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RSS मुख्यालय में प्रणब दा ने लगाई राष्ट्रवाद की कक्षा

RSS मुख्यालय नागपुर: कई दिनों से राजनीतिक हल्कों में चर्चा के केंद्र में बना प्रणब मुखर्जी की नागपुर आरएसएस मुख्यालय में आखिरकार भाषण हो ही गया। पूरे देश की निगाहें लगी थीं कि आखिर पुराने कांग्रेसी और एक टाइम पर आरएसएस के धुर विरोधी रहे मुखर्जी क्या उद्बोधन देंगे। तरह-तरह की अटकलों के बावजूद उन्होंने वही सब कहा जो नेहरू की विरासत है, उनका पूरा भाषण उसी नेता के राजनीतिक दर्शन का निचोड़ था। जिसके सामने आरएसएस और बीजेपी कभी पटेल, तो कभी बोस को खड़ा करने की कोशिश करते रहे हैं। राष्ट्रवाद पर बोलते हुए प्रणब ने कहा ‘मैं इस कार्यक्रम में देशभक्ति की बात करने आया हूं। भारत के बारे में बात करने आया हूं। देश के प्रति निष्ठा ही देशभक्ति है। भारत के दरवाजे सभी के लिए खुले हुए हैं। भारत यूरोप और अन्य दुनिया से पहले ही एक देश था।’ प्रणब मुखर्जी ने कहा कि विविधता ही भारत की ताकत है। असहिष्‍णुता से हमारी राष्‍ट्रीय पहचान धूमिल होती है। अगर हम भेदभाव और नफरत करेंगे, तो यह हमारी पहचान के लिए खतरा बन जाएगा। धर्म के आधार पर राष्‍ट्र की परिभाषा गलत, वसुधैव कुटुंबकर भारत का मंत्र रहा है।

भाषा, रंग, धर्म, जाति आदि से प्रभावित नहीं होता राष्ट्रवाद

प्रणब मुखर्जी ने कहा कि 5000 वर्ष पुरानी हमारी सभ्यता को कोई भी विदेशी आक्रमणकारी और शासक खत्म नहीं कर पाया। कई लोगों ने सैकड़ों सालों तक भारत पर शासन किया, फिर मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत पर शासन किया। बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी आई। 12वीं सदी के बाद भारत में 600 साल मुस्लिम शासकों का राज रहा। लेकिन हमारी संस्‍कृति कामय रही। उन्‍होंने कहा कि राष्ट्रवाद किसी भाषा, रंग, धर्म, जाति आदि से प्रभावित नहीं होता। भारत की आत्मा बहुलवाद में बसती है। इतनी विविधता के बावजूद भारतीयता ही हमारी पहचान है। बातचीत से ही विभिन्न विचाराधारा के लोगों की समस्याओं का समाधान संभव है। हमें लोकतंत्र गिफ्ट के रूप में नहीं मिला। बाल गंगाधर तिलक ने ‘स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ का नारा दिया।

संघ सबको जोड़ने वाला संगठन

नागपुर के कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को अपना समय देने के लिए धन्यवाद दिया। साथ ही कहा कि यह संघ का एक नियमित कार्यक्रम है, हर साल होता है, लेकिन इस बार चर्चा कुछ ज्‍यादा है। प्रणब मुखर्जी के कार्यक्रम में आने को लेकर तरह-तरह की चर्चा हो रही है, जो बेकार है। संघ के लिए कोई पराया नहीं है। संघ पूरे समाज को एकजुट करना चाहता है। भागवत ने कहा कि प्रणब मुखर्जी को कैसे और क्‍यों बुलाया, ये चर्चा गैरजरूरी है। भारत की भूमि पर जन्‍मा हर शख्‍स अपना है, इसमें कोई विवाद नहीं है। देश में विविधता होना सुंदरता और समृद्धि की निशानी है। दूसरों की विविधता को स्वीकार करके उसे सम्मान देते हुए एकता जरूरी है। भारत में जो कोई भी बाहर से आया उसे देश में शामिल किया गया। हम सभी को एक होकर देश की सेवा करनी होगी। सिर्फ सरकारें देश का भाग्‍य नहीं बनाती हैं।संघ प्रमुख ने बताया कि डॉ हेडगेवार आजादी से पहले कांग्रेस के आंदोलन में भी शामिल हुए थे। 1925 में हेडगेवार ने संघ की शुरुआत सिर्फ 17 लोगों के साथ की थी। स्थापना के बाद विभिन्न दिक्कतों के बाद भी संघ आगे बढ़ता गया, अब संघ लोकप्रिय है। आज संघ कार्यकर्ता जहां जाते हैं, उन्‍हें लोगों को प्‍यार मिलता है। संघ सबको जोड़ने वाला संगठन है।

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