दूसरे विश्व युद्ध के बाद और शीत युद्ध के दौरान दुनिया दो खेमों में बँट गई थी. एक का नेतृत्व अमेरिका कर रहा था और दूसरे का सोवियत संघ. दूसरे विश्व युद्ध के चार साल बाद नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन यानी नेटो 1949 में बना था.
इसे बनाने वाले अमेरिका, कनाडा और अन्य पश्चिमी देश थे. इसे इन्होंने सोवियत यूनियन से सुरक्षा के लिए बनाया था. तब दुनिया दो ध्रुवीय थी. एक महाशक्ति अमेरिका था और दूसरी सोवियत यूनियन. शुरुआत में नेटो के 12 सदस्य देश थे.
अभी नेटो के कुल 30 देश सदस्य हैं. नेटो ने बनने के बाद घोषणा की थी कि उत्तरी अमेरिका या यूरोप के इन देशों में से किसी एक पर हमला होता है तो उसे संगठन में शामिल सभी देश अपने ऊपर हमला मानेंगे. नेटो में शामिल हर देश एक दूसरे की मदद करेगा.
लेकिन दिसंबर 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद कई चीज़ें बदलीं. नेटो जिस मक़सद से बना था, उसकी एक बड़ी वजह सोवियत यूनियन बिखर चुका था. दुनिया एक ध्रुवीय हो चुकी थी. अमेरिका एकमात्र महाशक्ति बचा था. सोवियत यूनियन के बिखरने के बाद रूस बना और रूस आर्थिक रूप से टूट चुका था.
रूस एक महाशक्ति के तौर पर बिखरने के ग़म और ग़ुस्से से ख़ुद को संभाल रहा था. कुछ जानकार कहते हैं कि अमेरिका चाहता तो रूस को भी अपने खेमे में ले सकता था, लेकिन वो शीत युद्ध वाली मानसिकता से मुक्त नहीं हुआ और रूस को भी यूएसएसआर की तरह ही देखता रहा.
नेटो को लेकर पुतिन की राय शुरू से ही नकारात्मक नहीं थी, भले इसकी बुनियाद में यूएसएसआर का विरोध था.
जॉर्ज रॉबर्टसन ब्रिटेन के पूर्व रक्षा मंत्री हैं और वह 1999 से 2003 के बीच नेटो के महासचिव थे. उन्होंने पिछले साल नवंबर महीने में कहा था कि पुतिन रूस को शुरुआत में नेटो में शामिल करना चाहते थे, लेकिन वह इसमें शामिल होने की सामान्य प्रक्रिया को नहीं अपनाना चाहते थे.
पुतिन 2000 में रूस के राष्ट्रपति बने थे. जॉर्ज रॉबर्टसन ने पुतिन से शुरुआती मुलाक़ात को याद करते हुए बताया है, ”पुतिन ने कहा- आप हमें नेटो में शामिल होने के लिए कब आमंत्रित करने जा रहे हैं? मैंने जवाब में कहा- हम नेटो में शामिल होने के लिए लोगों को बुलाते नहीं हैं. जो इसमें शामिल होना चाहते हैं, वे आवेदन करते हैं. इसके जवाब में पुतिन ने कहा- मैं उन देशों में नहीं हूँ कि इसमें शामिल होने के लिए आवेदन करूं.”
लॉर्ड रॉबर्टसन ने यह बात सीएनएन के पूर्व पत्रकार माइकल कोसिंस्की के ‘वन डिसिज़न पॉडकास्ट’ में कही थी.
रॉबर्टसन की बातों पर इसलिए भी भरोसा किया जा सकता है क्योंकि पुतिन ने पाँच मार्च 2000 को बीबीसी के डेविड फ्ऱॉस्ट को दिए इंटरव्यू में कुछ ऐसा ही कहा था. डेविड फ्ऱॉस्ट ने अपने सवाल में पुतिन से पूछा था, “नेटो को लेकर आप क्या सोचते हैं? नेटो को आप संभावित साझेदार के तौर पर देखते हैं या एक प्रतिद्वंद्वी या फिर दुश्मन के रूप में?”
इसके जवाब में पुतिन ने कहा था, ”रूस यूरोप की संस्कृति का हिस्सा है. मैं ख़ुद अपने देश की कल्पना यूरोप से अलगाव में नहीं कर सकता. हम इसे ही अक्सर सभ्य दुनिया कहते हैं. ऐसे में नेटो को दुश्मन के तौर पर देखना मेरे लिए मुश्किल है. मुझे लगता है कि इस तरह का सवाल खड़ा करना भी रूस या दुनिया के लिए अच्छा नहीं होगा. इस तरह का सवाल ही नुक़सान पहुँचाने के लिए काफ़ी है.”
नेटो और यूक्रेन
अब जब यूक्रेन का संकट गहराया है तो पुतिन दो टूक कह रहे हैं कि अमेरिका नेटो का विस्तार रोके तभी तनाव कम हो सकता है. पुतिन यह शर्त भी रख रहे हैं कि अमेरिका इस बात की गारंटी दे कि यूक्रेन नेटो में शामिल नहीं होगा. पुतिन को लगता है कि यूक्रेन नेटो में शामिल होगा तो यह रूस की सुरक्षा के लिए ख़तरा है.
पुतिन ने नेटो के विस्तार पर आपत्ति जताते हुए पिछले साल 23 दिसंबर को कहा था, ”हमने स्पष्ट कह दिया है कि नेटो का पूरब में विस्तार स्वीकार्य नहीं है. अमेरिका हमारे दरवाज़े पर मिसाइलों के साथ खड़ा है. अगर कनाडा या मेक्सिको की सीमा पर मिसाइलें तैनात कर दी जाए तो अमेरिका को कैसा लगेगा?”
नेटो के विस्तार को लेकर पुतिन का ग़ुस्सा बढ़ता गया. मध्य और पूर्वी यूरोप में रोमानिया, बुल्गारिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, लात्विया, एस्तोनिया और लिथुआनिया भी 2004 में नेटो में शामिल हो गए थे. क्रोएशिया और अल्बानिया भी 2009 में शामिल हो गए. जॉर्जिया और यूक्रेन को भी 2008 में सदस्यता मिलने वाली थी, लेकिन दोनों अब भी बाहर हैं.
कुछ जानकार मानते हैं कि पुतिन ने यूक्रेन संकट के बहाने अमेरिका के नेतृत्व वाली एकध्रुवीय दुनिया को चुनौती दे दी है. पुतिन इससे पहले ऐसा सीरिया में भी कर चुके हैं. अमेरिका ने लाख कोशिश की कि सीरिया की सत्ता से बशर अल-असद को बेदख़ल कर दिया जाए, लेकिन पुतिन ने ऐसा नहीं होने दिया.
पुतिन बशर अल-असद को मदद करते रहे और आख़िरकार अमेरिका को सीरिया से वापस जाना पड़ा. कहा जा रहा है कि अब दुनिया फिर से दोध्रुवीय हो रही है और अमेरिका को चीन के साथ रूस से भी चुनौती मिल रही है.
रूस के साथ कौन-कौन
लेकिन दुनिया दो ध्रुवीय तभी होगी जब बाक़ी के देश भी अमेरिका और रूस के साथ लामबंद होंगे, जैसा शीत युद्ध के दौरान हुआ था. अमेरिका के साथ नेटो में शामिल सभी 30 देश तो हैं और एशिया की अहम शक्ति जापान के अलावा ऑस्ट्रेलिया भी है. लेकिन रूस के साथ कौन-कौन से देश हैं?
चीन
चीन भी रूस की तरह नेटो का विस्तार नहीं चाहता है. बीजिंग विंटर ओलंपिक के उद्घाटन समारोह में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन तीन फ़रवरी को चीन गए थे. चार फ़रवरी को दोनों देशों ने एक संयुक्त बयान जारी किया था. इसी बयान में चीन ने भी नेटों के विस्तार पर आपत्ति जताई थी. इसके अलावा मंगलवार को यूक्रेन पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक हुई तो चीन ने बातचीत जारी रखने की अपील की थी. संयुक्त राष्ट्र में चीन के राजदूत ज़ांग जुन ने कहा कि उनका देश चाहता है कि सभी पक्ष आपस में बातचीत और सलाह-मशविरा जारी रखें.
