नज़रिया

तमिलनाडु को देश बनाने की मांग कश्मीर से भी पुरानी, ब्राह्मणवाद के विरोध की आग ने द्रविड़नाडु को जन्म दिया

अमित शाह ने कहा था कि अगर आप एकता चाहते हो तो आपको हिंदी सीखनी होगी। हमारी पार्टी के फाउंडर पेरियार ने अपनी मौत तक थानी नाडु (अलग देश) की मांग की, लेकिन DMK ने लोकतंत्र और राष्ट्रीय अखंडता की खातिर उस मांग को दरकिनार कर दिया। इसलिए मैं बहुत ही विनम्रता के साथ कह रहा हूं कि हमारे CM, अन्नादुरई के पथ पर चले हैं, उन्हें पेरियार के मार्ग पर चलने के लिए मजबूर न करें। हमारी अलग तमिलनाडु देश की मांग को फिर से जिंदा न करें। इसलिए राज्य को और स्वायत्तता दें।’

ये बयान तमिलनाडु की सत्ता पर काबिज DMK के नेता ए राजा का है। उन्होंने 4 जुलाई को पार्टी की बैठक में ये बातें कहीं, जिसमें तमिलनाडु के CM एमके स्टालिन भी मौजूद थे। ए राजा के इस बयान ने तमिलनाडु को अलग देश बनाने की 7 दशक पुरानी मांग की याद को ताजा कर दिया है।

भास्कर एक्सप्लेर में हम ए राजा के बयान में इस्तेमाल पेरियार की मांग, अन्नादुरई का रास्ता और अमित शाह की हिंदी जैसे कीवर्ड को डिकोड कर रहे हैं।

आगे कुछ भी समझने से पहले हमें इस कहानी के सबसे मजबूत किरदार पेरियार के बारे में जानना जरूरी है…

इरोड वेंकट रामास्वामी यानी ईवी रामास्वामी उर्फ पेरियार का जन्म 17 सितंबर 1879 तमिलनाडु के इरोड में हुआ था। ब्राह्मणवाद और हिंदू धर्म की कुरीतियों पर उन्होंने छोटी उम्र से ही प्रहार करना शुरू कर दिया था। नास्तिक हाेने के चलते उन्होंने बाद में अपने नाम के आगे से सरनेम रामास्वामी को हटा दिया था। पेरियार का मतलब आदरणीय वरिष्ठ होता है।

1919 में उन्होंने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत कट्टर गांधीवादी और कांग्रेस के साथ की। वो गांधी की नीतियों जैसे शराब विरोधी, खादी और छुआछूत मिटाने की ओर आकर्षित हुए।

केरल में हुए 1924 के वाइकोम सत्याग्रह में अहम भूमिका निभाई। इसके लिए उन्होंने मद्रास राज्य कांग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया था। केरल का वाइकोम सत्याग्रह दलितों को यहां स्थित एक प्रतिष्ठित मंदिर में प्रवेश दिलाने का आंदोलन था। यहां सवर्णों से दलितों को 16 से 32 फीट की दूरी बनाए रखनी होती थी। किसी भी मंदिर के आस-पास वाली सड़क पर दलित नहीं जा सकते थे।

इस आंदोलन के बाद पेरियार तमिलनाडु में नायक बन गए थे। वाइकोम सत्याग्रह ब्राह्मणवाद के खिलाफ ही था और पेरियार खुद ब्राह्मणों के मुखर विरोधी थे। 1925 में उन्होंने कांग्रेस पर सिर्फ ब्राह्मणों के हित में काम करने का आरोप लगाकर इस्तीफा दे दिया।

इसके बाद पेरियार ने आत्म-सम्मान आंदोलन शुरू किया जिसका लक्ष्य गैर-ब्राह्मणों, यानी द्रविड़ में आत्म-सम्मान पैदा करना था। बाद में वो 1916 में शुरू हुए एक गैर-ब्राह्मण संगठन दक्षिण भारतीय लिबरल फेडरेशन यानी जस्टिस पार्टी के अध्यक्ष बने।

पेरियार वंचित वर्गों के आरक्षण के अगुवा थे और 1937 में उन्होंने तमिल भाषी लोगों पर हिंदी थोपने का विरोध किया था। पेरियार ने 1944 में आत्म-सम्मान आंदोलन और जस्टिस पार्टी को मिला कर द्रविड़ कड़गम बनाई। द्रविड़ कड़गम ने दलितों के बीच छुआछूत के लिए जोरदार लड़ाई लड़ी।

