नज़रिया

धोनी होना भी इतना आसान कहाँ: वीर प्रताप सिंह

तुमसे मोहब्बत इस कदर है की जमाने से लड़ जाऊं, ना जाने कितनी दफा तुमको लेकर लोगों से लड़ गया हूं बेबाक होकर पर अब लड़ना नहीं चाहता हूं। ऐसा नहीं कि हिम्मत नहीं पर अब दिल नहीं चाहता तुम कब क्या कर जाओ तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा होता है कोई नहीं जानता मुझे याद है कैसे एक कक्षा छ: के लड़के को तुमने अपना दीवाना बना लिया था, श्रीलंका के विरुद्ध मैच था तुमने १० छक्के मारे थे अगले दिन दैनिक जागरण में फ्रंट पेज में लिखा था, “धोनी का धमाका श्रीलंका कांपा” तब से लेकर तुमने अनगिनत खूबसूरत यादें दी है जिसके हम शायद हकदार ही नहीं है। लोग तुमको लगातार नकारते रहे तुम्हे आलोचकों ने हमेशा निशाने पर रखा और तुमने क्या किया निस्वार्थ होकर भारत को नए नए कीर्तिमान दिलाते रहे जिस युग की शुरुआत तुमने रनआउट होकर किया उसका अंत भी तुमने वैसे ही किया अंत हमेशा दुखद होता है पर मुझे इस बात की खुशी है कि मै उस वक़्त पैदा हुआ जब तुमने खेलना शुरू किया और मैंने तुम्हे खेलते हुए देखा, क्रिकेट ने तुम्हे सब कुछ दिया और क्रिकेट ने मुझे तुम।

माही के बारे में जितना लिखो उतना कम होगा, हाथों से ग्लव्स को टाइट करते हुये पूरी फील्ड को देखना और फिर आँखों को अंगूठे से हल्का सा रगड़कर दोनों कंधों को एक बार उचकाने के बाद जब खेलने के लिये तैयार होता है तो पूरा देश इस खिलाड़ी की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देख रहा होता है और उसके बाद जब हेलीकाप्टर उड़ता है तो पूरा देश उछल पड़ता है।

धोनी ने तो देश को वो दे दिया जो शायद हम कभी सोच भी न पायें।

लेकिन धोनी होना भी इतना आसान कहाँ है। धोनी होने के लिये आपको लोगों की टूटती उम्मीदों को जोड़ना होता है, जमीन पर खड़े होकर हेलीकाप्टर उड़ाना होता है, टूटे अँगूंठे के साथ खेलना पड़ता है, बिना देखे गेंद को स्टंप्स में मारना पड़ता है, पलक झपकने से पहले गिल्लियाँ बिखेर देना होता है। कोई कितना कुछ बोल ले लेकिन उस पर कोई प्रतिक्रिया न देना और मैदान में जवाब देना होता है धोनी होना। धोनी होने के बाद भी सबसे मुश्किल काम ये है कि धोनी होकर भी धोनी बने रहना।

मेरे लिए क्रिकेट तभी पूरा होता है ,जब तीन डण्डों के पीछे खड़ा धोनी आंखों से सुन और हाथों से बोल रहा हो। जब सबके माथे पर पसीने की बूंदे हों उस वक्त में भी शान्त रह कर मैच को जीत कर ले आना होता है धोनी होना।

धोनी वह इकलौता सेनापति है जो अपने उत्तराधिकारी को अपने होते हुए ही कमान सौंपता है और वो उत्तराधिकारी आज भी बोलता है कि भले मैं टीम का कप्तान हूँ लेकिन माही भाई जब मैं टीम में आया तब भी आप मेरे कप्तान थे और जब तक आप हैं तब तक आप ही मेरे कप्तान हैं, ये इसलिये संभव है क्योंकि वो धोनी है।

वो अपनी सारी जिम्मेदारियां निभा चुका है। जिसके लिए उसे दुनिया में भेजा गया था उसको सफल साबित कर चुका है। वो बचपन से लेकर आज तक जिम्मेदारियों से पीछे नहीं भागा। जिदंगी में बहुत उतार चड़ाव देखे पर सभी समस्याओं का चुप चाप डट कर सामना किया। आने वाली पीढ़ी को तैयार करके जिम्मेदारियां सौंप चुका है अब तो उसके आराम का और मजे करने का वक्त है।

तुम उसको कुछ बोलो वो तो बहरा है, उसे अपने चाहने वालो से ही नहीं पूरे देश से लगाव है। आलोचक वहीं मिट्टी में मिल जाते है जब वो ग्राउंड में पहला कदम रखता है और हजारों लोग खड़े होकर उसका स्वागत करते है।

जिसकी लोग पूजा करते है और जो करोड़ों का मार्गदर्शन बन चुका है, इस वक्त उसको देखो उसके व्यक्तित्व से सीखो, उसकी जीवन और क्रिकेट की पारियो का आनंद लो बस।

धोनी वो इंसान है जो ‘कप्तान धोनी’ के नाम से ही जाना जायेगा, वो भले ही कप्तानी छोड़ दे लेकिन खुद कप्तानी उसको छोड़ नहीं सकती, वो इकलौता माही है। क्रिकेट पहले भी खेला जाता था,

क्रिकेट आगे भी खेला जायेगा लेकिन आँखों में जीत का भरोसा लिये एक इकलौता सा इंसान अब क्रिकेट को अलविदा कह दिया। तुम उसको कितना भी बोल लो, लेकिन एक बात तो तय आज उसके रिटायर होने से पूरे देश के साथ वो बाइस गज की पट्टी और वो तीनों ड़डे भी रोयेंगे, जिसके पीछे वो 15 साल से खड़ा है। जब जब इस बाइस गज की पट्टी और विकेट के पीछे खड़े खिलाड़ियों की बात होगी, तब तब एक नाम सबसे पहले लिया जायेगा वो नाम है महेन्द्र सिंह ‘धोनी’।

याद रखना एक हार से कोई फकीर नहीं बनता और एक जीत से कोई सिकन्दर नहीं बनता, सिकन्दर बनने के लिये पहले धोनी बनना पड़ता है।

माही युग का अंत!

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