चीने ने अपील की कि समानता और आपसी सम्मान के आधार पर ही एक दूसरे की चिंताओं और उसका हल निकालने की कोशिश होनी चाहिए. चीन के राजदूत ने कहा कि मौजूदा स्थिति कई जटिल कारणों की वजह से है. चीन ने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत सभी देश शांतिपूर्ण माध्यमों से अंतरराष्ट्रीय विवादों का हल निकालें. पिछले दिनों चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की थी कि वे नए शीत युद्ध की किसी की कोशिश को सफल न होने दें.
यह भी कहा जा रहा है कि रूस पर पश्चिमी देशों का प्रतिबंध बढ़ रहा है, ऐसे में चीन ही उसे मदद करेगा. अभी अमेरिका को विश्व राजनीति के कई मुद्दों पर चीन और रूस साथ मिलकर चुनौती दे रहे हैं.
भारत
भारत दुनिया की पाँचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है और एशिया की तीसरी सबसे बड़ी. कहा जा रहा है कि भारत के लिए रूस या अमेरिका में से किसी का भी खुलकर पक्ष लेना मुश्किल है. लेकिन मंगलवार को भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जो कुछ भी कहा उसमें न तो रूस की निंदा थी और न ही यूक्रेन की संप्रभुता की बात कही थी.
हालांकि भारत ने भी कहा कि इस समस्या का समाधान कूटनीतिक वार्ता के ज़रिए ही संभव है. लेकिन ऐतिहासिक रूप से देखें तो भारत का रुख़ रूस के पक्ष में झुका रहा है. 2014 में रूस ने जब यूक्रेन से क्राइमिया को अपने में मिला लिया था तब भी भारत ने इसका विरोध नहीं किया था.
भारत अमेरिका के पक्ष में बिल्कुल नहीं खड़ा है, लेकिन रूस के साथ भी खुलकर नहीं है लेकिन भारत के लिए अब गुटनिरपेक्ष रहना इतना आसान नहीं है.
क्रोएशिया
क्रोएशिया 2009 में नेटो में शामिल हुआ था. लेकिन यूक्रेन संकट पर क्रोएशिया की भाषा नेटो के आधिकारिक बयान की तरह नहीं है. क्रोएशिया के राष्ट्रपति ज़ोरान मिलानोविक ने पिछले महीने कहा था कि रूस के साथ संघर्ष छिड़ता है तो यूक्रेन से अपनी सेना को वापस बुला लेगा. क्रोएशिया ने कहा था कि रूस की सुरक्षा चिंताओं का ख़्याल रखना चाहिए. हालांकि पुतिन ने मंगलवार को यूक्रेन के दो अलगाववादी इलाक़ों को स्वतंत्र क्षेत्र के रूप मान्यता दी तो क्रोएशिया ने इसकी निंदा की.
अज़रबैजान
अज़रबैजान के राष्ट्रपति रूस के दौरे पर हैं. उन्होंने इस दौरे पर ‘अलाइ डिक्लेरेशन’ पर हस्ताक्षर किया है. अज़रबैजान के राष्ट्रपति का यह दौरा उस संदेश के तौर पर देखा जा रहा है कि रूस को लेकर उसके मन में कोई दुराव नहीं है.
पाकिस्तान
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान रूस के दौरे गए हैं. ये दौरा इस रूप में भी देखा जाएगा कि शीत युद्ध के दौरान पाकिस्तान जिस अमेरिकी खेमे में था, उससे अब दूर हो रहा है. इमरान ख़ान रूस के दौरे पर तब गए हैं, जब यूक्रेन के साथ तनाव युद्ध की स्थिति के क़रीब है. इमरान ख़ान के दौरे के समय को भी काफ़ी अहम माना जा रहा है. विश्लेषकों का मानना है कि इससे एक संकेत जाएगा कि पाकिस्तान अपना पक्ष चुन रहा है और वह अमेरिका और पश्चिम विरोधी खेमे का हिस्सा बन रहा है.