पेरियार ने बाल विवाह के उन्मूलन, विधवा महिलाओं की दोबारा शादी के अधिकार, पार्टनर चुनने या छोड़ने, शादी को इसमें निहित पवित्रता की जगह पार्टनरशिप के रूप में लेने के लिए अभियान चलाया था। उन्होंने वैवाहिक अनुष्ठानों को चुनौती दी, शादी के निशान के रूप में थली यानी मंगलसूत्र पहनने का विरोध किया।

ब्राह्मणवाद के विरोध की आग ने द्रविड़नाडु को जन्म दिया

तमिलनाडु को अलग द्रविड़नाडु या द्रविड़ देश बनाने की मांग स्वतंत्रता से भी पहले की है। राज्य में ब्राह्मणवाद विरोधी आंदोलन के दौरान यह कॉन्सेप्ट आया। इस आंदोलन का मकसद तमिल सोसाइटी और गवर्नमेंट से ब्राह्मणों के वर्चस्व को खत्म करना था। साथ ही द्रविड़ मूल के लोगों को सोशल इक्वालिटी और अधिक ताकतवर बनना था।

हालांकि वक्त के साथ यह अलगाववादी आंदोलन बन गया। दिसंबर 1938 में जस्टिस पार्टी के कन्वेंशन में एक रेजोल्यूशन के जरिए तमिल लोगों को और ज्यादा अधिकार देने की मांग की गई। तमिल नेता पेरियार आर्य लोगों को आक्रमणकारी बताते थे। साथ ही कहते थे कि ब्राह्मणों के आने से ही तमिल सोसाइटी में विभाजन हुआ।

1939 में पेरियार ने एक अलग द्रविड़नाडु देश के लिए द्रविड़नाडु कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया। 17 दिसंबर 1939 को एक स्पीच में उन्होंने द्रविड़ों के लिए द्रविड़नाडु का नारा दिया। 1940 में साउथ इंडियन लिबरल फेडरेशन, यानी जस्टिस पार्टी ने एक रेजोल्यूशन पारित कर अलग द्रविड़नाडु देश की मांग की।

पहले ये मांग सिर्फ तमिलभाषी क्षेत्रों के लिए थी, लेकिन बाद में द्रविड़नाडु में आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक, ओडिशा और तमिलनाडु को भी शामिल करने की बात कही गई। जून 1940 में कांचीपुरम में एक अलगाववादी कॉन्फ्रेंस में पेरियार ने द्रविड़नाडु का एक प्रपोज्ड नक्शा भी जारी किया था।

ईवी रामस्वामी ने अगस्त 1944 में सलेम प्रोविंशियल कॉन्फ्रेंस में जस्टिस पार्टी से द्रविड़ कड़गम यानी DK नाम की नई पार्टी बनाई। 1944 में पेरियर जब अंबेडकर से मिले तो उन्होंने कहा कि द्रविड़िस्तान का विचार पूरे भारत में लागू होना चाहिए, क्योंकि ब्राह्मणवाद पूरे उपमहाद्वीप के लिए एक समस्या है। इसी बीच तिरुचि में द्रविड़ कड़गम स्टेट कॉन्फ्रेंस में प्रमुख तमिल नेता सीएन अन्नादुरई ने कहा कि भविष्य में हिंसक क्रांतियों को रोकने के लिए भारत को नस्लीय रूप से बांटना जरूरी है।

इसके बाद पेरियार ने पार्टी के सीनियर नेताओं की अनदेखी करते हुए अपनी युवा पत्नी को पार्टी का उत्तराधिकारी बना दिया। साथ ही खुद पार्टी से निकल गए। 1949 में अन्नादुरई और अन्य नेता अलग हो गए और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम यानी DMK बनाई। 1940 के दशक के दौरान पेरियार ने भारत को तीन भागों में बांटने की बात की थी। वह मौजूदा भौगोलिक क्षेत्र को द्रविड़नाडु, मुस्लिम भारत (पाकिस्तान) और आर्य भूमि (हिंदुस्तान) में बांटने की बात करते थे।

पेरियार ने 1950 में कहा कि यदि द्रविड़नाडु बनता है तो भारत के लिए मददगार दोस्त के रूप में सिद्ध होगा। इसी दौरान जब तमिलनाडु में गैर ब्राह्यण वाली के कामराज की सरकार बनी तो पेरियार की द्रविड़ कड़गम ने कांग्रेस मिनिस्ट्री का समर्थन किया।

1950 के दशक के अंत और 1960 की शुरुआत में गैर-तमिल द्रविड़-भाषी राज्यों से कोई समर्थन नहीं मिलने के चलते द्रविड़नाडु की मांग एक स्वतंत्र तमिलनाडु में बदल गई। पेरियार ने अपनी मैगजीन विदुथलाई में बैनर को द्रविड़ों के लिए द्रविड़नाडु से तमिलनाडु कर दिया।

