कानपुर ब्यूरो: उत्तर प्रदेश के कानपुर में 8 पुलिसवालों को मौत के घाट उतारने वाला विकास दुबे आज मीडिया का सबसे हॉट टॉपिक बना हुआ है। विकास दुबे ने पहली बार गुंडागर्दी या किसी जुर्म को अंजाम नहीं दिया है, बल्कि उसके खिलाफ अपराध का जो पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज मामला है, वह 1993 में ही सामने आ चुका था। तब उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 394/397/504/506 के तहत मामला दर्ज हुआ था। उसके बाद से अब तक उसने सैकड़ों अपराधों को अंजाम दिया है, जिनमें तो 60 तो पुलिस रिकॉर्ड में ही दर्ज हैं। दर्ज अपराधों से कहीं ज्यादा उन अपराधों की संख्या होगी, जिनके बारे में कोई शिकायत ही नहीं की गयी होगी। विकास दुबे पहली बार चर्चा में तब आया था जब उसने भाजपा शासन में ही 2001 में भाजपा के मंत्री को ही थाने के अंदर जाकर गोलियों से भून डाला था। मगर उसके खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई नहीं हुई, वह लगातार अपराध की दुनिया में सक्रिय होता गया और साथ ही राजनीति और अपराध के गठजोड़ को भी चरितार्थ करता गया। क्योंकि जैसे—जैसे अपराध की दुनिया में उसका कद बढ़ता गया, वैसे-वैसे राजनीति में भी उसकी पैठ बढ़ती गयी।
कल 2 जुलाई को भी विकास दुबे को पुलिस वाले एक मर्डर के सिलसिले में गिरफ्तार करने गये थे। हाल में उसने एक हत्याकांड को अंजाम दिया था। उच्चाधिकारियों की तरफ से उसी मामले में विकास की गिरफ्तारी के लिए दबाव पड़ रहा था। शासन—प्रशासन में विकास दुबे की सांठगांठ का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि थाने में जाकर एक मंत्री को ठोकने के बावजूद उस मामले में अभी तक उसका अपराध तय नहीं हो पाया था। इस मामले में उसको अभी तक सजा नहीं हो पाई थी।विकास दुबे जो 90 के दशक में इलाके का एक छोटा-मोटा बदमाश हुआ करता था और पुलिस उसे मारपीट के मामले में पकड़कर ले जाती थी, धीरे-धीरे गुंडागर्दी में अपना कद बढ़ाता गया। धीरे-धीरे उसे छुड़वाने के लिए स्थानीय रसूखदार नेताओ-विधायकों और सांसदों तक के फोन आने लगे थे। विकास दुबे को सत्ता का संरक्षण लगातार मिल रहा था। वह एक बार जिला पंचायत सदस्य भी चुना जा चुका था। उसके घर के लोग तीन गांव में प्रधान भी बन चुके हैं। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक विकास दुबे ऊपर कैबिनेट मंत्रियों तक का हाथ था।