नज़रिया

विश्व का तैयार होता नया नक्शा – सूर्य प्रकाश अग्रहरि

रूसी क्रांति के नायक व्लादिमीर लेनिन ने कहा था कि “रूस के लिए यूक्रेन को गवांना ठीक वैसा ही होगा जैसा एक शरीर से उसका सिर अलग हो जाए।” यूक्रेन का जन्म देखा जाए तो 1917 में रूसी क्रांति से बिखरे रूसी साम्राज्य से यूक्रेन ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी लेकिन 3 साल स्वतंत्र रहने के बाद यूक्रेन ने 1920 में सोवियत संघ में शामिल होने का निर्णय किया जिसके बाद यह सोवियत संघ में बना रहा और फिर 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद वर्तमान यूक्रेन का जन्म हुआ।


कहते हैं कि इतिहास को फिर से गढ़ने की महत्त्वाकांक्षाएं अक्सर विध्वंसक परिणामों से आशंकित रहती हैं। ऐसा ही कुछ वर्तमान में रूस-यूक्रेन के मध्य उपजे संकट से प्रतीत होता है। रूस-यूक्रेन संकट से पहले इसकी पृष्ठभूमि को समझते हैं-

यूक्रेन का नाटो में शामिल होने का प्रयास- दरअसल मुख्य रूप से इस संघर्ष की पृष्ठभूमि 2002 से उपजी है जब यूक्रेन ने नाटो में शामिल होने की आधिकारिक प्रक्रिया शुरू करने का एलान किया तो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को यह नागवार गुजरा था। यूक्रेन ने यह प्रयास वर्तमान में भी किया जिससे अब दोनों देशों के मध्य युद्ध की स्थिति पैदा हो गयी है। यूक्रेन ने उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो), जिसका गठन 4 अप्रैल, 1949 को हुआ था, से गठबंधन में अपने देश की सदस्यता में तेज़ी लाने का आग्रह किया है। रूस ने इस तरह के एक कदम को “रेड लाइन” घोषित कर दिया है और अमेरिका के नेतृत्त्व वाले सैन्य गठबंधनों तक इसकी पहुँच के परिणामों के बारे में चिंतित है। काला सागर बुल्गारिया, जॉर्जिया, रोमानिया, रूस, तुर्की और यूक्रेन से घिरा है। ये सभी नाटो देश हैं।वर्ष 2019 तक इसमें 29 सदस्य राज्य हैं और ‘मोंटेनेग्रो’ वर्ष 2017 में गठबंधन में शामिल होने वाला नवीनतम सदस्य बन गया है। नाटो देशों और रूस के बीच इस टकराव के कारण काला सागर सामरिक महत्त्व का क्षेत्र है और एक संभावित समुद्री फ्लैशपॉइंट है।


यूरोमैदान आंदोलन- यूरोमैदान, यह एक यूरोपीय स्क्वायर है, यूक्रेन में प्रदर्शनों और नागरिक अशांति की एक लहर थी, जो नवंबर 2013 में यूक्रेन की राजधानी कीव में ‘नेज़ालेज़्नोस्ती’ मैदान  (‘स्वतंत्रता स्क्वायर’) में सार्वजनिक विरोध के साथ शुरू हुई थी।
अलगाववादी आंदोलन- पूर्वी यूक्रेन का डोनबास क्षेत्र (डोनेट्स्क और लुहान्स्क क्षेत्र) वर्ष 2014 से रूसी समर्थक अलगाववादी आंदोलन का सामना कर रहा है। यूक्रेन सरकार के अनुसार, आंदोलन को रूसी सरकार द्वारा सक्रिय रूप से समर्थन दिया जाता है और रूसी अर्द्धसैनिक बल यूक्रेन सरकार के खिलाफ अलगाववादियों की संख्या 15% से 80% के बीच है।

मिन्स्क-I – यूक्रेन और रूसी समर्थित अलगाववादियों ने सितंबर 2014 में बेलारूस की राजधानी में 12-सूत्रीय युद्धविराम समझौते पर सहमति व्यक्त की। इसके प्रावधानों में कैदी का आदान-प्रदान, मानवीय सहायता की डिलीवरी और भारी हथियारों की वापसी शामिल थी। दोनों पक्षों द्वारा उल्लंघन के बाद यह समझौता शीघ्र टूट गया।


मिन्स्क II – वर्ष 2015 में फ्राँस और जर्मनी की मध्यस्थता के तहत ‘मिन्स्क II’ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये जाने के बाद एक खुला संघर्ष टल गया था। इसे विद्रोही क्षेत्रों में लड़ाई को समाप्त करने और सीमा को यूक्रेन के राष्ट्रीय सैनिकों को सौंपने के लिये डिज़ाइन किया गया था। इस पर रूस, यूक्रेन के प्रतिनिधियों, सुरक्षा और यूरोप में सहयोग के लिये  संगठन (OSCE) दो रूसी समर्थक अलगाववादी क्षेत्रों के नेताओं द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे।