1956 में भाषाई आधार पर भारतीय राज्यों के गठन ने अलगाववादी आंदोलन को कमजोर करने का काम किया। जून-जुलाई 1956 में कड़गम के फाउंडर पेरियार ने द्रविड़िस्तान की मांग छोड़ने की बात कही। इस समय तक DMK ने द्रविड कड़गम से यह मुद्दा छीन लिया था।

हालांकि DMK के द्रविड़नाडु के नारे को तमिलनाडु के अलावा भारत के किसी भी राज्य में समर्थन नहीं मिला। 1956 में DMK के तिरुचि कॉन्फ्रेंस में द्रविड़नाडु के समर्थन को पार्टी में काफी गिरावट देखी गई। 1957 के विधानसभा चुनाव में DMK का यह नारा राज्य में नहीं चला और वह कुल 205 में से 15 सीटें ही जीत सकी।

1958 में एक ब्राह्मण नेता वीपी रमन DMK में शामिल हो गए और द्रविड़नाडु के प्रबल विरोधी बन गए। नवंबर 1960 में रमन सहित DMK नेताओं ने अन्नादुरई की अनुपस्थिति में आयोजित एक मीटिंग में पार्टी प्रोग्राम से द्रविड़नाडु की मांग हटाने का फैसला किया।

राजनीतिक विज्ञानी स्टेन विडमाल्म लिखते हैं कि ऐसा लगता है कि पार्टी ने द्रविड़नाडु की मांग से जितनी दूरी बनाई, उसका समर्थन उतना ही बढ़ता गया। 1962 के विधानसभा चुनाव में DMK ने अपनी सीटों को 3 गुना से ज्यादा कर लिया। चुनाव में उसे 50 सीटें मिलीं, लेकिन फिर भी कांग्रेस को सत्ता से नहीं हटा पाई।

17 सितंबर 1960 को द्रविड़नाडु सेपरेशन डे ​​मनाने पर अन्नादुरई और उनके सहयोगियों की गिरफ्तारी हुई। अन्नादुरई 1962 में राज्यसभा के लिए चुने गए। 1 मई 1962 को अपने पहले भाषण में अन्नादुरई ने कहा कि अब समय आ गया है कि तमिलनाडु (तत्कालीन मद्रास) को एक अलग देश का दर्जा दिया जाए और दक्षिण के राज्यों को मिलाकर द्रविड़नाडु नाम से एक अलग देश बने। अन्नादुरई की इस बात का संसद में जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने कड़ा विरोध करते हुए कहा था कि आजादी के 15 वर्षों के बाद इस तरह की मांग अनुचित है।

DMK को द्रविड़नाडु की मांग छोड़ने और हिंदी विरोध का फायदा 1967 के विधानसभा चुनाव में मिला। पार्टी ने इस दौरान 138 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया और अन्नादुरई CM बने।

इसके बाद 1980 के दशक में तमिलनाडु लिबरेशन आर्मी नामक एक छोटे आतंकी संगठन ने भारतीय शांति सेना को श्रीलंका भेजे जाने का विरोध किया और द्रविड़नाडु की मांग दोहराई।

2017 में जब भारतीय पर्यावरण मंत्रालय ने कत्लखानों के लिए मवेशियों की बिक्री पर बैन लगा दिया तो केरल में कई ट्विटर यूजर्स ने हैशटैग #द्रविड़नाडु को ट्रेंड करके विरोध किया। इस हैशटैग को तमिलनाडु में ट्विटर यूजर्स का भी समर्थन मिला। हालांकि प्रमुख राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने अलगाववादी भावनाओं का समर्थन करने से इनकार कर दिया।

अब अमित शाह की वो बात, जिसके बाद ए राजा ने अलग तमिलनाडु वाला बयान दिया…

अमित शाह ने 7 अप्रैल 2022 को कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तय किया है कि सरकार के कामकाज को आधिकारिक भाषा में किया जाए, इससे हिंदी की महत्ता निश्चित तौर पर बढ़ेगी।

संसद की आधिकारिक भाषा कमेटी को संबोधित करते हुए शाह ने कहा था कि सरकार का 70% एजेंडा हिंदी में बनता है। अब समय आ गया है कि आधिकारिक भाषा हिंदी को देश की एकता का जरूरी हिस्सा बना दिया जाए।

द फ्रीडम स्टॉफ
पत्रकारिता के इस स्वरूप को लेकर हमारी सोच के रास्ते में सिर्फ जरूरी संसाधनों की अनुपलब्धता ही बाधा है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के सुझाव दें।
https://thefreedomsnews.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *