आज के ही दिन 1964 में पंडित जवाहरलाल नेहरू हम सबको छोड़कर चले गए थे। वह हमारे जीवन में इतने अधिक रचे-बसे हुए थे कि हमारे दिल और दिमाग से इस सच्चाई को मिटाना मुश्किल था कि अब वह नहीं रहे।
जब भी मैं भाखड़ा नहर और हरियाणा, पंजाब व राजस्थान के हरे-भरे खेतों को देखता हूं, जो बमुश्किल 58 साल पहले तक बंजर रेत के टीले थे, तो मुझे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की आदरपूर्ण याद आती है। नेहरू जी के साथ, मुझे अपने पिता चौ. रणबीर सिंह भी याद आते हैं जो उस वक्त पंजाब के सिंचाई और बिजली मंत्री थे, जब नेहरू जी ने 22 अक्टूबर, 1963 को भाखड़ा बांध परियोजना राष्ट्र को समर्पित की थी। 16 साल की उम्र में मैं उद्घाटन के दौरान अपने पिता के साथ गया था।
मुझे यह भी याद है कि नेहरू जी ने भाखड़ा परियोजना को पूरा करने में कितनी लगन और निष्ठा से व्यक्तिगत रुचि दिखाई और इसके लिए मेरे पिता और इंजीनियरों की टीम सहित उनकी टीम ने दिन-रात अथक परिश्रम से काम किया। प्रधानमंत्री के रूप में, उन्होंने 13 बार परियोजना स्थल का दौरा किया और यहां तक कि भाखड़ा परियोजना वाली जगह पर ही चीनी प्रधानमंत्री के साथ पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर भी किये। ये कहने की जरूरत नहीं है कि इस परियोजना ने आधे पेट रहने वाले लाखों लोगों के जीवन और आजीविका को बदल कर रख दिया।
इसी तरह, देश की प्रमुख नदियों पर कई बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण उनके प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल के दौरान किया गया था। जब भारत को आज़ादी मिली, उस वक्त लाखों भारतीय नागरिक भूख से तड़पकर जिन्दा रहने के लिए संघर्ष कर रहे थे और देश दाने-दाने को मोहताज था। नेहरू जी को अपने देश के लोगों से बहुत सहानुभूति थी, उनका एक चर्चित वक्तव्य था कि “सब कुछ इंतजार कर सकता है, लेकिन कृषि नहीं।”
सिंचाई परियोजनाओं, तकनीकी अनुसंधान, उर्वरक और कृषि के बुनियादी ढांचे में भारी निवेश किया गया, जिसने देश में हरित क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया। नेहरू जी के अनन्य मित्र, एक प्राण दो शारीर के रूप में जाने जाने वाले लाल बहादुर शास्त्री ने इन्हीं नीतियों को आगे और अधिक गति दी और भारत की कटोरा थामे याचक की छवि को एक आत्मनिर्भर और स्वाभिमानी देश में बदल दिया।
नेहरू जी मूलतः एक राष्ट्र निर्माता थे। यदि हम स्वतंत्रता के बाद अपने देश की प्रमुख उपलब्धियों या सफलताओं का आकलन करें, तो हम निःसंकोच ये दावे से कह सकते हैं कि यह एक लोकतांत्रिक राज-व्यवस्था है। वे एक उत्साही प्रजातांत्रिक भी थे। हर कोई जानता है कि उन्होंने यह अच्छी तरह से जानते हुए कि देशवासियों की बड़ी संख्या पढ़ी-लिखी नहीं है और गरीबी से त्रस्त है, संविधान सभा में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की जोरदार हिमायत की। उन्होंने अपने भावनात्मक और जबरदस्त तर्कों से अपने आलोचकों और निंदक विरोधियों को चुप करा दिया। वह ऐसा इसलिए कर पाए क्योंकि उनका अपने नागरिकों पर अटूट विश्वास था।