क्रीमिया पर कब्जा- वर्ष 2014 में काला सागर के उत्तरी तट पर स्थिति क्रीमिया पर भी रूस ने कब्जा कर लिया था जिससे काला सागर क्षेत्र में रूस की सामरिक महत्त्वाकांक्षा जाग गयी। कीवियाई रूस मध्यकालीन यूरोप का एक राज्य था।

        अमेरिका समर्थित यूक्रेन, जोकि यूरोपीय संघ का भी सदस्य है इसलिए इसके समर्थन में ब्रिटेन भी खड़ा है, अपने पड़ोसी देशों की तुलना में अधिक शक्तिशाली है और पूर्व के सोवियत संघ में रूस के बाद यह सबसे ताकतवर देश था। रूस और यूक्रेन एक-दूसरे से सांस्कृतिक, भाषाई और पारिवारिक संबंध रखते हैं। यूक्रेन के पड़ोसी बेलारूस रूस का मित्र राष्ट्र है। यूक्रेन रूसी पहचान से अलग होने को बेताब है। रूस यूक्रेन को केवल एक अन्य देश के रूप में नहीं देखता है, वह उसे बहुस्लाविक राष्ट्र मानता है। सामरिक सुरक्षा के लिए भी रूस के लिए यूक्रेन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। 

रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों की बात- वर्तमान में युद्ध की स्थिति अगर विकराल रूप धारण करती है तो अमेरिका के साथ-साथ यूरोपीय संघ रूस पर जटिल आर्थिक प्रतिबंध लगा सकते हैं। रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगना मतलब विश्व की अर्थव्यवस्था चरमराना। रशियन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट फण्ड या रूबल को विदेशी मुद्रा में बदलने वाले बैंकों पर प्रतिबंध लग सकता है। इससे रूस की अर्थव्यवस्था भी तहस-नहस हो सकती है। दक्षिण एशियाई देशों में तेल की कीमतें बेतहाशा बढ़ने लगेंगी। पश्चिम देश (अमेरिका के नेतृत्व में) रूस की बैंकिंग प्रणाली को अंतरराष्ट्रीय स्विफ्ट भुगतान प्रणाली से डिस्कनेक्ट करने की चेतावनी दे सकते हैं।इसके साथ जर्मनी में रूस द्वारा प्रस्तावित नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन को प्रतिबंधित किया जा सकता है। जर्मनी की विदेश मंत्री एनालेना बारबॉक ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि रूस द्वारा कोई अन्य सैन्य कार्यवाही की गई तो इस समझौते को रद्द कर दिया जायेगा।

          
तृतीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि-   रूस नाटो को अपना दुश्मन मानता है। रूस नाटो देशों को अमेरिका के रूप में परिभाषित करता है। यूक्रेन के अधिकतर पड़ोसी देश नाटो के सदस्य हैं इससे रूस को यूक्रेन के नाटो में शामिल होने से अपनी सुरक्षा संबंधी चिंता सताने लगी है। रूस की मांग है कि यूक्रेन को नाटो में न शामिल किया जाए। रूस की सुरक्षा संबंधी चिंता को देखते हुए अमेरिका ने इस मुद्दे पर विचार करने का निर्णय लिया था परंतु अंत में अमेरिका पलट गया। अमेरिका ने रूस को भविष्य में यूक्रेन पर किये गए हमले को लेकर भुगतने की धमकी दी है। जिससे तृतीय विश्व युद्ध जैसी स्थिति बन गयी है। इस स्थिति में सम्पूर्ण विश्व अमेरिका और रूस के नेतृत्व में दो धड़े में विभाजित हो जाएंगे जिससे व्यापक भू-राजनीतिक उथल-पुथल मच जाएगी। इस संबंध में चीन और अमेरिका की दुश्मनी और चीन-रूस की दोस्ती भारत की चिंताएं बढ़ा सकती है। चीन और रूस की बढ़ती नजदीकियों से अमेरिका और नाटो की नींद उड़ी हुई है। रूस के मुकाबले चीन कहीं बड़ा प्रतिद्वंद्वी बन कर अमेरिका के सामने आ गया है। इससे निपटने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन यूरोप से आस लगाकर बैठे हैं। अब चीन की बढ़ती ताकत से साम्यवाद के मजबूत होने की आशंका नाटो को परेशान कर रही है। अपने गौरवशाली और स्वर्णिम इतिहास को दोहराने की कोशिशों में चीन और रूस जैसे देश भौगोलिक और सांस्कृतिक विखंडन को दरकिनार करना चाहते हैं, जो असंभव होकर अस्थिरता को बढ़ाते हैं जोकि विश्व शांति में एक बाधक के रूप में है। क्रीमियाई शहर सेवास्तोपोल का बंदरगाह प्रमुख नौसैनिक अड्डा है और यहां रूसी पोतों की मौजूदगी तनाव का कारण बन गई है। इस समय यूक्रेन की सीमा पर रूस का पूरा दबाव है। वहां युद्ध पूर्व के हालात साफ दिख रहे हैं।

