मां दुर्गा के नौ स्वरूप माने गए हैं, लेकिन वह विविध रूपों में हमारे आस-पास विद्यमान रहती है। मां, बहन,पुत्री एवं पत्नी के रूप में वह सदा हमारे साथ चलती है, हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है,हमारा मार्ग प्रशस्त करती है। दुर्गा नारी शक्ति का ही प्रतीक है, उनके सभी रूप जीवन व जगत शक्ति के अवतार हैं।
‘नवरात्रि’ में हम ‘नव दुर्गा’ की उपासना करते हैं। नवरात्र यूं तो ‘पवित्र रात्रि’ का प्रतीक है, ऐसी रात्रि जो पाप रूपी अंधेरे का शमन कर जीवन में नई रौशनी का संचार करती है। प्रतीकात्मक तौर पर नवरात्रि पाप पर पुण्य की विजय का प्रतीक है। अपितु नौ दिनों तक नौ देवियों की पूजा कर जीवन के समस्त बवंडरों से मुक्ति पाने की कामना भी इसमें विशेष स्थान रखती है। देवी दुर्गा जो स्त्री का प्रतीक है, जो ‘शक्ति’ कहलाती है उसकी पूजा की जाती है, जीवन के समस्त दुखों-पापों, अंधेरों का नाश कर इसमें खुशी और सौंदर्य के रूप में नव ऊर्जा के संचार की कामना-प्रार्थना के साथ।
‘शक्ति’ अर्थात ‘शत्रुओं को जीतने वाली’, ‘दुर्गा’ का विस्तार संभवत: ‘दुर्ग’ शब्द से हुआ हो। ‘दुर्ग’ अर्थात् ‘किला’ जो सुरक्षा का प्रतीक है, सम्मान का हकदार है। स्त्री रूप का प्रतिनिधित्व करती ‘दुर्गा’ व ‘शक्ति’ दोनों ही सुरक्षा व सम्मान का प्रतीक हैं। संभवत: इसीलिए दुर्गा को देवी कहा गया। किंतु प्रतीकात्मक ये पूजा आध्यात्मिक धरातल पर भले ही मायने रखती हो, असलियत की जिंदगी में पाखंड और प्रपंच नजर आता है, नारी के दुख का कारण नजर आता है।
नवरात्रि आह्वान है शक्ति की शक्तियों को जगाने का ताकि सभी प्रकार के क्लेश-कलह,रोग-शोक,भय,आपदाओं के नाश हो सके। नवरात्रि सिर्फ भूखे-प्यासे रहकर कर्मकांडो को करना ही नही है,अपितु सच्चे अर्थों में इस महापर्व का अर्थ नारी जाति के प्रति पूर्ण अपनत्व और आदर का भाव रखना है। नारी के प्रति सम्मान की भावना रखना ही नवरात्रि पूजन का मूल है।
महापर्व नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं।