सी घटना हुई थी जिसने उन्हें कठघरे में खड़ा कर दिया था।
ईरान में हामिद अंसारी
पूर्व उप-राष्ट्रपति पर अक्सर ये आरोप लगे हैं कि जिस समय वो ईरान के राजदूत थे, उन्होंने देश के हितों के साथ समझौता किया। हामिद अंसारी साल 1990-1992 तक ईरान की राजधानी तेहरान में भारत के राजदूत के तौर पर पोस्टेड थे। उस समय उन पर ईरान की इंटेलीजेंस एजेंसी सवाक और ईरान सरकार के साथ मिलीभगत के आरोप लगे थे। सवाक को आधिकारिक तौर पर 1979 में बंद कर दिया गया था। इसकी जगह पर फिर एक नए संगठन सजमान-ए-एत्तेलायत अमिनियात-ए-मिल्लिए ईरान को शुरू किया गया। लेकिन आज भी इसे सवाक के नाम से ही बुलाया जाता है।
पीएम मोदी को लिखी थी चिट्ठी
भारतीय इंटलीजेंस एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के पूर्व अधिकारियों ने अगस्त 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर ये अपील की थी कि वो अंसारी के कार्यकाल की जांच करें और सारा सच देश के सामने लेकर आएं। पूर्व ऑफिसर्स ने अपनी शिकायत में चार उन घटनाक्रमों को हवाला दिया था जिनकी वजह से देश की सुरक्षा खतरे में आ गई थी। उनका कहना था कि दूतावास पर तैनात भारतीय अधिकारियों को सवाक ने किडनैप किया और अंसारी बतौर राजदूत अपनी ड्यूटीज को पूरा नहीं कर पाए। साल 2010 में रॉ से रिटायर हुए ऑफिसर्स एनके सूद ने एक इंटरव्यू में दावा किया था कि अंसारी ने यहां तक कहा डाला था कि ईरान में रॉ के स्टेशंस को बंद कर देना चाहिए।
भारतीय अधिकारी की किडनैपिंग
सूद ने अपने इंटरव्यू में बताया था कि मई 1991 में तेहरान एयरपोर्ट पर भारतीय अधिकारी संदीप कपूर को किडनैप कर लिया था। लेकिन जब इस मसले को अंसारी के सामने लाया गया तो उन्होंने इसे बहुत ही हल्के में लिया। यहां तक कि तत्कालीन रॉ स्टेशन चीफ की तरफ से व्यक्तिगत तौर पर उन्हें इस बारे में जानकारी दी गई थी। रॉ चीफ उस समय दुबई में थे और इस घटना को इमरजेंसी के तौर पर समझ वो तुरंत ही अंसारी को ब्रीफ करने के लिए तेहरान पहुंचे थे।
सूद के शब्दों में, ‘अंसारी ने कपूर का पता लगाने के कोई भी कदम नहीं उठाया। लेकिन एक सीक्रेट रिपोर्ट विदेश मंत्रालय को भेजी कि कपूर लापता हैं और उनकी गतिविधियों को ईरान में संदिग्ध समझा जा रहा है क्योंकि यहां की एक महिला के साथ उनके रिलेशंस हैं।’ सूद की मानें तो उन्होंने जानबूझकर रॉ का जिक्र नहीं किया और इस मामले में सवाक का नाम लिया।
इसके तीन दिन बाद ही एक अज्ञात कॉल भारतीय दूतावास के पास आई जिसमें कहा गया था कि कपूर एक सड़क के किनारे पर पड़े हुए हैं। उन्हें ड्रग्स दी गई थीं और इसका असर कई दिनों तक उन पर देखा गया। रॉ ने उन्हें सलाह दी थी कि वो इसकी रिपोर्ट दर्ज करें और ईरान के विदेश विभाग के सामने विरोध दर्ज कराएं, अंसारी ने कोई एक्शन नहीं लिया।
बताया जासूस का नाम
अगस्त 1991 में रॉ कश्मीरी युवाओं पर नजर रखे हुई थी जो कि लगातार ईरान के धार्मिक शहर कूम जा रहे थे और हथियारों की ट्रेनिंग ले रहे थे। रॉ के नए स्टेशन चीफ की तरफ से अंसारी को उनके ऑपरेशन के बारे में बताया गया था। सूद की मानें तो अंसारी ने ईरान के विदेश विभाग को उस ऑफिसर के डीबी माथुर का नाम बता दिया था जो इस पूरे ऑपरेशन को डील कर रहे थे। सूद का आरोप है कि अंसारी ने इस जानकारी को सवाक को पास किया और माथुर को एक सुबह उस समय कुछ लोगों ने उठा लिया जब वो दूतावास की तरफ आ रहे थे। शाम होते-होते ये स्पष्ट हो चुका था कि उन्हें सवाक के लोगों ने ही किडनैप किया है।
इंटेलीजेंस एजेंसी को दी पहचान
पीएम मोदी को लिखी चिट्ठी में बताया गया है कि जब अंसारी ने माथुर के गायब होने की रिपोर्ट ईरान के विदेश विभाग के पास दर्ज करने से इनकार किया और भारत को ये नहीं बताया कि उन्हें सवाक ने किडनैप किया था, तो रॉ के अधिकारियों ने किसी तरह से ये बात अटल बिहारी वाजपेयी तक पहुंचाई थी। वाजपेयी तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव को इस बारे में बताया था। इसके बाद माथुर को ईरान की एविन जेल से रिहा किया गया। वो अपनी किडनैपिंग के चौथे दिन रिहा हो सके थे लेकिन 72 घंटे के अंदर उन्हें देश छोड़ने का आदेश दे दिया गया था। माथुर ने भारतीय दूतावास में आकर बताया था कि उनके साथ क्या हुआ था और कैसे सवाक उन्हें और रॉ स्टेशन चीफ को पहचानती थी।
कैसे मिल रहा था वीजा
पीएम मोदी को जो शिकायत की गई थी उसमें ईरान में 10 साल तक तैनात रहने वाले फर्स्ट सेक्रेटरी का भी जिक्र था। इसमें बताया गया था कि कैसे उन लोगों को भारत का वीजा 500 अमेरिकी डॉलर में दे दिया जाता था जो खुद को छात्र बताते थे। रॉ की तरफ से हुई एक इंक्वॉयरी में ये बात सामने आई थी कि किसी भी भारतीय यूनिवर्सिटी की तरफ से ऐसी कोई चिट्ठी जारी ही नहीं की गई थी जिसमें ईरान के नागरिकों को वीजा देने का प्रस्ताव हो। रॉ की तरफ से इस बारे में अंसारी को चिट्ठी भी लिखी गई थी लेकिन इस मामले को भी भुला दिया गया। इसके अलावा पूर्व रॉ अधिकारियों ने अंसारी पर ये आरोप भी लगाया था कि वो तेहरान में नियमित तौर पर पाकिस्तान के राजदूत से मुलाकात करते रहते हैं जिसके बारे में विदेश मंत्रालय को कुछ नहीं मालूम होता था।
बंद कराए रॉ के ऑपरेशंस
अंसारी पर ये आरोप भी लगे कि रॉ के उन ऑपरेशंस को भी रोक दिया गया था जो रक्षात्मक थे और ये पूर्व उपराष्ट्रपति के आदेश पर ही हुआ था। इसके अलावा अंसारी ने दुबई, बहरीन और सऊदी अरब के भारतीय राजदूतों को तलब किया था जिसका मकसद भारतीय दूतावासों पर मौजूद रॉ यूनिट्स को टारगेट करना था। पीएम मोदी को जो शिकायत की गई थी उसमें कहा गया था कि मार्च 1993 में मुंबई में हुए ब्लास्ट्स के समय खाड़ी देशों में रॉ की क्षमताएं पूरी तरह से अव्यवस्था में थीं।