नेहरू जी असहमति का सम्मान करते थे और मानते थे कि मतभेद, वाद-विवाद और चर्चाएं लोकतंत्र का अभिन्न हिसा हैं। उनका दृढ़ विश्वास था कि लोकतंत्र में बहुमत की अपनी जगह है लेकिन अल्पमत की राय के लिए भी जगह होनी चाहिए, ‘सिर्फ मेरी चलेगी किसी और की नहीं’ वाला दृष्टिकोण सही नहीं है। नेहरू जी ने अपने मंत्रिमंडल में डॉ. बी.आर. अंबेडकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और सी. राजगोपालाचारी जैसे दिग्गजों को शामिल किया, जिनके विचार नेहरू जी से भिन्न थे और बाद में इन लोगों ने अपनी अलग राजनीतिक पार्टियों की स्थापना की। जिसे उनके प्रतिद्वंद्वियों की टीम करार दिया गया।
फिर भी, अपनी व्यक्तिगत पसंद से ऊपर उठकर और व्यापक राष्ट्रहित में, उन्होंने राष्ट्र निर्माण के लिए उनकी प्रतिभा का इस्तेमाल करने के लिए उन्हें शामिल किया। उन्होंने डॉ. राम मनोहर लोहिया, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे अपने कटु आलोचकों के खिलाफ भी कभी कोई द्वेष नहीं रखा, बल्कि सदा उनके विचारों को महत्व दिया।
इस प्रकार उन्होंने मजबूत लोकतांत्रिक परंपराएं, प्रक्रियाएं और परंपराओं की स्थापना की जिनकी बुनियाद पर हमारे लोकतांत्रिक संस्थान स्थापित किये गये। हर भारतीय इस बात पर गर्व महसूस कर सकता है कि उन्होंने देश में लचीला और जीवंत लोकतंत्र का इतना मजबूत आधार बनाया कि उसे मिटाने का कोई भी प्रयास सफल नहीं हो सकता।
नेहरू जी वास्तव में आधुनिक भारत के शिल्पकार थे। शून्य से शिखर तक एक राष्ट्र का निर्माण करना सबसे चुनौतीपूर्ण काम था। वे वैज्ञानिक समाजवाद के हिमायती थे और उन्होंने देश को वैज्ञानिक, धर्मनिरपेक्ष स्वभाव को आत्मसात करने में मदद की। वह एक दूरदर्शी राजनेता थे और उन्होंने देश की वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति के लिए आईआईटी, एम्स समेत अध्ययन और अनुसंधान के अन्य विश्वस्तरीय सर्वश्रेष्ठ संस्थानों की स्थापना करके ठोस आधार बनाया।
नेहरू जी बहुमुखी और करिश्माई व्यक्तित्व के धनी थे। इसके अलावा, वे बेहतरीन इंसान थे और अपने सहयोगियों तथा दोस्तों का खुद खास ख़याल रखते थे। मेरे पिता खुशी से उनके बारे में एक दिलचस्प किस्सा सुनाया करते थे। किसी ने नेहरूजी को बताया कि तत्कालीन पंजाब (अब हरियाणा) के झज्जर संसदीय क्षेत्र से कम्युनिस्ट पार्टी के पहले निर्वाचित सांसद प्रताप सिंह दौलता मेरे पिता के करीबी रिश्तेदार हैं। नेहरू जी हैरान थे कि पंजाब जैसे समृद्ध राज्य में, जहां भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का कोई मजबूत आधार नहीं है, कोई कम्युनिस्ट कैसे जीत सकता है।
एक बार जब मेरे पिता नेहरू जी से मिले तो उन्होंने पूछा कि दौलता उनसे कैसे जुड़े हुए हैं। वास्तविकता ये थी कि दौलता मेरे पिताजी की सगी मौसी के भाई थे। पिताजी ने मजाकिया अंदाज में कहा, “मेरा उनसे यह रिश्ता है कि जब दौलता को कुछ काम कराना होता है तो मैं उनका जीजा होता हूं और जब उनके पास कोई काम नहीं होता तो मैं उनका साला होता हूं”। ये सुनकर नेहरू जी ठहाका मारकर हंस पड़े।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि राजनीतिक जगत में नेहरू जी का विशाल व्यक्तित्व था और आगे भी रहेगा। उनके खिलाफ कोई भी दुष्प्रचार इस देश के लिये उनके योगदान को कमतर नहीं कर सकता और हज़ारों झूठ मिलकर भी उनके उस विशाल कद को बौना नहीं कर सकते।