यूक्रेन-भारत-रूस- रूस और यूक्रेन विवाद से भारत के समक्ष कूटनीतिक चुनौती उभरी है। भारत रूस का पुराना दोस्त है और सोवियत संघ के विघटन के बाद यूक्रेन भी भारत के निकटम है। भारत और यूक्रेन के मध्य रक्षा उपकरण व्यापार से दोनों देशों के मध्य सुरक्षात्मक भावना के गुण विद्यमान है। भारत रूस से  55-60% हथियार लेता है और इसमें हाल के समय में सबसे बड़ी डील S-400 की भी शामिल है। S-400 रक्षा प्रणाली विश्व की अन्य किसी भी प्रणाली से श्रेष्ठ है। भारत और रूस के मध्य सामरिक महत्त्व के समझौते, द्विपक्षीय समझौते, विज्ञान और प्रौद्योगिकी समझौते आदि शामिल है। यूक्रेन और रूस दोनों मिलकर विश्व का 30% गेंहू उत्पादन करते हैं जिसके कारण इन्हें ‘ब्रेड बास्केट’ कहा जाता है। दोनों देशों के मध्य संघर्ष से उपर्युक्त तत्वों पर भारत में व्यापक प्रभाव देखने को मिल सकता है। इसको हम एक उदाहरण से समझ सकते हैं पिछले वर्ष भारत ने 1.89 मिलियन टन सूरजमुखी तेल का निर्यात किया था जिसमें से 74% तेल यूक्रेन से आया था। अब अगर दोनों देशों के मध्य युद्ध होता है तो भारतीय नागरिकों के जेब पर प्रभाव पड़ना तय है।

रूस और पश्चिमी शक्तियों के बीच गतिरोध-
संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वह नाटो में शामिल होने के इच्छुक सदस्यों के लिए नाटो के दरवाजे बंद नहीं करेगा। इसके अतिरिक्त, पश्चिमी देश रूस को एक आक्रामक और अस्थिर देश के रूप में देखते हैं तथा रूस को यूरोपीय अपमान का कारक मानते हैं।

तुर्की का पक्ष- तुर्की ने यूक्रेन को लड़ाकू ड्रोन की आपूर्ति करके रूस को चिढ़ाया है और रूस को डर है कि यूक्रेन द्वारा पूर्वी क्षेत्रों में अलगाववादियों के साथ संघर्ष में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। साथ ही तुर्की ने रूस से एक उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणाली प्राप्त करके अमेरिका और नाटो को भी परेशान किया है जिसके परिणामस्वरूप संयुक्त राज्य अमेरिका ने उस पर प्रतिबंध लगा दिये थे। तुर्की ने रूस और पश्चिमी रक्षा गठबंधन से नाटो प्रमुख ‘जेन्स स्टोलटेनबर्ग’ द्वारा प्रस्तावित प्रत्यक्ष वार्ता के माध्यम से अपने मतभेदों को दूर करने का आग्रह किया है।

भारत पर प्रभाव- वर्तमान संकट को देखते हुए भारत के समक्ष ‘एक तरफ कुंआ तो दूसरी तरफ खांई’ की स्थिति बनी हुई है। आज भारत को दोनों देशों की जरूरत है अथार्त भारत अमेरिका के साथ अच्छे संबंध चाहता है और रूस के साथ भी। इस स्थिति में भारत को संतुलन साधने में मुश्किल हो सकती है जिसके लिए कोई ठोस कूटनीतिक कदम बढ़ाने होंगे। रूस और चीन की दोस्ती से भारत की सीमा संबंधी चिंताएं बढ़ सकती हैं। भारत का चीन के साथ उत्पन्न सीमा गतिरोध रूस-चीन की दोस्ती से संकट को गहरा सकता है। भारत के लिए रूस-यूक्रेन संकट पूर्वी यूरोपीय क्षेत्र में तनाव और अस्थिरता पैदा कर सकता है तथा यह एशियाई राजनीति की गतिशीलता में बदलाव ला सकता है।

                 रूस-यूक्रेन संकट नए शीत युद्ध के उभरने के स्पष्ट संकेत हैं जो पहले से ज्यादा विनाशकारी हो सकते हैं। रूस द्वारा यूक्रेन पर की गई आक्रामकता से रूस के लिए सामरिक और सुरक्षा हितों को पूर्ण कर दें परंतु यह रूस-यूरोप संबंधों तथा उसकी आर्थिक स्थिति के लिए एक संकट सिद्ध हो सकती है। युद्ध किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकता है। सार्थक संवाद तथा मित्रतापूर्ण आपसी विश्वास के माध्यम से सामान्य स्थिति बहाल की जा सकती है।

सूर्य प्रकाश अग्रहरि

(लेखक युवा टिप्पणीकार हैं)

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