नज़रिया

दिल्ली के मुखिया जिस यमुना में दिल्लीवासियों को डुबकी लगवाना चाहते हैं वह यमुना सरकारी फाइलों में ‘मृत नदी’ के रूप में है दर्ज

यमुना में झाग की तस्वीरों से उत्सवप्रेमी धर्मभीरू समाज विचलित है. सरकार की लानत मलानत की जा रही है कि वादों दावों और इरादों के बावजूद यमुना में गिर रहे नालों को रोका क्यों नहीं जा रहा है. यहां सरकार का मतलब है पिछले 28 सालों में जब भी जिसकी भी सरकार रही है उसने यमुना को लेकर झूठ बोला है. दिवाली के बाद इस समय हर साल यमुना झाग से गुलजार रहती है, अबकी बार छठ के कारण तस्वीरें थोड़ी मार्मिक हो गईं क्योंकि झाग के बीचो-बीच हमारी मां- बहने हाथ जोड़े खड़ीं थीं. होता यूं था कि छठ की तैयारी के दबाव में गंगा नहर का पानी यमुना के बड़े हिस्से में ट्रांसफर कर दिया जाता है जिससे झाग दब जाता था, इस बार कोविड प्रोटोकॉल का हवाला देते हुए दिल्ली में छठ व्रतियों को घाट पर जमा होने की मनाही थी, बस यहीं सरकार से गलती हो गई उसे लगा लोग अच्छे बच्चों की तरह आदेश का पालन करेंगे, इसीलिए यमुना में बन रहे झाग को वार्षिकी मानते हुए ध्यान नहीं दिया गया.

यमुना में पानी की उपलब्धता और उसमें दिल्ली के योगदान पर एक नजर डालिए. एक बाल्टी में सामान्यत 4 गैलन पानी आता है, एक मिलियन गैलन मतलब 45 लाख लीटर से ज्यादा और दिल्ली में हर रोज 720 मिलियन गैलन मल-मूत्र और इंडस्ट्रियल सीवेज पैदा होता है. इसे बाल्टी के हिसाब से समझेंगे तो कैलक्यूलेटर फेल हो जाएगा. पूरी क्षमता के बावजूद दिल्ली सरकार 500 मिलियन गैलन सीवेज ट्रीट कर पाती है. इस ट्रीटेड वाटर में बहुत थोड़ा सा हिस्सा पार्कों और वेटलैंड एरिया में उपयोग में आता है.

तारीखों में बहती यमुना
भोले भाले नेता इस बहस में उलझे हैं कि सीवेज में दिल्ली, यूपी, हरियाणा में से किसका योगदान ज्यादा है. उनकी चिंता के केंद्र में यमुना है ही नहीं. जैसे झाग के बीच नाव की सवारी करते दिल्ली भाजपा नेता मनोज तिवारी दावा करते हैं कि हरियाणा से साफ पानी आ रहा है और नजफगढ़ नाले से गंदगी आ रही है, उन्हें पता ही नहीं कि नजफगढ़ नाले में पानीपत की फैक्ट्रियों का प्रदूषित वेस्टेज होता है, वैसे उन्हें यमुना के बारे में कुछ भी नहीं पता. पिछले साल भी झाग आया था लेकिन कोविड के कारण मीडिया में ज्यादा जगह नहीं बना पाया, वैसे भी उस समय लोग नदियों और मौसम की रूमानी तस्वीरों को सोशल मीडिया में शेयर करने में व्यस्त थे. याद कीजिए पिछले साल को जब सभी भक्तों ने एक साथ नारा लगाया था– नदियां साफ हो गईं. पिछले साल दिल्ली सरकार ने आनन-फानन में कई बड़ी घोषणाएं करते हुए दावा किया था कि 2023 तक यमुना को 90 फीसद साफ कर देंगे.

वैसे उसके पिछले साल और पिछले के पिछले साल भी ऐसा ही कहा गया था. इस समय यमुना एक्शन प्लान तृतीय चल रहा है, यमुना एक्शन प्लान प्रथम यानी 1993 से यह तमाशा जारी है, यमुना तारीखों में बह रही है.

यमुना का झाग, पानीपत और सोनीपत की फैक्ट्रियों की देन है लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि यह इंडस्ट्रीज तो साल भर चलती हैंं फिर इसी समय यह आफत क्यों नजर आती है.

यमुना की झाग और सत्ता के चिंतन की टाइमिंग पर ध्यान देंगे तो कहानी आसानी से समझ आ जाएगी. दिल्ली में पीने का पानी मोटे तौर पर तीन स्रोतों से आता है. पहला है अपर गंगा नहर जिसका पानी पूर्वी दिल्ली को सप्लाई होता है, दूसरा है पश्चिमी यमुना नहर, जो दिल्ली के बड़े हिस्से को पानी सप्लाई करती है और तीसरा है ग्राउंड वाटर, दिल्ली की हजारों सोसाइटियां और बाहरी दिल्ली की बसाहटें लगातार भूमिगत जल चूसती रहती हैं. अपर गंगा नहर में हर साल दिवाली के ठीक पहले रख-रखाव कार्य होता है जिससे दिल्ली में गंगा वाटर की सप्लाई कुछ दिन के लिए बंद हो जाती है.

जिसका सीधा असर यमुना पर आने वाले पानी पर नजर आता है, क्योंकि यमुना की मुख्य धारा में कोई पानी है ही नहीं. वहां सिर्फ डोमेस्टिक और इंडस्ट्रियल सीवेज है, यह सीवेज हमेशा ही हाई टॉक्सिक होता है लेकिन गंगा नहर के द्वारा आने वाला पानी इसे काफी हद तक डायल्यूट कर देता है, इतना कि इसे ट्रीट किया जा सके. इस समय चूंकि पिछले दिनों गंगा नहर मेंटेनेंस के लिए बंद थी अमोनिया, सर्फेक्टेंट और फॉस्फेट नजर आ रहा है यानी वह सच्चाई नजर आ रही है जिससे हम आंखें फेरे रहते हैं.

पिछले कई सालों से पर्यावरण कार्यकर्ता यह मांग कर रहे हैं कि यमुना के बाढ़ क्षेत्र में तालाब बनाया जाए और उनमें ट्रीटेड वाटर को रखा जाए ताकि भूमिगत जल भी रिचार्ज हो सके.

नहाने लायक पानी भी नहीं है यमुना का
यमुना में 2023 तक डुबकी लगवाने का दावा करने वाले अच्छी तरह जानते हैं कि यह संभव नहीं क्योंकि दिल्ली की यमुना में पानी है ही नहीं. हथनी कुंड बैराज के बाद पानी आगे नहीं बढ़ता तो डुबकी से शायद उनका मतलब ‘ट्रीटेट सीवेज वाटर’ से होगा. दिल्ली सरकार ने अपनी एक रिपोर्ट में यह भी माना है कि यमुना कभी भी नहाने योग्य नहीं हो सकती.

दिल्ली की यमुना का सच यही है कि वह अपने ही सीवेज से दृश्यमान (दिखती) है. यदि नजफगढ़ सहित सभी नाले यमुना में डालने बंद कर दिए जाए तो यमुना एक सूखा मैदान बन जाएगी, जिसके कुछ हिस्सों में दलदल होगा. वैसे हरियाणा लगातार दिल्ली को 1133 क्यूसेक पानी देता है और दिल्ली कम सप्लाई का आरोप लगाता है, खैर जो भी पानी आता है वह दिल्ली की जरूरतों के हिसाब से बेहद कम है. और इसे राज्य में प्रवेश करते ही उपयोग में ले लिया जाता है.

दिल्ली के मुखिया जिस यमुना में दिल्लीवासियों को डुबकी लगवाना चाहते हैं वह यमुना सरकारी फाइलों में ‘मृत नदी’ के रूप में दर्ज है.

एक तथ्य और जान लीजिए दिल्ली के कुल 48 किलोमीटर लंबाई में यमुना बहती है, इसमें से वजीराबाद से ओखला के बीच मात्र 22 किलोमीटर के क्षेत्र में यमुना 80 फीसद प्रदूषित होती है. इस अस्सी फीसद का मतलब है यमनोत्री से लेकर प्रयागराज संगम तक कुल प्रदूषण का 80 फीसद दिल्ली योगदान करती है.

Abhay Mishra

द फ्रीडम स्टॉफ
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